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सबका कल्याण हो...

वर्ष 2014 - इस खूबसूरत साल का समापन एक खूबसूरत अंदाज़ में हो रहा है मेरे लिए और आशा करता हूँ कि आप सब के लिए भी ऐसा ही कुछ रहा होगा। आइये, हम स्वागत करें आने वाले वर्ष का कुछ इस भावना के साथ कि आने वाला समय प्राणी-मात्र के लिए सुख और शान्ति का सन्देश ले कर आये। कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त न हो, नई आशा के साथ सब की सुबह हो, कोई भूखा नहीं सोये। सब के मन में सब के प्रति सद्भावना हो, सबका कल्याण हो। एवमस्तु !

तीन दृश्य : एक निष्कर्ष ! (तीन लघुकथाएँ)

   1)  एक जाने-माने वक़ील ने अपने मुवक्किल (जिसने क़त्ल किया था) को कोर्ट से बाइज्ज़त बरी करवा लिया और विपक्षी निर्दोष व्यक्ति के विरुद्ध सज़ा-ए=मौत का फैसला करवा दिया। कुछ लोगों ने इस पर वाह-वाही की तो कुछ लोगों ने थू-थू कर धिक्कारा। उस मुकद्दमे के दर्शक रहे एक संवेदनशील परिचित ने अगले दिन वक़ील को फोन कर पूछा- 'वक़ील सा., रात को नींद तो ठीक से आई न ?' वक़ील ने कहा- 'अरे नहीं भाई, नींद कहाँ से आती। रात भर सोचता ही रहा।' परिचित कुछ आश्वस्त हो बोला- 'शुक्र है, क्या ख़याल आते रहे ?'  वक़ील- 'यही जनाब कि मेरे एक दूसरे मुवक्किल को बचाने के लिए मुझे क्या-क्या करना है जिसने बलात्कार के बाद एक नाबालिग की हत्या कर दी थी। कल उसके लिए जवाबदावा पेश करना है।'                                                                                    *************   2)  एक महिला के सामने उसके पति की किसी ने हत्या कर दी। पुलिस अधिकारी ने महिला के बयान लिये और कुछ तफ्तीश के बाद हत्यारा पकड़ा गया। मुकद्दमा चला, इसी दौरान अपराधी के पक्ष के कुछ लोगों ने उस महिला को एक अच्छी सी 

कैसी धर्म-निष्ठा है यह …

   भारत में आतंकवाद का साया ! आतंक का पर्याय 'रामपाल' ! सद्दाम, लादेन, दाऊद इब्राहिम और आई एस का बगदादी- यह सभी नाम बौने हो गए हैं हिसार (हरियाणा) में रामपाल के दुस्साहस के आगे। जो हरकतें रामपाल और उसके मदान्ध अनुयायी कर रहे हैं उन्हें अभी तक बर्दाश्त क्यों किया गया है, यह बात अब सब जान चुके हैं। पचास हजार लोगों का जमावड़ा रामपाल की सुरक्षा में जमा हो गया है। क्या यह सब लोग आकाश से कूद कर अचानक आ गए वहां ? रामपाल से अधिक बड़े गुनहगार इसको संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञ हैं। देश का दुर्भाग्य है कि राजनीति अपराधियों को पैदा करती है, पनपाती है और अंत में विवश होकर उनको समाप्त भी वही करती है, लेकिन इस दौरान कई बेगुनाहों को जो कुछ भुगतना पड़ता है उसका क्या ! रामपाल की गिरफ़्तारी की जो प्रक्रिया अब होने जा रही है उसकी क्रियान्विति में कर्तव्य-निर्वाह कर रहे जवानों का जो खून बहेगा, उसका उत्तरदायी कौन होगा ? किसी के पास कोई जवाब नहीं इसका।आखिर ऐसे पाखंडियों के छलावे में आकर भोले-भाले (मूर्ख) लोग क्या हाँसिल कर रहे हैं ? उनका परलोक तो नहीं सुधर रहा, हाँ, इहलोक ज़रूर बिगड़ रहा है।    आसाराम,

कोई तो दोषी है …

     कितनी अच्छी व्यवस्था थी- हर 15-20 फीट पर सड़कों पर छोटे-बड़े गड्ढे यानि कि अघोषित स्पीड-ब्रेकर थे। किशोर, जवान, बुजुर्ग, सभी बहुत ही सावधानी से वाहन चलाते थे।     नगर निगम के चुनावों के चलते इन दिनों सड़कों का डामरीकरण करके यातायात एकदम सुगम कर दिया गया है।     अब आलम यह है कि लम्बे समय की आदत के कारण बुजुर्गों सहित कुछ जिम्मेदार किस्म के लोग अब भी सड़कों पर धीमे-धीमे  ही वाहन चला रहे हैं और रफ़्तार के बाज़ीगर, शोहदे किस्म के लोग बेतहाशा अपने वाहन दौड़ाते हुए कई बार धीमे चलने वाले व्यक्ति को टक्कर मार देते हैं। धीमे चलने वाले लोग कुसूरवार भी तो हैं, वह क्यों नहीं सड़कों पर फर्राटे मारते, जबकि सड़कें शानदार बना दी गई हैं।     कोई न कोई तो दोषी है। कुल मिलाकर यही कहना उचित होगा कि बेड़ा गर्क हो चुनावी राजनीति का, जिसके कारण सड़कों का उद्धार हुआ है। 

भारत- 'विश्व का सरताज़'

    सही मायने में देखा जाये तो भारत में इस बार किसी पार्टी के सांसदों ने प्रधानमंत्री को नहीं चुना, सीधे ही जनता ने चुना है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की आवाज़ में एक ताक़त है, उनके इरादों में मज़बूती है और कुछ कर गुज़रने का ज़ुनून भी दिखाई दे रहा है। अमेरिका में आज के उनके भाषण से तो यही लग रहा है। ईश्वर करे, मेरी यह सोच और समझ सही हो ! मोदी जी के नेतृत्व की संकल्प-शक्ति के सहारे हमारा भारत महात्मा गांधी के सपनों का भारत बन सके !! शहीद भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस जैसे देश के सपूतों का त्याग और बलिदान सार्थक हो सके !!! और…और मेरे देश का हर नागरिक निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के उत्त्थान के लिए जो कुछ भी सम्भव है, यथाशक्ति करे। हर नागरिक मोदी का हाथ और दिमाग बन जाए, तब ही बन सकेगा भारत 'विश्व का सरताज़' !

अपराजेय

 आज का मेरा सुविचार :-    'बाहुबली धन के आगे झुकता है तो धन-कुबेर को सत्ताधीश के सम्मुख नतमस्तक होना पड़ता है, लेकिन आत्म-सम्मान से परिपूर्ण व्यक्ति अपराजेय होता है।'

'हमारा भारत महान'

  अक्सर यह व्यंग्य करते आये हैं लोग कि  '100 में से 99 बेईमान, फिर भी हमारा भारत महान!'- शायद कटु-सत्य है भी यह, लेकिन आज हम सच में ही सगर्व कह सकते हैं - "एशिया में सबसे पहले हमारी मंगल तक सफल उड़ान,  विश्व-गुरु, सबसे न्यारा, 'हमारा भारत महान'।"              वन्दे मातरम् !!!

मदद की पेशकश !

    मित्र राजेश से अस्पताल में आज अनायास ही मुलाक़ात हो गई तो पूछ बैठा - "अमां यार, कैसे हो ? कहाँ रहते हो आजकल ? घर में सब ठीकठाक है ? यहाँ कैसे आये ?"     प्रश्नों की इस बौछार से उबरने के अंदाज़ में राजेश ने कहा - "बस यार, यूँ ही जरा इस पेशेंट की मदद करने आया था। इसे ऑपरेशन के लिए कुछ पैसा चाहिए था।"    राजेश की इस बात से प्रभावित होकर मैंने फिर पूछा - "वैरी गुड, कैसे जानते हो इसे ?"     लगभग घसीटते हुए एक ओर ले जाकर राजेश ने मुझे बताया कि यह वही आदमी है जो पिछले सप्ताह उसके घर में चोरी की नीयत से आया था और अचानक घर पर जाग हो जाने से उसके बेटे के हाथ पर चाक़ू मार कर छत से नीचे कूद पड़ा था और इस कारण बुरी तरह से जख्मी हो गया था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर अस्पताल में भर्ती करवाया था और आज उसका ऑपरेशन होना है।    हतप्रभ, मैं राजेश से कह पड़ा - " भले आदमी ! इस राक्षस को तुम मदद करने जा रहे हो जिसने तुम्हारे बेटे को चाकू मारा था। क्या तुम पागल हो गए हो ?"   राजेश ने शान्त स्वर में जवाब दिया - "तुम मुझे पागल कहते हो ? मैं मानवीयता के नाते यह म

बस, अब और नहीं...

    कल दि. 6 -8 -14 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी जी को कुछ आतंकी संगठनों से खतरा है। इसके मद्देनज़र सुरक्षा के माकूल इन्तज़ाम किया जाना निहायत ही ज़रूरी है। हम श्रीमती इन्दिरा गांधी और राजीव जी को आतंकी षड्यन्त्रों में खो चुके हैं और उनसे पहले शास्त्री लाल बहादुर जी जैसा व्यक्तित्व भी विदेश में सम्भवतः किसी षड्यन्त्र का ही शिकार हुआ था। बस, अब और नहीं, अब हम किसी भी अनहोनी का सामना करने को तैयार नहीं हैं। राजनैतिक रूप से वैचारिक मतभेद लोगों के दिलों में हो सकता है, लेकिन मोदी जी हमारे प्रधानमंत्री हैं और प्रधानमंत्री पद में राष्ट्र की अस्मिता और गरिमा समाहित है। अतः निर्विवाद रूप से उनकी सुरक्षा हम सब की प्राथमिकता में होनी चाहिए। 

दूरभाष पर नेता जी…

    हैलो... हाँ-हाँ बोल रहा हूँ... बोलो... अच्छा... कौन ? अच्छा... अपनी पार्टी में आना चाहता है... किस पार्टी से है ? आतंकवादी जन संगठन पार्टी ? नहीं-नहीं भाई, ऐसा नहीं हो सकता... अरे नहीं, लोग क्या कहेंगे... क्या कहा... जिताऊ उम्मीदवार है ? ठीक है, ठीक है, ज़रूर आत्मा की आवाज़ पर आ रहा होगा ...ओके ! कर लो शामिल... नहीं वो मैं देख लूँगा... और देखो और लोगों को भी उस पार्टी से तोड़ने की कोशिश करो... कैसा भी हो, जिताऊ होना चाहिए... अरे हाँ भाई, तिजोरी तो खुली है इसके लिए... चिंता मत करो तुम... अरे, अध्यक्ष जी ने तो पहले ही कह रखा है... देखो, यह चुनाव तो हमें जीतना ही है... अच्छा भाई, ठीक है... गुड नाइट !

इतना तो करो मेरे देश के रहनुमाओं....

    कश्मीर में धारा 370 ख़त्म मत करो, महँगाई कम मत करो, भ्रष्टाचार भी ख़त्म मत करो, लेकिन इतना इन्तज़ाम तो  कम से कम करो ही मेरे देश के रहनुमाओं कि इस देश की बच्चियाँ और महिलाएँ मेहफ़ूज़ रह सकें, ईश्वर की दी हुई ज़िन्दगी को बेख़ौफ़ जी सकें- हम मान लेंगे कि अच्छे दिन आ गए हैं। 

सही समय, सही कदम.…

    प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा राजकार्य में मातृभाषा हिंदी के अधिकतम प्रयोग पर बल दिया जाना स्वागत योग्य है। प्रारम्भ में जनता की सुविधा के लिए सम्बंधित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद संलग्न किया जाना भी वांछनीय है। कालान्तर में देश-विदेश के मंचों पर मात्र हिंदी का ही प्रयोग अनिवार्य किया जा सकेगा। जिस प्रकार कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष विदेशों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं व दुभाषिये उसका सम्बंधित देश की भाषा में या अंग्रेजी में रूपान्तरण कर देते हैं, ठीक उसी तरह हम भी हिंदी का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आसानी से कर सकते हैं। हिंदी को गौरवान्वित करने वाले इस कदम की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम है। हाँ, क्षेत्र-विशेष में क्षेत्रीय भाषा या अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा सकती है। हिंदी का अधिकतम प्रयोग देश को एक सूत्र में बांधे रखने और मात्र क्षेत्रीय सोच की संकीर्णता के उन्मूलन में सहायक होगा। राष्ट्र-भाषा या ऐसा कोई भी मुद्दा जो राष्ट्र-भावना से सम्बन्धित हो, का विरोध करने वाले हर वक्तव्य को राष्ट्र-द्रोह के समकक्ष माना जाकर कार्यवाही की जानी चा

फिल्म-जगत क्या दे रहा है...

   फिल्म-जगत के महारथी अपनी फिल्मों के जरिये भारतीय समाज को हिंसा, विभिन्न अपराध करने के नाना प्रकार के गुर और अश्लीलता तो बेतहाशा परोस ही रहे हैं, नई पीढ़ी को असभ्यता और उद्दण्डता सिखाने में भी पीछे नहीं रहना चाहते।    कल ही देखी एक मूवी 'Holiday: A Soldier is never off duty' का उदहारण लें।  नायक अक्षय कुमार अपने परिवार के साथ लड़की देखने जाता है। वहां से लौटते वक्त वह लड़की ( सोनाक्षी सिन्हा ) को नापसन्द करने का कारण बताता है कि लड़की ज़रूरत से ज़्यादा शर्मीली, सीधी और यह है, वह है। अक्षय कुमार की धारणा का खण्डन करने के लिए दूसरे ही दृश्य में उसी लड़की को साड़ी के बजाय स्पोर्ट्स ड्रैस में दिखाया जाता है। लड़की अपनी माता की मौज़ूदगी में पिता से पैसा मांगती है और आनाकानी करने पर उनके गाल पर थप्पड़ जड़ कर उनका वॉलेट निकाल कर ले जाती है।   तो इस तरह लड़की को आधुनिक और बोल्ड बताया जाता है और…और थियेटर में दर्शक ठहाका लगाते हैं। हो गया फिल्म-निर्माता का मकसद पूरा !

अफ़सोस !

 मंडी (कुल्लू-मनाली रोड़) के पास व्यास नदी में बह गए मासूम नौजवान इंजीनियरों ! हर आम आदमी व्यथित है कि एक गैर जिम्मेदाराना इंसानी भूल ने असमय ही तुम्हारी ज़िन्दगी लील ली। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं, लेकिन प्रश्न है मेरा- 'क्यों कर रहे थे इंजीनियरिंग की पढ़ाई ? क्यों नहीं नेतागिरी को अपना करियर बनाया ?'    व्यास नदी में कहीं बह रही या अटकी तुम्हारी मृत देहों को तलाशने के लिए नदी के किनारे-किनारे खोजक दाल के सदस्य मंथर गति से ढूँढने का दायित्व निभा रहे हैं, कोई एक हेलीकॉप्टर इस कार्य के लिए तुम्हारे निष्प्राण शरीरों को मयस्सर नहीं। यदि माननीय बनने के लिए कहीं चुनावी भाषण देने जा रहे होते तो कई-कई हेलीकॉप्टर तुम्हारी हाज़िरी में बड़े (समर्थ) लोगों द्वारा मुहैया करा दिए गए होते।   

सन्देश-

  जिन नासमझों ने यीशु मसीह का उपहास किया था, उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया था, उनको क्षमा करते हुए यीशु ने ईश्वर से यह शब्द कहे थे - " हे परमात्मा तू उन्हें क्षमा करना क्यों कि वह नहीं जानते कि वह क्या कर रहे हैं।"   हम जानते हैं केजरीवाल जी कि आप यीशु नहीं हैं, लेकिन निस्वार्थ भाव से आम आदमी के हितों के लिए लड़ने वाले, अपने सभी ऐशो-आराम छोड़कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग छेड़ने वाले और लक्ष्य-प्राप्ति तक जुझारू संघर्ष की ज़िद रखने वाले आप, यीशु से कम भी नहीं हैं।   आप की ओर से हम भी उन सभी नासमझों के लिए जो आपको भगोड़ा, नौटंकी, पल्टू और ऐसे ही अन्य अभद्र विशेषण (उनके शब्दकोष में जो भी उपलब्ध हैं) देने की धृष्टता कर रहे हैं, ईश्वर से वैसी ही प्रार्थना करते हैं।   हमें आप पर और AAP पर बहुत विश्वास है। हमारे विश्वास को जीवित रखते हुए, अपने आत्म-बल को कायम रखते हुए अपनी कुछ भूलों को परिमार्जित कर आप धनात्मक शक्ति के साथ अपने पवित्र उद्देश्य के लिए जुट जाइये। भूलें आपसे हुई हैं क्योंकि आप सीधे-सच्चे इन्सान हैं, कुटिल और चालबाज़ राजनीतिज्ञ नहीं। अब भूलों को दोहराएँ नहीं। हाँ, र

असमंजस में हूँ …

    अभी तीन-चार दिन पहले मैं अपने एवं मित्र-परिवार के साथ शहर की खूबसूरत झील फतहसागर पर रात्रि लगभग 10 बजे टहल रहा था। अनायास ही झील की पाल के नीचे इधर-उधर घूमते ड्यूटी कर रहे दो पुलिस-कर्मियों पर नज़र पड़ी। विचार आया कि यदि यह लोग अभी ड्यूटी पर नहीं होते तो शायद हमारी ही तरह अपने परिवार के साथ यहाँ टहलने का आनंद ले रहे होते। कैसी जटिल और नीरस ज़िन्दगी है इनकी- यह सोच मन में उनके प्रति करुणामिश्रित सम्मान जाग उठा।    आज लखनऊ में शिक्षकों के द्वारा अपनी मांगों के लिए किये जा रहे आंदोलन के दौरान पुलिस ने जिस अमानवीय तरीके से लाठी-चार्ज किया- वह सब टीवी पर देखा। लग रहा था मानो युद्ध में दुश्मनों पर पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया जा रहा है। हल्के और सांकेतिक प्रहारों से ही उन्हें तितर-बितर करना निश्चित रूप से असंभव नहीं था। इस पुलिसिया क्रूरता के प्रति मन आक्रोश और घृणा से भर उठा।    नहीं समझ पा रहा हूँ कि पुलिस के प्रति किस तरह के भाव को ह्रदय में स्थान दूँ ...   

कानून समदृष्टा हो...

गोवा निवासी Lavu Chodankar के द्वारा मार्च में मोदी जी के विरुद्ध की गई टिप्पणी के लिए मई माह में पुलिस द्वारा केस दर्ज किया गया। यदि चुनाव-परिणाम जुलाई में आते तो शायद केस भी जुलाई में दर्ज होता। यदि चुनाव में विजय किसी और पार्टी की होती तो विजेता पार्टी का समर्थक Lavu Chodankar को पद्मश्री के लिए प्रस्तावित करता और इसके लिए कार्यवाही भी आगे बढ़ जाती। राजनीति इसी का नाम है  और यह ऐसे ही चलती है। अब पुनः इस राजनीति का शिकार बेंगलूरू का मैनेजमेंट (MBA) का छात्र सैयद वक़ार हो रहा है (जैसा कि आज के दैनिक पत्र 'राजस्थान पत्रिका' से ज्ञात हुआ)। एक क्षण के लिए मान लेते हैं कि इनकी टिप्पणियां आपत्तिजनक रही होंगी, लेकिन इन पर ही यह वज्रपात क्यों ? चुनाव के दौरान कई राजनैतिक दिग्गजों ने मर्यादा की सीमा तोड़कर कितनी ही बार राजनीति को शर्मसार करने वाली कई अभद्र और उल-जलूल टिप्पणियां की हैं। फेसबुक जैसे सोशियल मीडिया में शिरकत करने वाले कितने ही असभ्य लोगों ने जुबान पर नहीं लाई जा सकने वाली गली-गलौज की चवन्नी-कट भाषा का प्रयोग कर एक-दूसरे का और मोदी जी, सोनिया जी, केजरीवाल जी और डॉ मनमोहन

अभी राह में कांटे और भी हैं.…

 जिस तरह  पूर्व में दिल्ली विधानसभा के लिए  टिकिट नहीं मिलने से नाराज़ बिन्नी ने AAP पर अनर्गल आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी थी, ठीक उसी तरह लोकसभा के लिए टिकिट नहीं मिलने से अब तक नाराज़ शाजिया इल्मी ने AAP की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देते हुए व्यक्त किया की AAP में उनकी प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। वैसे शाजिया की प्रासंगिकता तो उसी दिन से AAP के लिए समाप्त हो गई थी जब उन्होंने मुसलमानों को अधिक धर्मनिरपेक्ष न होने की सलाह दे डाली थी।     अच्छा है कि धीरे-धीरे और भी कचरा यदि पार्टी में बचा हुआ हो तो साफ हो जाये और पार्टी का मूल धवल स्वरुप निखर आये। शैशव अवस्था में चल रही AAP को अभी कई इम्तहानों से गुज़रना बाकी है, बाहर के दुश्मनों और भीतर के गद्दारों से जूझना बाकी है। 

इस तत्परता के लिए बधाई !

    राजनैतिक परिवर्तन के साथ ही प्रशासन चुस्त हुआ। नितिन गडकरी के द्वारा दायर मानहानि के मामले में अरविन्द केजरीवाल को आज हिरासत में लिया गया और जमानत नहीं दी जाने के कारण दो दिन के लिए जेल भेजा गया। कार्य-निष्पादन में वाकई में तेजी आ गई है। इस तत्परता के लिए बधाई !    गडकरी सही हैं या गलत- यह तय होगा न्यायिक प्रक्रिया से, लेकिन केजरीवाल तो दोषी हैं ही। क्यों वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध इतना मुखर हो रहे हैं, जब कि भ्रष्टाचार तो इस देश की हवा में भी रच-बस गया है। यहाँ की जनता भी भ्रष्टाचार के साथ जीना सीख गई है, जीना ही नहीं सीख गई अपितु इस माहौल का आनंद उठा रही है। इसीलिए तो उसने AAP को मात्र चार सांसदों तक सीमित रखा है। 

सोलहवीं लोकसभा और हमारे नये प्रधानमंत्री

 प्रधानमंत्री-पद पर निर्वाचन के बाद सोलहवीं लोकसभा के नव-निर्वाचित सांसदों को सम्बोधित करने के दौरान मोदी जी की भाषण-शैली में भाषा-सन्तुलन के साथ जो वैचारिक उदारता एवं संकल्प-शक्ति दिखाई दी वह मोदी जी के व्यक्तित्व के पृथक स्वरुप को उजागर करती है। अगर यह राजनीति है तो भी यह राजनीति का एक उज्ज्वल पक्ष है। आज के उनके भाषण ने देश की जनता की आकांक्षाओं  के पहाड़ को आकाश की ऊंचाई दे दी है। आज़ादी के बाद से भारत के आम आदमी के जीवन-स्तर में निरन्तर उठाव तो आता रहा है लेकिन उसके चेहरे पर की मुस्कान अभी भी फीकी है। यदि उसकी मुस्कान को जीवन्त करने में मोदी जी सफल हो सके तो, यदि उसकी उम्मीदों के आसमान को धरती पर ला सके तो पांच वर्ष बाद लोग कह सकेंगे - फिर इस बार.....मोदी सरकार !     लेकिन, यक्ष प्रश्न है कि क्या मोदी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे ? सब जानते हैं कि मोदी लहर चली थी और खूब जोर से चली, तो जाहिर है कि लहर के साथ कूड़ा-कर्कट भी आना ही था, सो आया। इस लोक सभा में हर तीन में से एक सांसद अपराधिक पृष्ठभूमि का है और उनमे से कई गम्भीर अपराधों से सम्बन्ध रखते हैं (दोष उनका नहीं है कि व

सरल, चर्चित व्यक्तित्व डॉ. मनमोहन सिंह

अपनी सरलता, सादगी पूर्ण शालीनता और विद्वता के लिए कभी नहीं भुलाये जा सकने वाले अद्वितीय  अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कल प्रधानमंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया। शासन की अपनी प्रथम पारी की प्रशंसनीय सफलता के कारण ही पुनः प्रधानमंत्री मनोनीत हुए डॉ. सिंह अपनी पहली सफलता को दोहराने में असमर्थ रहे। इस असफलता के नैपथ्य में कई स्थानीय तो कई वैश्विक कारण जिम्मेदार रहे हैं।     डॉ. सिंह के प्रथम कार्यकाल की अवधि में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जिस गति से विकास हुआ उससे भारत को अन्तर्राष्ट्रीय जगत में अत्यधिक प्रशंसा एवं सम्मान मिला। उनकी आर्थिक उदारीकरण की नीति ने कई क्षेत्रों में कामयाबी दिलाई तो कई में वह नाकाम भी रही। उनके शासनकाल में परमाणु मोर्चे पर सफलता की कड़ियाँ जोड़ने वाली उपलब्धि तो हासिल हुई, लेकिन बेरोजगारी और मंहगाई जैसी मूलभूत समस्याओं के निराकरण की कोई सार्थक नीति देश को नहीं मिल सकी। तथापि डॉ. सिंह की के समय की इस उपलब्धि को नहीं नकारा जा सकता कि उच्च आर्थिक विकास दर बनी रहने के कारण ही वर्ष 2007-08 के समय के वैश्विक आर्थिक संकट के दौर में भी देश की स्थिति अन्य कई वि

उसे जीतना ही होगा....... !

वाराणसी से MP का चुनाव लड़ रहा केजरीवाल एक व्यक्ति नहीं, एक विचारधारा है, एक समूचा आन्दोलन है, आपकी, हमारी और देश की आशा का केन्द्र है। वह लड़ रहा है ताकि हम और हमारी अगली पीढ़ियां सुख की नींद सो सकें। वाराणसी में संघर्ष कर रहा केजरीवाल अकेला नहीं है, देश के हर गांव और हर शहर में अन्याय और भ्रष्टाचार से लड़ रहा हर व्यक्ति केजरीवाल है। केजरीवाल हार नहीं सकता, वह जीतेगा, उसे जीतना ही होगा....... !

अमर शहीद को श्रद्धांजलि !

भारत में अंग्रेजों की हुकूमत के समय का खयाल जहन में आ गया जब क्रन्तिकारी लड़ाकों को विदेशी गुंडों द्वारा सरे-आम मार डाला जाता था। आज भी ऐसा ही हो रहा है, केवल वक्त बदला है और बदल गई हैं गुंडों की शक्लें ! AAP के समर्थक जगसीर सिंह को विपक्ष के कुछ बहशी दरिंदों ने पीट-पीट कर मार डाला। सम्भव है कुत्सित राजनीति वाली सोच इस ह्रदय-विदारक हादसे को महत्व न दे, क्योंकि यह युवक AAP का समर्थक था।……

राजनीति ऊंची चीज़ है

  सच ही राजनीति बहुत ही ऊँची चीज़ है। मोदी जी अभी अमेठी में भाषण दे रहे थे और करबद्ध मीडिया इसका लाइव प्रसारण कर रहा था। मोदी जी कह रहे थे कि चाय वाले का उभरना सब को रास नहीं आ रहा है और यह कि मेरे भविष्य का मत सोचो, मैं तो वापस चाय बना कर बेच सकता हूँ और यह भी कि एक गरीब माँ का बेटा हूँ। यही बात वह पहले भी कई बार कह चुके हैं। समझ से परे है कि जो व्यक्ति 10 वर्षों से मुख्य-मंत्री है वह अभी भी चाय बेचने वाला और गरीब माँ का बेटा कैसे हैं। उनकी माँ अभी तक गरीब क्यों हैं, मध्यम वर्ग की क्यों नहीं हो पाई हैं ? चलो भाई, कह रहे हैं तो मान लेते हैं, हमसे मनवाने के लिए ही तो कह रहे हैं।  हाँ, केजरीवाल जी इतना अच्छा नहीं बोल पाते। 

वैचारिक दोगलापन

   सर्वप्रथम तो मैं अपने मित्रों को यह बता दूँ कि मेरे कई मित्र भाजपा से हैं तो कई कॉन्ग्रेस से। मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि AAP के किसी छोटे-बड़े नेता से मेरा दूर-दूर तक कोई परिचय नहीं है जब कि मैं केजरीवाल का unconditional समर्थक हूँ।   अब मैं आपसे कल का वाकया share करना चाहता हूँ। कल रात मैं अपने एक मित्र के घर भोजन पर गया था। यहाँ, यह बताना असन्दर्भित नहीं होगा कि मेरे यह मित्र एक अन्य पार्टी से प्रतिबद्धता के कारण केजरीवाल को हद दर्जे तक नापसंद करते हैं। खैर, भोजन के बाद मित्र के आग्रह पर मैं कुछ देर वहीँ रुका हुआ था कि तभी उन्होंने TV ऑन कर दिया। 'color' चैनल पर 'बालिका-वधू' का एपिसोड दिखाया जा रहा था।   कल के एपिसोड में इस कहानी के एक प्रमुख पात्र, डॉ जगदीश को चुनाव में खड़ा होता दिखाया गया है।    डॉ जगदीश को उनके गांव/शहर वालों ने राजनीति में पहली बार उतारा है ताकि स्वच्छ राजनीति के जरिये क्षेत्र का विकास हो सके। उसके विरुद्ध खड़ा है राजनीति के दांव-पेच में माहिर एक पुराना खिलाड़ी जो येन-केन-प्रकारेण चुनावी जंग को जीतना चाहता है। बीच-बीच में बात भी कर रहे हम द

16 मई, 2014 के बाद.....

  16 मई, 2014 के बाद भारत देश की धरती पर कोई इंसान मौज़ूद नहीं होगा क्योंकि मोदी के विरोधियों को गिरिराज सिंह के अनुसार पाकिस्तान जाना होगा और मोदी के समर्थकों को फ़ारूक़ अब्दुल्ला के अनुसार समुद्र में डूब जाना होगा। ....... जय हिन्द !

आज का मेरा सुविचार

    'घर के बाहर यार (दोस्त) और घर के भीतर प्यार (जीवन-साथी) हो तो ऐसा हो कि आपके हर लम्हे में उसका वज़ूद आपके जीने का सबब बन जाए।'   

कई रूप शैतान के

   कहते हैं इस धरती पर भगवान कई रूपों में  मिल जाता है, ठीक उसी तरह शैतान भी अलग-अलग रूपों में कई चेहरों के पीछे छिपा नज़र आता है। इसका नज़ारा इस चुनावी माहौल में हाल के दिनों में खूब ही देखने को मिला है। चन्द दिनों की बात है, कॉन्ग्रेसी नेता इमरान मसूद ने भाजपा के नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी काटने का प्रलाप किया था, इसके कुछ ही समय बाद सपा के मुलायम सिंह बलात्कारियों पर नरमी की वकालत कर जनता की थू-थू का पात्र बने थे और अब भाजपा (बिहार) नेता गिरिराज सिंह ने भी एक घृणित, आतंककारी बयान दिया है कि मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान जाना होगा। ऐसा कहते वक्त उन्होंने ऐसी कोई वसीयत भी नहीं दिखाई जिसमें भारत देश के पौराणिक किसी सम्प्रभु स्वामी ने इस देश की जागीर उनके नाम कर दी हो। उपरोक्त बयान देकर गिरिराज सिंह ने सम्भवतः मोदी जी (यदि PM बनते हैं) के मंत्रिमण्डल में स्थान तलाशने का प्रयास किया है, लेकिन वस्स्तुतः तो उन्होंने मोदी जी और भाजपा दोनों का ही अहित किया है। यही नहीं, उन्होंने उक्त कुटिल वक्तव्य से स्वयं अपना भी अहित ही किया है। तानाशाही सोच वाले ऐसे लोगों के कारण ही भाजपा अपने बू

हम सब एक हैं.…

    मेरे अच्छे दोस्तों  (fb के भीतर व बाहर के, दोनों ही) !    जितना भी मेरे मन में आप सब के लिए प्यार है उसको एकबारगी अपनी पूरी शक्ति से एकत्र कर आपको समर्पित करते हुए पूरी नम्रता के साथ अपनी भावना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया पूर्वाग्रहों से मुक्त हो मेरे कथन को पढ़ें, समझें व इस पर मनन करें।    मित्रों, शहर में, देश में, जब हिन्दू-मुसलमनों को आपस में लड़ते-झगड़ते देखता हूँ, fb पर एक-दूसरे के विरुद्ध कटुता फैलाते देखता हूँ तो मेरा मन रो पड़ता है। सोचिये, हम भारतवासियों को अनगिनत शहीदों के जीवन की कीमत चुकाने पर कितने ही युगों की पराधीनता के बाद स्वतन्त्रता की सांसें नसीब हुई हैं। उन शहीदों में हिन्दू भी थे तो मुसलमान भी। मुग़ल साम्राज्य से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक के समय में हिन्दू और मुस्लिम इस कदर आपस में मिले-जुले रहे हैं कि कुछ अपवादों के अलावा कहा जा सकता है कि भाइयों की तरह ही रहे हैं। जहाँ तक झगड़ने की बात है क्या भाइयों में झगड़ा नहीं होता ? दोनों सम्प्रदायों के लोगों की भाषा और संस्कृति भी इस कदर घुल-मिल गई है कि अब अलगाव करना सम्भव नहीं है। जब हमने एक-दूसरे के

निर्बल व्यक्ति ही हिंसा का सहारा लेता है.…

मानसिक स्तर पर जिस ऑटो-चालक की दो पैसे की औकात नहीं है, उसने केजरीवाल को थप्पड़ मारा।  केजरीवाल पर यह दूसरा प्रहार था। ऐसा एक पागल व्यक्ति की व्यक्तिगत सोच के कारण नहीं होता, निश्चित ही दलगत संकीर्णता और छद्म संकेत ही इसके पीछे के कारण हुआ करते हैं। इससे पहले कितने भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को किसी आम आदमी ने थप्पड़ मारा है ? केजरीवाल ने उस घिनौने आदमी को क्षमा भी कर दिया है। कमीनेपन की इस पराकाष्ठा को देखकर ऐसी ही सोच वाले कुछ घटिया लोग इसे भी 'आप' की ही नौटंकी कह रहे हैं। इस घटना की निंदा के बजाय इस तरह का कमेंट करने वाले, क्या उस ऑटो-चालक से भी अधिक निम्न स्तर के लोग नहीं हैं? विपक्षियों की यह कुटिल राजनीति क्या सामान्य-जन के गले उतरेगी ?  सुमन शेखर का चवन्ना मसखरापन भी काम नहीं आने वाला है। आम आदमी को अधिक समय तक गुमराह नहीं किया जा सकेगा।  भगोड़ा कहने वाले ओछी सोच के लोग यदि थोड़ा भी अपने दिमाग (अगर हो तो) का इस्तेमाल करें तो समझ सकेंगे कि C.M. की कुर्सी के आकर्षण को अपने उसूलों के खातिर ठोकर मार देने वाले केजरीवाल किसी भी प्रकार की सुरक्षा स्वीकार न कर अपनी पार्टी का प्रचा

अधकचरा कानून !

    अंग्रेजों के समय का बना हुआ हमारा कानून आज पंगु प्रमाणित हो रहा है। समय की मांग है कि इसमें उचित संशोधन किये जाएँ। शासन-तंत्र की दुर्बलता और अयोग्यता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी की सज़ा भी क्रियान्वित नहीं की जा सकी।     कई मामलों में झूठी गवाहियों ने कहीं तो दोषियों को मुक्त करवा दिया तो कई बार निर्दोषों को कारावास की कोठड़ी में सड़ने के लिए विवश किया है।   सोहराबुद्दीन एनकाउन्टर के मामले को ही देखें हम। इस मामले में दिनेश एम. एन. (S.P.) जैसा निर्विवाद ईमानदार पुलिस अफसर अभी तक जेल में बंद है। आरोपित अफसर निरपराध हैं या अपराधी, यह तो न्यायलय ही बतायेगा, लेकिन यदि उस एनकाउंटर को फर्जी ठहराया जाता है तो भी ऐसे एनकाउंटर को अपराध क्यों माना जाये ? जैसा भी यह कानून है, मैं इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता। यदि वह दुर्दान्त अपराधी बच निकलता तो न जाने कितने घर और तबाह करता और ज़िंदा पकड़ा भी जाता तो क्या गेरेंटी थी कि हमारा अधकचरा कानून उसे सज़ा दे ही पाता। सज़ा मिल भी जाती तो वह भीतर रह कर भी अपनी गैंग को कमांड करता रहता और फिर क्

कहाँ है राजनीति में शुचिता ?

  धर्म-निरपेक्षता को सभी राजनैतिक दल अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते रहे हैं। आज कोई भी दल ऐसा नहीं है जो धर्म और जाति के उन्माद को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाने से परहेज रखता हो, तिस पर दावा प्रत्येक के द्वारा यही किया जाता है कि एक मात्र वही दल धर्म-निरपेक्षता का हिमायती है। इनके स्वार्थ की वेदी पर धर्म, सत्य और विश्वास,यहाँ तक कि मानवता की भी  बलि चढ़ा दी गई है। कुछ जिम्मेदार किस्म का  मीडिया, देश-समाज के प्रबुद्ध-जन और सुलझे हुए चंद राजनीतिज्ञ कितना ही क्यों न धिक्कारें, वर्त्तमान निर्लज्ज राजनेताओं के कानों पर जूं नहीं रेंगती।  अभी हाल ही श्रीमती सोनिया गांधी ने मुस्लिम धार्मिक नेता बुखारी से संपर्क कर मुस्लिम समुदाय का समर्थन कॉन्ग्रेस के पक्ष में चाहा। क्या कॉन्ग्रेस का हिन्दू मतदाता इस कारण कॉन्ग्रेस से विमुख नहीं होगा ? इसी तरह जब बीजेपी हिंदुओं के ध्रुवीकरण की दिशा में काम करती है तो क्या मुस्लिम मतदाता उससे विमुख नहीं होगा ? यह कैसी राजनीति है जिसमे दोनों सम्प्रदायों के मध्य खाई खोदने का काम दोनों हो दलों के नेता निरंतर किये जा रहे हैं। इसका कैसा भयावह परिणाम होगा, इसका क्य

पथ-विचलन …

    भारतीय राजनीति के पुरोधा, पक्ष और विपक्ष में समान रूप से सम्माननीय युग-पुरुष, कवि-ह्रदय वयोवृद्ध अटल बिहारी बाजपेयी आज शरीर के साथ ही राजनैतिक रूप से भी शक्तिविहीन हो गये हैं और यह बात वह बीजेपी अच्छी तरह से जान रही है जिसके प्राण कभी बाजपेयी जी की सांसों में ही बसते थे। यही तो कारण है  कि अब केवल अडवाणी और खंडूरी जी ही उनकी सुध लेने के लिए जाते हैं, जबकि बाजपेयी जी की कदमबोसी कर अपना भविष्य सँवारने वाले नेता अब अपना भविष्य कहीं और तलाश रहे हैं। परिवर्तन तो समय के साथ युगों-युगों से होता आया है पर बाजपेयी जैसे व्यक्तित्व को हाशिये पर डाल कर विस्मृत कर दिया जाना अनैतिकता ही नहीं, अमानवीयता की श्रेणी में भी आता है। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और बाजपेयी के आदर्शों को भूली, पथ्य-अपथ्य के विवेक को खो चुके रोगी वाली मानसिक स्थिति पा चुकी, बीजेपी के इस प्रकार के नवीनीकरण की कल्पना तो किसी ने भी नहीं की होगी…… 

छोटी-सी गुज़ारिश !

    एक टोकरी में अंगूर, एक टोकरी में आम, एक टोकरी में ताज़ा संतरे और एक टोकरी में मिश्रित फल रखे हुए थे। अंगूरों वाली टोकरी में 40%, आम वाली टोकरी में 70%, संतरों वाली टोकरी में 1 से 2% तथा मिश्रित फलों वाली टोकरी में 95% फल सड़े हुए थे। मैंने अपने एक मित्र से जो काफी सुलझे व्यक्तित्व का मालिक था, पूछा- 'दोस्त, अपने लिए किस टोकरी के फल चुनोगे ?'    मित्र बोला- 'यह कैसा प्रश्न है ? निश्चित ही संतरों वाली टोकरी के।'    मैंने प्रश्न को संशोधित किया- 'लेकिन यदि संतरों वाली या किसी भी अन्य टोकरी के फल तुम्हारी ज़रुरत से कम हों तो क्या करोगे ?'   मित्र ने हँसते हुए जवाब दिया- 'भाई तुम भी यार कुछ बोर्नवीटा वाला दूध पीया करो। कैसा सवाल पूछते हो ? सीधी-सी बात है, 95% सड़े फलों वाली टोकरी को तो हाथ ही नहीं लगाऊंगा और शेष तीनों टोकरियों में से सड़े फलों के अलावा सभी फलों को अपने लिए छांट लूंगा, वेरायटी भी होगी और अलग-अलग स्वाद भी।'     मैं प्रशंसा-भाव से उसकी ओर देखता ही रह गया।    मेरे अच्छे दोस्तों, उपरोक्त वाकये ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर दिया। आज के राजन

प्रत्युत्तर

  मुझसे मेरे मित्रों ने पूछा कि भाई आप तो राजनैतिक स्वच्छता की बहुत बातें करते हो फिर मोदी जी के लिए जहरीली और हिंसक भाषा का प्रयोग कर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने  का प्रयास करने वाले कॉन्ग्रेसी उम्मीदवार (सहारनपुर से) इमरान मसूद के बारे में कुछ क्यों नहीं लिखा। मैंने उन्हें बताया कि मैं केवल इन्सानों के बारे में लिखना पसंद करता हूँ। 

जिस पर नाज़ है हिन्द को वह यहाँ है…

   देश के लिए  अपने उच्च-प्रतिष्ठित सरकारी पद का त्याग कर  कुछ कर  गुजरने के लिए जन-आंदोलन में कूद  पड़ने वाला, अन्ना जी जैसे  भ्रमित व्यक्ति ( ममता बेनर्जी के साथ भी जिस शख्स ने विश्वासघात  किया)  का साथ छोड़कर प्रगति की राह पर चल पड़ने वाला, अपने  आदर्शों के लिए मुख्यमंत्री जैसे पद (जिस पद के लिए सपने में भी कई  नेताओं की  लार टपकती है) को ठोकर मार देने वाले व्यक्ति को कुछ तत्व  भगोड़ा कहते हैं। आश्चर्य है, उनकी जिव्हा लड़खड़ाती नहीं, लेखनी कांपती नहीं। कैसे अपनी आत्मा को मारकर कोई ऐसा सोच सकता है, कह सकता है ? अरविन्द केजरीवाल को कुछ लोग पाकिस्तानी एजेंट कह रहे हैं।  कैसा पाकिस्तानी एजेंट है यह जो देश में महंगाई कम करने, गैस के दाम  कम करने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए लड़ रहा है, जो हिंसा का जवाब अहिंसा से देता है।   . अगर अरविन्द केजरीवाल यह सब करने के बाद भी पाकिस्तानी एजेंट है  तो मेरे इस भारत देश में देशभक्त कौन है ? देशहित के लिए जीने वाला  यह हिंदुस्तानी क्या सत्तालोलुप तथाकथित राष्ट्रवादियों से कई गुना अधिक राष्ट्रवादी नहीं है ?     मन से अज्ञान की प

???

    देश के शीर्षस्थ नेता स्वस्थ राजनैतिक परम्परा का निर्वाह न कर एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं, शब्दों के प्रयोग में अभद्रता की पराकाष्ठा को छू रहे हैं..... प्रत्येक बुद्धिजीवी के लिए विचारणीय बिन्दु है यह। लेकिन अफ़सोस ! हमारे देश के ऐसे नेताओं की जीत का कारण अन्य लोगों के अलावा बुद्धिजीवी भी होते हैं। 

विभीषणों को पहचानो…

   जहाज डूबने की सम्भावना देखकर सबसे पहले चूहे जहाज छोड़ कर भागने लगते हैं, उसी जहाज को जहाँ से अभी तक उन्हें दाना-पानी मिल रहा था।.…धिक्कार है ऐसे अवसरवादियों को !    प्रीत परायों से जो करके अपनों को देता है छोड़,   अवसर पाकर पूत पराये, उसको देते तोड़-मरोड़। 

आगे उजाला है.…

नकारात्मक शक्तियां सुपरिवर्तन को कोसती हैं, लेकिन रहेंगी हमेशा बेअसर…बेअसर....बेअसर....  

बेशर्मी का यह दौर.…

 अपराधियों और दागियों को लोकसभा के टिकट दिए जा रहे हैं। राजनैतिक दल हद-दर्जे के निर्लज्ज होते जा रहे हैं, इन्हें जिताऊ उम्मीदवार चाहिए चाहे वह खूनी या बलात्कारी ही क्यों न हो। जिस विपक्षी पार्टी को पानी पी-पी कर कोसते हैं उसी से आये भगोड़ों को अपने में आत्मसात करने में कोई शर्म-झिझक नहीं। जनता को ठेंगे पर रखते हैं, बेवकूफ समझते हैं यह लोग। बहुत हो गया.....अब जनता को ही पहचाननी है इनकी असलियत। फिर भी...फिर भी अगर ऐसे लोगों को वोट जनता ने दिया तो उसे भुगतना ही होगा अगले पांच वर्षों तक.…और.…और.....जारी रहेगा यह सिलसिला आगे भी , ऐसे ही.… 

राजनीति का गिरता स्तर

विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने नरेन्द्र मोदी (बीजेपी) के लिए निहायत ही अभद्र (लेखन योग्य नहीं) शब्द का प्रयोग किया और इस बेहूदगी के लिए उन्हें कोई अनुताप भी नहीं है । इस वाकिये पर सब लोग 'थू-थू' कर ही रहे थे कि नपा-तुला बोलने के लिए जाना जाने वाले म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कुछ ऐसी ही अभद्रता कर डाली। मोदी और राहुल गांधी की तुलना करते हुए उन्होंने मोदी को 'मूंछ का बाल' तो राहुल को 'पूँछ का बाल' कह दिया। भाई शिवराज जी, आपने शहजादे (आपकी जमात तो यही नाम देती है राहुल को) की शान में ऐसी गुस्ताखी कैसे कर डाली ?     राजनीति में शालीनता के आदर्श उदाहरण स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद, स्व. लाल बहादुर शास्त्री और अटल बिहारी बाजपेयी जैसे कुछ महान नेताओं के बाद अब तो छिछलापन ही छिछलापन रह गया है। आज राजनीति में शुचिता दिया लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिलती।     राजनीति के मैदान में उतरने के बाद जो बिछात लगाई जाती है उसमें कई तरह की पैंतरेबाजी होती है, आलोचना-प्रत्यालोचनाएं होती हैं, एक-दूसरे की खामियाँ भी उधेड़ी जाती हैं, लेकिन राजनीतिबाज जब सामान्य शिष्टता

राजनीति में दो दलीय प्रणाली

    विश्व में ऐसे कुछ देश हैं जहाँ मात्र दो राजनैतिक दल हैं और इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका है। कितना अच्छा हो अगर हम भी इसी प्रणाली का अनुसरण कर सकें। इस प्रणाली को हमारे देश में बाध्यकारी बना लिया जाना निश्चित ही हितकारी सिद्ध होगा, ऐसी मेरी मान्यता है।    यदि मात्र दो दलों  की अवधारणा स्वीकार कर ली जाय तो वह दल कौन से हों इसका निर्धारण भी करना होगा। इन दो दलों को चुनने की प्रक्रिया यह हो सकती है कि वर्त्तमान में जो राजनैतिक दल मौज़ूद हैं उनमें से अधिक स्वीकार्य दो दलों का चयन चुनाव पद्धति से देश की जनता द्वारा किया जावे। शेष सभी राजनैतिक दल या तो इच्छानुसार इन दोनों दलों में स्वयं का विलय कर दें या उन्हें राजनीति छोड़नी पड़ेगी।      अब इस तरह चयनित दो दल 'राइट टु रिकॉल' के नियम से बंधे रहकर स्थायी रूप से देश की राजनीति  का केन्द्र बनेंगे। दो दलीय व्यवस्था के साथ देश की वर्त्तमान प्रणाली ही कायम रखी जा सकती है या फिर अमेरिका के समान डायरेक्ट डेमोक्रेसी प्रणाली के द्वारा राष्ट्रपति-पद्धति अपनाई जा सकती है।     इन दिनों एक-दो दल अपना भावी प्रधानमंत्री घोषित कर तक़रीबन

कब जागेंगे हम ?

अन्ना जी के  रूप में  आई राजनैतिक परिवर्तन की आंधी अब थम चुकी है। दिशाहीनता के कारण अन्ना जी की प्रासंगिकता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है। देश की जनता दिग्भ्रमित है और राजनीति में स्वच्छता अब भी मृग-मरीचिका बनी हुई है।  निर्भीक रावण  शक्ति-प्रदर्शन कर रहे हैं और राम (जनता) ने अपने लिए शस्त्रविहीनता के विकल्प का चयन किया हुआ है।      हर कोई जप रहा है-  'होइहु कोउ नृप, हमें का हानि'…लेकिन हानि होगी और पीढ़ियों को बर्बाद कर देगी, अगर समय रहते नहीं जागे तो।     अन्ना जी की अभी की हक़ीकत बयान करता राजस्थान पत्रिका, दि. 24-2-14   के 'मिर्च मसाला' से लिया गया कॉलम -                                     

मंत्री जी की आपत्तिजनक टिप्पणी

  राजस्थान के जनजाति विकास मंत्री नन्दलाल मीणा के द्वारा ब्राम्हण-बनियों के विरुद्ध की गई अनर्गल टिपण्णी से दोनों वर्गों में जबर्दस्त आक्रोश है। स्वयं की नहीं तो कम से कम अपने संवैधानिक पद की गरिमा का तो ध्यान उन्हें रखना ही चाहिए था। जाट व क्षत्रिय समाज का साथ इस मुद्दे पर ब्राम्हण-बनिया वर्ग को नहीं मिल रहा है, आश्चर्य है। क्षत्रिय समाज को सिद्धांत और नैतिकता के इस गम्भीर विषय पर चिन्तन करना चाहिए और समझना चाहिए कि क्यों नन्दलाल मीणा ने अपने विष-वमन में क्षत्रियों का नाम नहीं उछाला। शायद मीणा जी ने जाटों व क्षत्रियों को इसलिए नहीं लपेटा क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री राजे जी का लिहाज आड़े आ गया होगा।     इस विषय में प्रबुद्ध मीणा बंधुओं से भी मेरी अपेक्षा है कि हिन्दू-समाज को तोड़ने वाली नंदलाल मीणा के द्व्रारा की गई टिप्पणी के विरुद्ध आवाज़ उठाकर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने में भागीदार बनें। 

मीठा सा, प्यारा सा ख्वाब …

 'दि. 19-2-14 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित समाचार के अनुसार यू.पी. के मंत्री शिवाकांत ओझा ने एक समारोह में कहा कि यदि किसी कर्मचारी या अफ़सर ने रिश्वत मांगी तो उल्टा लटकाकर उसकी चमड़ी उधेड़ दी जायेगी। इससे पहले एक मंत्री शिवपाल यादव अफ़सरों के सामने यह कह चुके हैं कि यदि वह मेहनत से काम करते हैं तो  थोड़ी-बहुत चोरी कर सकते हैं।'     ऐसे नमूना-मन्त्रियों से सजी अखिलेश सरकार की अगुआई में तीसरा मोर्चा केंद्र में अगली सरकार बनाने का ख्वाब देख रहा है। खैर, ख्वाब ख्वाब ही तो है, कोई भी देख सकता है।   ख़ुशी-ख़ुशी एक ख्वाब मैंने भी कल देखा। ख़्वाब में मैंने देखा, अन्ना जी ने मुझसे कहा कि यदि उनके 17 सूत्रीय एजेंडे को मैंने मान लिया तो वह मुझे पी.एम. बनवा देंगे। अन्ना जी यह कह कर चले गए और साथ ही मेरा ख्वाब भी टूट गया, सोचने लगा कि अभी कल ही तो उन्होंने कुछ ऐसा ही आश्वासन ममता बेनर्जी को भी दिया है। सिर झटक कर मैंने अपनी आँखों के आगे आया जाला साफ़ किया कि हमारे यहाँ तो इलेक्शन होता है, अन्ना जी पी.एम. सेलेक्ट थोड़े ही कर सकते हैं। ख्वाब तो ख्वाब ही है चाहे मैं देखूं , ममता बेनर्जी देखें,

गुनहगार हम हैं....

        पीडीपी विधायक सैयद बशीर जम्मू-कश्मीर विधानसभा से बाहर निकाले जाने के बाद बाहर आकर मीडिया के सामने अपनी पीड़ा जाहिर करते हैं कि यह कैसी जम्हूरियत है कि उन्हें विधानसभा में बोलने ही नहीं दिया गया। बाहर निकाले जाने से ठीक पहले वह भीतर सुरक्षाकर्मी को थप्पड़ें मार रहे थे सिर्फ इसलिए कि वह  बेचारा स्पीकर के आदेश से उन्हें बाहर निकाल रहा था। यह था एक राजनीतिज्ञ का दोगला चेहरा। वर्त्तमान में हमारे देश के अधिकतर नेता  ऐसे ही हैं। दोषी ऐसे नेता नहीं हैं बल्कि हम हैं जो उन्हें चुन कर भेजते हैं, कभी जाति के आधार पर, कभी धर्म के आधार पर, तो कभी किसी पार्टी-विशेष से अंधे प्रेम के कारण।  देश को रसातल में ले जाने वाले हमारे इस गुनाह के लिए आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ़ नहीं करेगी। 

अपनी क्षमता को पहचानें....

   जब कोई कांटा अपने पांव में चुभता है तो हमसे दर्द बर्दाश्त नहीं होता, फिर हम किसी और की राह में कांटे क्यों बिछाते हैं। राजस्थान की मुख्यमंत्री कहती हैं कि जो काम 66 वर्षों में नहीं हुए उन कामों को 66 दिनों में पूरा करने की उम्मीद उनसे क्यों की जा रही है ? बात बिलकुल सही है, लेकिन इसमें थोड़ी सी विसंगति यह है कि अकेली कॉन्ग्रेस का शासन 66 वर्षों तक न तो देश में, न ही राजस्थान में रहा है। गत 66 वर्षों में से कुछ वर्ष बीजेपी के हिस्से में भी तो आये हैं, इसे क्यों भूला जाए ?     अब दिल्ली की बात की जाय। दिल्ली में 'AAP' के शासन की आलोचना दोनों विपक्षी दल किस आधार पर कर रहे थे, जबकि चारों ओर से घेरे जाने के बावज़ूद उनका 49 दिनों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा-पूरा है।  उनकी सादगी का अनुकरण कर अन्य राज्यों की सरकारों ने भी अपना दामन पाक-साफ़ करने का प्रयास किया है। विपक्ष तो विपक्ष, कॉन्ग्रेस भी समर्थन देने के बावज़ूद पूरी तरह से विपक्षी दल की भूमिका ही निभा रही थी। यहाँ तक कि जनता के हितार्थ लाया जाने वाला 'जनलोकपाल बिल' भी स्वार्थ और दूषित मनोवृत्ति की भेंट चढ़ गया। 'A

यह क्या बोल गये भाई ?

       पढ़ने-सुनने में आता है कि राष्ट्रीय स्वयम् सेवक संघ राजनीति से  स्वयम् को परे रखता है, फिर इसके  सदस्य इन्द्रेश कुमार यह क्या कह गए ? राजस्थान पत्रिका, दि. 12- 2-14 में पृष्ठ 14 पर प्रकाशित एक  समाचार के अनुसार जोधपुर में    कल एक गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में इन्द्रेश जी ने मुसलमानों को  हिंदुस्तान का मालिक बता दिया। भाई इंद्रेश जी, क्या आप धतूरा खा के बोल रहे थे ? भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है और जब यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दू ही देश के मालिक नहीं हैं तो मुसलमान भला इस देश के मालिक कैसे हो गए ? पता नहीं इन्द्रेश जी ने यह कुटिल राजनैतिक वक्तव्य क्योंकर दिया, लेकिन उनका यह दिमागी दिवालियापन आर.एस.एस. की प्रतिष्ठा को आँच पहुंचाने वाला अवश्य है।

झूठे आरोप का सच

 यदि कोई महिला किसी पुरुष पर अपहरण और दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाकर उस पर मुकद्दमा कर दे और बाद में तफ़तीश में यह प्रमाणित हो जाय कि आरोप झूठा था तो क्या उस महिला को मात्र दिन भर कोर्ट में खड़े रहने तथा रु100/- जुर्माने की सज़ा दी जाना पर्याप्त है ? राजस्थान पत्रिका, दि. 12-2-14  में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार जोधपुर में महानगर मजिस्ट्रेट ने उक्त महिला को ऐसी ही सज़ा दी। यह कार्यवाही भी सम्भवतः पहली बार हुई। महिला ने मामला झूठा दर्ज करवाना स्वीकार भी किया। क्या महिला होने मात्र से वह मात्र इतनी ही सज़ा की हक़दार थी ?    यहाँ प्रश्न यह उठता है कि पुरुष खुदा-न-खास्ता यदि स्वयम् को बेक़सूर साबित नहीं कर पाता तो क्या होता ? क्या उसे अपनी ज़िन्दगी का कुछ बेहतरीन समय जेल की कोठरी में बर्बाद नहीं करना पड़ता और उससे भी बढ़कर क्या उसकी इज्ज़त मटियामेट न हो गई होती ? कैसे वह और उसके परिवार के अन्य सदस्य समाज को अपना मुंह दिखाते ?    कानूनविदों को इस पर गहन चिंतन करना होगा कि क्या दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाना दुष्कर्म के समान ही   गम्भीर अपराध नहीं है ?

न्याय-प्रक्रिया का मखौल

    देखने में आया है कि अधीनस्थ न्यायालयों के कई निर्णय उच्चतर न्यायालयों में अपील होने पर टांय-टांय फिस्स हो जाते हैं। उच्चतर न्यायालयों में पिटने वाले निर्णय कभी तो तकनीकी खामियों के चलते पिटते हैं तो कभी दूषित भावनाओं से जानबूझ कर गलती किये जाने से। कई बार किसी एक पक्ष को अनुचित लाभ पहुँचाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से लम्बा खींचा जाता है। ऐसे सभी मामलों में न्यायाधिपति का अपराध क्षमा करने योग्य नहीं है। दूषित भावना से किये गए निर्णय के पीछे कभी-कभार सिफारिश होती है तो अधिकांश मामलों में धन-लोलुपता। इस प्रकार न्याय में जो विलम्ब होता है वह कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति का पूरा जीवन लील लेता है। आवश्यकता है इस बात की कि वर्तमान में परिवर्तन की जो आंधी चली है उसका समुचित उपयोग किया जाकर क़ानून में कड़े संशोधन कर जनता को सही मायने में न्याय उपलब्ध कराया जाय और ऐसे न्यायाधीशों को न्यायालयों की बजाय उनकी सही जगह दिखाई जाय।    न्यायालयों के अलावा जिलाधीश कार्यालय, उपखंड अधिकारी कार्यालय, तहसील कार्यालय तथा ऐसे ही अन्य सरकारी कार्यालयों में जहाँ जनता को न्यायिक प्रक्रियाओं से गु

अन्ना जी की यह कैसी सोच ?

     अन्ना जी की यह कैसी सोच ? समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका', दि. 9-2-14 में प्रकाशित अन्ना जी से सम्बन्धित समाचार में उनके विचार जानकर निराशा हुई। आश्चर्य हुआ कि कैसे इतना अनुभवी और निष्कपट व्यक्ति राजनैतिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त अन्य लोगों के समान सोच रख सकता है ? कहीं यह इस कुंठा का परिणाम तो नहीं कि अरविन्द केजरीवाल ने उनके मार्ग से पृथक मार्ग का चयन किया ? केजरीवाल स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि जिस प्रकार बिना कीचड़ में पांव रखे  कीचड़ की सफाई नहीं की जा सकती, उसी प्रकार राजनीति में प्रवेश किये बिना राजनीति में आई गन्दगी भी साफ नहीं की जा सकती है। सत्याग्रह की भाषा आज की निरंकुश राजनीति नहीं समझती। यह सब-कुछ समझ कर ही अन्ना जी को कोई वक्तव्य जारी करना चाहिए।  वह केजरीवाल से अपनी सारी उम्मीदें मात्र डेढ़-दो माह में पूरी कर देने की अपेक्षा क्यों रखते हैं- ऐसे कार्य जो पूर्व सरकारें पांच-पांच वर्षों में भी पूरा नहीं कर सकी हैं। नहीं भूलना चाहिए कि केजरीवाल के पास जादू की छड़ी नहीं है, उनकी अपनी सीमायें हैं, केन्द्र-सरकार का असहयोगपूर्ण रवैया और सीमित शक्तियां उनके मार्ग की स

'AAP', "AAP' और 'AAP' ---

     'AAP' के सदस्यों के विरुद्ध  झूठी-सच्ची बातें प्रसारित कर उन्हें आलोचना का केंद्र-बिंदु बनाने की हौड़-सी मची हुई है इन दिनों विरोधियों में। विपक्षियों ने बिन्नी जैसे अभद्र एवं महत्तवाकांक्षी व्यक्ति के सम्बन्ध में केजरीवाल जी के दो बयानों को विरोधाभासी बताकर खूब बवाल मचाया। केवल दो-चार व्यक्तियों को छोड़कर जनता से उभरे कुछ नेताओं से बनी नई पार्टी की सरकार में आपस में कुछ असहमति के क्षण आ सकते हैं जो यदा-कदा मनमुटाव का रूप भी ले सकते हैं। मामलों को निपटने के लिए कभी-कभी कूटनीतिक व राजनीतिक वक्तव्य जारी करना पार्टी-हित में ही नहीं शासन-हित में भी ज़रूरी हो जाता है। क्या हमने अपने और केवल अपने हित में अपनी ही कही बात से बदल जाने की प्रवृत्ति अभी तक की स्थापित पार्टियों के नेताओं में नहीं देखी-सुनी ? इस विषय में हम इकतरफा सोच क्यों रखें ? जहाँ तक केजरीवाल जी का प्रश्न है, बिना किसी विपरीत प्रमाण के उनके व्यकित्व व आचरण के प्रति संदेह व्यक्त किया जाना न्यायोचित होगा ? एक पुराना आईआईटीयन जो अतिरिक्त आयुक्त, आयकर जैसे पद को छोड़कर जनता के बीच उसका दर्द बांटने चला आया, जो देश में

राजनीति का यह कैसा खेल ?

   सुनने में आया है कि कॉन्ग्रेस समर्थित सम्पत पाल नामक महिला अपनी महिला गुलाबी गेंग की मदद से डॉ कुमार विश्वास को अमेठी और रायबरेली में घुसने पर डंडे मारने की धमकी दे रही है। क्या उम्दा प्रजातंत्र है यह ! क्या इन दोनों क्षेत्रों में कानून का शासन नहीं है या वहाँ  इंसाफ-पसंद कोई मानव-समूह नहीं है कि यह सब हो पायेगा ? क्या भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को खड़ा कर विजय प्राप्त करने की कूटनीति आज के समय में भी काम आ जायेगी ? क्या इस तरीके से कॉन्ग्रेस लोकसभा की चुनाव-वैतरणी पार कर सकेगी ? क्या लोकसभा में केवल इन दो सीटों के साथ प्रवेश करना चाहती है कॉन्ग्रेस ? क्या महात्मा गांधी की कॉन्ग्रेस है यह ?  और सबसे बड़ा प्रश्न- क्या मैं, इन पंक्तियों का लेखक अब से कुछ वर्षों पहले तक इसी कॉन्ग्रेस का समर्थक हुआ करता था ?

आखिर कब तक ?

  भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी मोदी जी ने गृहमंत्री शिंदे के बयान ( अल्पसंख्यक युवकों की गिरफ़्तारी के सम्बन्ध में ) को लेकर प्रधानमंत्री जी को लिखे पत्र में कहा है- " अपराध अपराध होता है। धर्म के आधार पर तय नहीं हो कि वह दोषी है या बेगुनाह। हमें सुनिश्चित करना होगा कि बिना भेदभाव के इन्साफ मिले। अपराधी का कोई धर्म नहीं होता। इस सियासत से तो देश नीचे चला जायगा।"    मोदी जी ने इस मामले में तुरंत दखल की मांग की है।   कितनी विचित्र और भयावह स्थिति है कि जिस बात की गम्भीरता को मोदी जी ही नहीं, हर आम आदमी समझ रहा है, क्यों प्रधानमंत्री जी को वह बात समझाने की ज़रूरत पड़ रही है। छद्म धर्म-निरपेक्षता का ताना-बाना जो इस शासक-वर्ग ने बुना है, उसमें स्वयं ही उलझकर इनकी पार्टी रहा-सहा जनाधार भी शीघ्र ही खो देगी - ऐसा प्रतीत हो रहा है। परिणामत: कॉन्ग्रेस में कुछ जो अच्छे नेता हैं उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। गृहमंत्री जी को अपना बयान वापस ले देश से क्षमा मांगनी चाहिए।    आश्चर्य इस बात का है कि नवोदित पार्टी 'AAP' ने इस विषय में अपनी नीति अभी तक स्पष्ट नहीं की

एक अच्छी शुरुआत हो ---

  समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर' के अनुसार जाने-माने उपन्यासकार श्री चेतन भगत ने 'AAP' द्वारा दिल्ली में जनहित में लिए गए कुछ निर्णयों की आलोचना की है। चेतन भगत जी की विद्वता को पूरा सम्मान देते हुए कहना चाहूंगा कि उनकी कई बातों  से सहमत नहीं हुआ जा सकता। पानी और बिजली में की गई रियायत कमज़ोर तबके के लिए ज़रूरी थी और इसमें जो धन व्यय होगा उसे 'नुक्सान' की संज्ञा देना अविवेक और जल्दबाजी कहा जायगा। कितना व्यय होगा, इसका सही आंकलन भी सांख्यिकीय विषय है। शासक-वर्ग को जनहित में कहाँ व्यय करना चाहिए और कहाँ नहीं, यह विवाद का बिंदु हो सकता है किन्तु इसके औचित्य का निर्णय जन-साधारण द्वारा नहीं किया जा सकता।      जहाँ तक दिल्ली के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों में आरक्षण का मुद्दा है, निश्चित रूप से यह विषय न केवल विवादास्पद है अपितु अवांछनीय भी है। इस निर्णय पर पुनर्विचार कर इसे निरस्त किया जाना वांछनीय है। चेतन भगत जी ने भी इसे सही नहीं माना यह उचित है लेकिन उनहोंने जिस तरह से इस फैसले को प्रलयंकारी मान कर कथन किया है कि यह निर्णय भारत को विभालित करेगा, यह अत

अच्छी राजनीति ग्राह्य क्यों नहीं ?

  मैं समझ नहीं पा रहा कि किसी नए नेता या पार्टी का उदय लोग पचा क्यों नहीं पाते। क्यों पहले से जमे हुए राजनेता किसी नये को उभरने  देना नहीं चाहते ? क्या राजनीति और सत्ता केवल पूर्व में स्थापित कुछ नेताओं की बपौती है ? 'AAP' का अभ्युदय हुए कुछ ही दिन हुए हैं, उन्हें सत्ता पर काबिज़ हुए भी बमुश्किल दो सप्ताह हुए हैं और उनके काम-काज की आलोचना कुछ विघ्न-संतोषी इस तरह कर रहे हैं जैसे कि इस पार्टी को काम करते हुए चार-पांच साल हो गए हों। जो कुछ केजरीवाल जी की इस सेना ने किया है उसका दशांश भी तो पूर्व की दिल्ली-सरकार और अन्य हालिया चयनित सरकारें नहीं कर पाई हैं अब तक। शायद उनकी अकर्मण्यता का यही बोझ उनके अनुयायियों को अनर्गल प्रलाप के लिए प्रेरित कर रहा है। 'AAP' के कार्यालय पर कुछ अराजक तत्वों द्वारा आक्रमण तथा अमेठी में डॉ. कुमार विश्वास के साथ किया गया दुर्व्यवहार इसका ज्वलंत उदाररण हैं।   एक नये उत्साह और कुछ कर गुजरने की तमन्ना लेकर आये इन नौजवानों को कुछ करने का अवसर तो दो मित्रों ! यदि यह लोग भी निराश करते हैं तो जनता के पास शक्ति है न इन्हें भी उखाड़ फेंकने की। स्वस्थ

वह यादगार दृश्य ---

  कल TV पर एक मूवी देखी। दक्षिण भारतीय एक सुपर स्टार से सजी हुई यह मूवी यूँ तो एक साधारण फॉर्मूला मूवी थी, लेकिन इसके कथानक में जुड़ी दो आदर्शपरक बातें दिल की गहराइयों में बस गईं। 1)  फ़िल्म का नायक एक व्यक्ति की कुछ मदद करता है और जब वह व्यक्ति उसका शुक्रिया अदा करता है तो नायक उससे कहता है कि उसे धन्यवाद नहीं चाहिए बल्कि इस मदद के बदले में वह तीन आदमियों की मदद करे और उन्हें इसी तरह का सन्देश देकर अन्य तीन-तीन आदमियों की मदद करने के लिए कहे।  नायक से मदद प्राप्त करने वाला एक सुपात्र व्यक्ति था। उसने नायक के निर्देशानुसार कार्य किया और समयान्तर में इस सद्प्रेरणा के प्रचार-प्रसार से हज़ारों लोगों का मन-मस्तिष्क मदद की भावना से सुवासित होता चला गया। परिणामतः नायक के उस शहर में सत्कर्म लोगों की जीवनचर्या बन गया।  2)  पांवों से विकलांग कुछ बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए उनकी दौड़-प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। प्रतियोगी बच्चों में से चार-पांच बच्चे लक्ष्य के क़रीब ही थे कि कुछ पीछे रह गए बच्चों में से एक ट्रेक पर गिर पड़ा और चोट लगने से उसके मुख से चीख निकल पड़ी। जैसे ही लक्ष्य के समीप पहुँच

पथ-निर्माता के लिए दो शब्द...

     सड़ी-गली व्यवस्था में सुखद परिवर्तन की  बयार ( हवा ) भी कुछ लोगों के जुकाम का कारण बन जाती है और प्रारम्भ हो जाता है विरोध और मीन-मेख निकालने का नया सिलसिला। सही नेतृत्व का अनुसरण प्रारम्भ में बुद्धिमान लोग करते हैं, लेकिन यथास्थितिवादियों को भी कालान्तर में उनके पीछे चलना ही होता है। अतः हर अवरोध से अविचलित रह कर कर्म-पथ पर निरंतर चलते रहना ही श्रेयस्कर है, वांछनीय है। बढ़ते चलें, बढ़ते चलें, बढ़ते चलें.....

आज की यह सुहानी धूप -

   इतने दिनों की कड़कड़ाती ठण्ड के बाद आज उदयपुर ( राज.) में कुछ तेजी लिये हुए सुकून देती धूप क्या निकली मानो तन-मन को संजीवनी मिल गई। मौसम-विज्ञान के धुरन्धरों की सभी अटकलों को धत्ता बताते हुए गत दो दिनों से चल रही बयार जैसे समय पूर्व ही बसंत के आगमन का सन्देशा दे रही है। परिवर्तन के नियम को प्रतिपादित करने वाली महान प्रकृति के हर चरण को वंदन ! 

अरविन्द केजरीवाल जी के लिए एक सन्देश -

  प्रिय केजरीवाल जी, नव-वर्ष की शुभकामना ! आप की पार्टी 'आप' के उद्भव के साथ ही जागृति की जो चेतना झलकी थी वह क्रांति की लहर बन कर आज पूरे देश में छा गई है। बधाई !   एक विशेष बात आपसे शेयर करना चाहता हूँ।  जिस प्रकार नाव को डूबते देख उसमें सवार लोग कूद कर पास से निकल रहे मजबूत सहारे को थाम लेते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे-जैसे आपकी पार्टी का विस्तार होगा (और कोई इसे रोक नहीं पाएगा ), नेता लोग दूसरी पार्टियां छोड़कर 'आप' में समाहित होने के लिए भागे चले आयेंगे। यहीं पर आपको इतना सतर्क रहने की आवश्यकता होगी जितनी आपको पार्टी के गठन के समय भी नहीं रही होगी। आपकी बौद्धिक क्षमता का लोहा तो देश की सभी पार्टियों के नेताओं ने माना है (भले ही प्रकट में कोई नहीं स्वीकारे ), लेकिन कुछ लोग कुटिलता के सहारे आपको पीछे धकेलने की कोशिश कर सकते हैं।  अतः मुझे लगता है, आपको एक ऐसी सतर्कता समिति का गठन करना चाहिये जो पूरी ईमानदारी से जाँच-परख करके ईमानदार और समर्पित व्यक्ति को ही 'आप' में प्रवेश दे चाहे वह व्यक्ति आम लोगों में से हो या किसी पार्टी से आया हो। सदस्य-संख्या के विस्त