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पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह

परिमार्जन (कहानी)

                                               (1) मुश्ताक अली ने कुछ वर्षों की नौकरी से अच्छी बचत राशि एकत्र कर ली थी। अब वह अपनी नौकरी छोड़ कर कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते थे। संयोग से उनकी मुलाकात एक व्यावसायिक मेले में वीर प्रताप सिंह नामक एक व्यवसायी से हुई। प्रारम्भिक परिचय, आदि के बाद मुश्ताक अली ने बात ही बात में जाहिर किया कि वह कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं और किसी व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने का गुर सीखने के इच्छुक हैं। परिचय की प्रक्रिया में ही वीर प्रताप ने भी उन्हें बताया कि उनका 'नूतन प्लास्टिक इंडस्ट्रीज़' नाम से पाइप-निर्माण का व्यवसाय है और औद्योगिक क्षेत्र स्थित उनकी फ़ैक्ट्री में ही फर्म का ऑफिस है। औपचारिकतावश वीर प्रताप ने उन्हें अपना परिचय कार्ड देकर अपनी फ़ैक्ट्री पर आने का निमंत्रण भी दिया। अगले ही दिन मुश्ताक अली नूतन प्लास्टिक इंडस्ट्रीज़ के ऑफिस पहुँच गए। कुछ औपचारिक बातों के बाद मुश्ताक अली ने उनकी फ़ैक्ट्री देखने की इच्छा व्यक्त की। वीर प्रताप ने अपने मैनेजर को साथ भेज कर उन्हें अपनी फ़ैक्ट्री विज़िट करवाई। मुश्ताक अली ने फ़ैक्ट्री से लौटने के बाद वीर प