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इन्तहा (कहानी)

                                                                                                                                                                    "एक तो रास्ता इतना ख़राब, ऊपर से अंधेरे में बाइक की हैडलाइट के सहारे चलना... तौबा-तौबा! यार अनिरुद्ध! अब और कितना दूर है तुम्हारा माधोपुर?" -बाइक पर पीछे बैठे डॉ. आलोक सिन्हा ने हल्की झुंझलाहट के साथ अपने मित्र से पूछा। "बस, एक किलोमीटर दूर है अब तो। पहुँचने को ही हैं हम लोग।" -सड़क पर नज़र गड़ाए डॉ. अनिरुद्ध ने जवाब दिया।  माधोपुर पहुँचे दोनों मित्र, तो रात के साढ़े आठ बज रहे थे। अपने चाचा पण्डित गोरख नाथ की तबीयत ख़राब होने की ख़बर मिलने से अनिरुद्ध अपने घनिष्ठ मित्र  डॉ. अलोक को साथ लेकर यहाँ आया था। पण्डित जी के घर पहुँच कर बाइक एक ओर खड़ी कर के अनिरुद्ध ने दरवाजा खटखटाते हुए आवाज़ लगाई- "चाचाजी!"  लगभग 65 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ने दरवाजा खोला- "आओ बेटा, भीतर आ जाओ।" पहले अनिरुद्ध और फिर आलोक ने उनके पाँव छूए। दोनों के भीतर आने पर कमरे में एक ओर रखे तख़्ते पर दरी बिछा कर वृद्धा ने उन्हें इशार

'सिलसिला' (रुबाई)

                                                                                                                                 न तुम्हारे हो सके हम, न किसी और ने थामा हमको, ताउम्र मुन्तशिर रहे हम, ऐसा सिलसिला दे दिया तुमने!  कभी कहा करते थे तुम, हमें इश्क करना नहीं आता, तुम्हें तो इल्म ही नहीं, कितने आशिक पढ़ा दिये हमने!  ***** मुन्तशिर = बिखरा-बिखरा  इल्म = जानकारी 

संवेदना

   कदम-कदम पर जब हम अपने चारों ओर एक-दूसरे को लूटने-खसोटने की प्रवृत्ति देख रहे हैं, तो ऐसे में इस तरह के दृष्टान्त गर्मी की कड़ी धूप में आकाश में अचानक छा गये घनेरे बादल से मिलने वाले सुकून का अहसास कराते हैं। मैं चाहूँगा कि पाठक मेरा मंतव्य समझने के लिए सन्दर्भ के रूप में अख़बार से मेरे द्वारा लिए संलग्न चित्र में उपलब्ध तथ्य का अवलोकन करें। एक ओर वह इन्सान है, जिसने एक व्यक्ति के देहान्त के बाद उससे अस्सी हज़ार रुपये में गिरवी लिये मकान पर अपना अधिकार कर उसकी पत्नी सोनिया वाघेला को परिवार सहित सड़क पर  बेसहारा भटकने के लिए छोड़ दिया और दूसरी ओर वह दिनेश भाई, जिन्होंने उस पीड़ित महिला की स्थिति जान कर अपनी संस्था एवं वाघेला-समाज के लोगों की मदद से सेवाभावी लोगों से चन्दा एकत्र कर आवश्यक धन जुटाया और उस परिवार का  घर वापस दिलवाया। धन्य है यह महात्मा, जिसने अपने नेतृत्व में अन्य सहयोगियों को भी मदद के लिए उत्साहित कर यह पुण्य कार्य किया।  सोनिया बेन घरबदर होने के बाद छः माह से फुटपाथ पर रह कर कबाड़ बीन कर अपने चार बच्चों के साथ गुज़र-बसर कर रही थी। इस लम्बी अवधि में कई और लोग भी उस महिला के हा