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दिसंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दिल्ली में AAP-मंत्रीमंडल का शपथ-ग्रहण ---

     आज दिल्ली के रामलीला मैदान में 'आप' के नवगठित मंत्रीमंडल के सदस्यों ने पद व गोपनीयता की शपथ ली। केंद्र-सरकारों व विभिन्न राज्य-सरकारों द्वारा अब तक कितनी ही बार शपथें ली जाती रही हैं और तदर्थ समारोह भी आयोजित होते रहे हैं, लेकिन कई मायनों में आज का यह आयोजन अद्भुत और अनुकरणीय था। मंत्रियों का मेट्रो-ट्रेन में सफ़र करके समारोह स्थल पर जाना प्रतीकात्मक रूप से तो अच्छा कहा जा सकता है लेकिन इसे अधिक प्रभावकारी कदम नहीं माना जा सकता। ऐसा किया जाना इतना आवश्यक भी नहीं था क्योंकि सदैव इस तरह यात्रा करना न तो व्यवहारिक है और न ही सम्भव। फिर भी यह समारोह कई मायनों में प्रशंसा-योग्य था। निहायत ही सादगीपूर्ण ढंग से निर्वहित किये गए इस आयोजन में कोई व्यक्ति VIP नहीं था, पार्टी के नाम के अनुरूप ही मंत्री से लेकर सामान्य व्यक्ति तक हर व्यक्ति आम आदमी ही था। मंत्रियों एवं विधायकों के परिवार भी जनता के मध्य ही बैठे थे सामान्य लोगों की तरह। सभी के लिए एक जैसी कुर्सियां, एक-सी सुविधा थी इसलिए प्रवेश-पत्र का भी प्रावधान नहीं था। सही मायनों में लोकतंत्र आज देखा, न केवल दिल्ली-वासियों ने अ

दिल्ली के नये मुख्यमंत्री को शुभकामना-सन्देश -

    केजरीवाल जी को को उनके नए कार्य-क्षेत्र में प्रवेश के लिए बधाई !   आपको मेरी तथा तरक्की-पसंद हर भारतीय की ओर से शुभकामना कि 'AAP' सफलता के नए आयाम स्थापित कर सके। आपको सावधान भी रहना होगा सम्भावित कुचक्रों के विरुद्ध क्योंकि यह तो जानी-समझी हुई बात है कि पड़ौसी की उन्नति किसी से बर्दाश्त नहीं होती, फिर यह तो राजनीति-क्षेत्र है। राजनीति में तो बाप-बेटा भी एक-दूसरे के नहीं होते। वही लोग जो अब तक 'AAP' पर सरकार बनाने का दबाव डाल रहे थे, अब पानी पी-पी कर आपको कोस रहे हैं। कितना हास्यास्पद है यह सब....कोई दीन-ईमान-धर्म नहीं राजनीतिज्ञों और उनके पिछलग्गुओं का। आपके हर आदर्श कदम की आलोचना भी होगी क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री और अटलबिहारी बाजपेयी तथा इन जैसे कुछ ही अन्य नेताओं के द्वारा अपनाई गई राजनीति से परे अब तक की भारतीय राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता की संस्कृति कभी रही ही नहीं है।   केजरीवाल जी ! आप मूल रूप से 'राजनीतिज्ञ' नहीं हैं, इसलिए अब तक परम्परा में रही 'बदले की राजनीति' से भी परहेज रखना चाहिए आपको, क्योंकि यह तो तथाकथित राजनीतिज्ञों का ही

अभी उन्हें तपना है...

प्रजातंत्र भी क्या अजीब शै है ! तुकी-बेतुकी जो चाहे, जब चाहे, बोल ले। जो कहा गया है, सुना गया है- उसके स्रोत की विश्वसनीयता को परखने का प्रयास भी कोई नहीं करता। अफीमघर से निकली गप्पें भी क्रिया-प्रतिक्रियाओं के सहारे सत्य से अधिक आधार पा लेती हैं जन-मानस के मन-मस्तिष्क में।    अभी हाल ही सुनने में आया कि केजरीवाल जी ने मोदी जी को  चुनाव लड़ने की चुनौती दी है और वह भी गुजरात में। है न अफीमखाने की गप्प ? अब, आईआईटीयन केजरीवाल जी इतने भी नादान नहीं कि विश्व-भर में अपनी चमक बिखेरने वाली हस्ती मोदी जी को चुनौती दें। अगर इस ख़बर में तनिक भी सच्चाई है तो केजरीवाल जी ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है।    केजरीवाल जी आम आदमी के प्रतिनिधि हैं- सीधे और सच्चे। जो कुछ भी उन्हें सही लगता है, उस पर बेबाक टिपण्णी कर देते हैं चाहे किसी को बुरा लगे या भला और यही कारण है कि अपने ही गुरु आ. अन्ना जी को भी खरी-खरी कह देते हैं। केजरीवाल जी का कद फिलहाल मुख्यमंत्री की कुर्सी के लायक ही है। इस पद पर अपनी योग्यता प्रमाणित करने के बाद ही जनता उनकी  क्षमता को अगली कसौटी पर कसने के लिए तत्पर हो सकेगी। मोदी जी क

हो जाने दें नये चुनाव...

साँप-छछूंदर की गति हो गई है 'AAP' की ! यदि किसी का भी समर्थन नहीं लेकर सरकार बनाने से इन्कार करते हैं तो लोग कहेंगे कि जनता को नए चुनावों में धकेल दिया और यदि किसी भी एक का समर्थन लेकर सरकार बनाते हैं तो कहेंगे कि यह पार्टी आदर्शों का ढों ग कर रही थी। फिर भी AAP के द्वारा बिना किसी की परवाह किये दृढ़तापूर्वक सरकार बनाने से इन्कार कर दिया जाना उचित होगा, अन्यथा अन्य पार्टियों में और उसमे कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। कुछ प्रतीक्षा करें, हो सकता है कॉन्ग्रेस में से कुछ विधायकों का हृदय-परिवर्तन हो जाय और वे BJP में शामिल हो जाएँ और तब BJP अपनी सरकार बना ले। दोनों पार्टियों की अब तक की संस्कृति तो यही रही है। यदि ऐसा कुछ नहीं होता है तो हो जाने दें नये चुनाव। नये चुनावों का खर्च किसी भी एक बड़े घोटाले से तो कम ही होगा।

यह कैसे भगवान हैं ?

आज के एक समाचार के अनुसार बीकानेर (राज.) में रेजिडेंट डॉक्टर्स एवं किसी मरीज के तीमारदारों के बीच किसी मुद्दे पर कुछ झड़प और मारपीट की घटना हुई और उसके बाद रेजिडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गये मरीजों को ईश्वर के भरोसे छोड़कर। अस्पताल के यह भगवान इतने निर्दयी और बेशर्म क्यों होते जा रहे हैं - यह आज का एक अबूझ सवाल है। हो सकता है पिछली एक-दो घटनाओं में मरीजों के परिजनों की गलती रही हो, लेकिन बाद की अधिकांश घटनाओं में रेजिडेंट्स ने अपनी एकता एवं बहुसंख्यता के उन्माद में न केवल मरीजों एवं उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार किया है बल्कि हड़ताल का सहारा लेने की गैर-जिम्मेदारी भी बरती है। प्रशासन भी दबाव में आकर इनकी उचित-अनुचित मांगें मानने को विवश होता रहा है और जनहित में उनकी हठधर्मिता के आगे झुकता रहा है जो एक शोचनीय विषय बन गया है।    जनता की सेवा की एवज में पल रहे इस चिकित्सक-समुदाय को अपने झूठे अहंकार से बाज आकर अपने कर्त्तव्य को समझना चाहिए और अगर वह ऐसा नहीं करता तो जनता उसे कभी अच्छा सबक सिखा भी सकती है।    खेलों में एक व्यवस्था रखी जाती है कि यदि ठीक मैच के पहले कोई खिलाड़ी घायल या रु