“Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ, तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी। **********
वाहह आदरणीय !!कितने आशिक पढ़ा दिए हमने👌👌👌
जवाब देंहटाएंजर्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया महोदया!
हटाएंवाह!वाह!सर सराहनीय।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया अनीता जी!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (११-०१ -२०२२ ) को
'जात न पूछो लिखने वालों की'( चर्चा अंक -४३०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार महोदया, अवश्य उपस्थिति दूँगा !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच "सन्त विवेकानन्द" जन्म दिवस पर विशेष (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय मयंक जी, निश्चित ही उपस्थित रहूँगा!
हटाएंक्या बात है .... उम्दा रूबाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया अमृता जी!
हटाएंबहुत सुंदर उत्कृष्ट सृजन ।
जवाब देंहटाएंमेरी इस साधारण रचना को इतना सम्मान देने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ आ. जिज्ञासा जी!
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जवाब देंहटाएंवाह सर 👏👏
सच में लाजवाब पंक्ति👌
धन्यवाद... आभार मनीषा जी!
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सराहनीय सृजन।
हार्दिक आभार महोदया!
हटाएंउत्कृष्ट रचना...
जवाब देंहटाएंआभार आपका विकास जी!
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