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फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

डायरी के पन्नों से ... "कविता क्या है?"

  कविता क्या है? -  चार पंक्तियों में मेरी अभिव्यक्ति (नई रचना)---  छोटे गड्ढे, कुछ नालों से, नहीं कभी सरिता बनती। कुछ शब्दों की तुकबंदी से, कभी नहीं कविता रचती। पत्थर-दिल को  पिघला दे जो, रोते को बहलाती है। कायर दिल में शोला भर दे,वह कविता कहलाती है।।

समाधान खोजना ही होगा...

     "सब्जी लेने साइकिल पर बाज़ार  जा रही एक सत्रह वर्षीय लड़की से कार में बैठे कुछ मनचलों ने छेड़छाड़ की, विरोध करने पर उसे खींच कर एक ओर ले जाने की कोशिश की और फिर शोर मचाने पर उन बदमाशों ने

डायरी के पन्नों से ..."चंद रुबाइयाँ और मुक्तक"

मेरे अध्ययन-काल की रचनाएँ ...          

दोषपूर्ण प्रशिक्षण

   ऐसी गलती प्रशिक्षु IPS अधिकारी से नहीं होती, यदि सही ट्रेनिंग इन्हें मिली होती। दोषपूर्ण प्रशिक्षण ही इस प्रकार के आचरण का जिम्मेदार है कि इस अधिकारी ने रुतबे वाले बड़े आदमियों पर हाथ डालने की जुर्रत कर दी थी। क्यों नहीं पदस्थापन के पहले इनको बताया गया कि समय देखकर ज़माने के हिसाब से अपने विवेक का प्रयोग कर काम करना होगा! क्यों नहीं इन्हें समझाया गया कि ड्यूटी के दौरान अतिउत्साह दिखाना इनको भारी पड़ सकता है! इसी तरह की अपनी दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के लिए पूर्व में प्रताड़ित किये गये, दण्डित किये गये अन्य अधिकारियों के दृष्टान्त वाले पाठ इनके पाठ्यक्रम में रखे गये होते तो शायद इन्हें सही ढंग से काम करना आ जाता। व्यावहारिक ज्ञान की कमी के कारण ही इन्हें एपीओ होने का दंड मिला है। इनको कहाँ मालूम था कि सरकारी काम करने के दौरान कई बार अपनी आँखें बंद कर लेनी पड़ती हैं!          इन्हें एपीओ करने का आदेश देने वाले अधिकारी, संयुक्त शासन सचिव, जो आज बड़े अधिकारी हैं, ने भी अपनी सरकारी नौकरी के कार्यकाल में न जाने कितनी बार ऐसी स्थितियों को भोगा होगा और अब वह घुट-घुट कर महादेव बने हैं। एपीओ करने

संघ-प्रमुख मोहन भागवत का बयान

     कभी दूर का रिश्ता भी नहीं रहा मेरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से। इस संगठन से जुड़े लोग बतौर आदर्श, देश एवम् हिन्दुत्व के प्रति निष्ठावान हैं, इस धारणा के पोषण के अलावा कभी इनके कार्य-कलापों को जानने-समझने का प्रयास मैंने नहीं किया है। मैं आज कहने जा रहा हूँ संघ के प्रमुख, मोहन भागवत के हालिया बयान के विषय में, जिसने अनावश्यक ही लम्बी-चौड़ी राजनैतिक बहस

Hats off...!

हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द एवम् सद्भाव कभी नष्ट नहीं हो सकते, चाहे ओबेसी जैसे हजारों कुटिल, जहरीले व्यक्ति  दिन-रात ज़हर क्यों न उगलें, जब तक अच्छे दिल वाले, गैरसांप्रदायिक सोच वाले इंसान हमारे भारत देश में मौज़ूद हैं। Hats off !...सलाम...प्रणाम, ऐसी महामना दिव्य विभूतियों को !!                                                           

अहसास (लघुकथा)

                                                                                                                                                             कोई पाँच-छः वर्ष की उम्र रही होगी उसकी। अन्धेरा हो आया था तो थोड़ा डर भी रहा था कलुआ। लेकिन घर (झुग्गी) जाकर करेगा भी क्या? भूख से कुलबुला रहा था सो हो सकता है कुछ खाने-चबाने को मिल जाए यहाँ, यही सोचकर बेचैन निगाहों से इधर-उधर ताक रहा था। निगाहों से अलग उसके नन्हे दिमाग में भी कुछ चल रहा था- उसकी माँ दो बरस पहले भगवान के घर चली गई थी, यही बताया था उसके बापू ने। फिर वह कहीं से दूसरी माँ ले आया था उसके लिए ...लेकिन वह उसकी माँ कहाँ थी, वह तो साल भर के छुटके की माँ थी...और बापू , वह भी तो पहले वाला बापू नहीं रहा था। खाना तो उसे पूरा मिलता नहीं था, छोटी-छोटी बातों पर मार या झिड़की जरूर मिलती थी। घर से आधा-अधूरा कुछ चबेना देकर उसे बाहर भेज दिया जाता था भीख मांगने के लिए। उसका बापू मंडी में मजदूरी करता था और थोड़ा-बहुत जो पैसा मिलता था उसका बड़ा हिस्सा रात को दारू में उड़ा देता था। कलुआ ने अपनी निकर की जेब में हाथ डाल कर अपनी दिन भर की कमाई &