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सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फेरी वाला (हास्य-व्यंग्य)

प्रातः बिस्तर से उठा ही था कि फेरी वाले की आवाज़ आई। अस्पष्ट होने से उसकी पूरी हांक समझ में नहीं आई, केवल बाद के दो शब्द सुनाई दे रहे थे - ".......ले लो, .......ले लो।" क्या बेच रहा है, जानने के लिए उठ कर बाहर आया। उसे रोक कर पूछा- "क्या बेच रहे हो भाई?" "अरे साहब, बेचेंगे तो तब न, जब कोई खरीदार हो! हम तो फ्री में दे रहे हैं, फिर भी कोई नहीं ले रहा। आप ही ले लो साहब!" -फेरी वाले ने जवाब में कहा। "केजरीवाल जी ने भेजा है क्या?" "अरे नहीं साहब, कॉन्ग्रेस आलाकमान से आया हूँ।" "ओह, तो क्या दे रहे हो भाई?" "कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद। ले लो साहब!" -बेहद आजिज़ी के स्वर में वह बोला। क्या करता मैं, आप ही बताइये!... भई, मैंने भी मना कर दिया- “नहीं चाहिए भाई, आगे जा कर पूछो।” *****

'हिन्दी दिवस' (लघु कविता)

हिन्दी भाषा की जो आन-बान है,  किसी और की कब हो सकती है!   मेरे देश को परिभाषित करती,   हिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है। *****

वक्त की लकीरें (कहानी)

(1) सिनेमाघर में सेकण्ड शो देख कर एक रेस्तरां में खाना खाने के बाद घर लौट रहे प्रकाश ने जैसे ही मेन रोड़ पर टर्न लिया, देखा, सड़क पर बायीं तरफ एक युवती भागी चली जा रही है। प्रकाश को भी उधर ही जाना था। स्कूटर बढ़ा कर वह युवती के पास पहुँचा। भागते-भागते थक जाने के कारण वह हाँफ़ रही थी और ठंडी रात होने के बावज़ूद पसीने से भरी हुई थी। स्कूटर धीमा कर उसने युवती से भागने का कारण पूछा तो उसने कहा- "वह मेरा पीछा कर रहा है। प्लीज़ मुझे बचा लो।" प्रकाश ने पीछे मुड़ कर देखा, एक बदमाश-सा दिखने वाला व्यक्ति उनकी तरफ दौड़ा चला आ रहा था, जो अब केवल दस कदम की दूरी पर था। प्रकाश ने फुर्ती से स्कूटर रोक कर युवती को पीछे बैठ जाने को कहा। युवती स्कूटर पर बैठती, इसके पहले ही वह बदमाश उनके पास पहुँच गया। प्रकाश स्कूटर से उतर कर युवती व बदमाश के बीच खड़ा हो गया। एक-दो राहगीर उस समय उनके पास से गुज़रे, किन्तु, रुका कोई नहीं। बदमाश ने चाकू निकाल कर प्रकाश के सामने लहराया और बोला- "बाबू, तुम हमारे झमेले में मत पड़ो। इस लड़की को मुझे सौंप दो।" वह बदमाश पेशेवर गुण्डा प्रतीत हो रहा था, किन्तु मज़बूत कद-काठी