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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खिदमत (कहानी)

(1)    कुछ असामाजिक गतिविधियों के चलते सांप्रदायिक दंगा हो जाने के कारण शहर में दो दिन तक कर्फ्यू रहने के बाद पिछले तीन दिनों से धारा 144 लगी हुई थी। प्रशासन की तरफ से किसी भी खुराफ़ात या दंगे से निपटने के लिए माकूल व्यवस्था की गई थी। शहर में हर घंटे-दो घंटे में सायरन बजाती पुलिस और प्रशासन की जीपें व कारें सड़क पर दौड़ रही थीं।  रात के नौ बज रहे थे। मनसुख शर्मा की तबीयत आज कुछ ठीक नहीं थी। बिस्तर पर अधलेटे पड़े वह अपनी पत्नी मनोरमा के साथ टीवी पर आज की ख़बरें देख रहा था। बेटा उदित और बिटिया अलका दूसरे कमरे में बैठे कैरम खेल रहे थे। किसी के द्वारा ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया जाने पर मनसुख देखने के लिए बरामदे से हो कर दरवाज़े की तरफ जा रहां था कि मनोरमा ने टोका- "देखो, सावधान रहना। रात का समय है, कोई गुंडा-बदमाश ना हो।" मनसुख प्रत्युत्तर में कुछ भी नहीं बोला। उसने बाहर की लाइट ऑन की और दरवाज़े के पास कोने में रखी छोटी लाठी एक हाथ में थाम कर दरवाज़ा थोड़ा सा खोला। बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा था।  मनसुख ने पूछा- "बोलो भाई, क्या चाहिए?" "भाई साहब, मैं तकलीफ में हूँ, मुझे भीतर आ

राधे-राधे (लघुकथा)

  वृद्ध दामोदर जी पिछले कई दिनों से एक जटिल रोग से ग्रस्त थे। लम्बी चिकित्सा के बाद थक-हार कर डॉक्टर्स ने एक दिन कह दिया कि अब उनका अधिक समय नहीं बचा है, तो घर वाले उन्हें घर ले आये थे। बड़ा बेटा भी नौकरी से छुट्टी ले कर कल घर आ गया था। वह पूरी तरह से होश में तो थे, किन्तु हालत कुछ ज़्यादा ख़राब हो रही थी। बेटे भगवती लाल ने आज सुबह फोन कर के निकट के कुछ सम्बन्धियों को बुला लिया था। जानकारी मिलने पर पड़ोस से भी तीन-चार लोग आ गए थे।  आगन्तुक मेहमानों में से कुछ तो दामोदर जी के कमरे में रखी एक अन्य चारपाई पर और कुछ कुर्सियों पर बैठे थे।  मोहल्ले में कई लोग ऐसे भी थे, जो सूचना मिलने के बावज़ूद नहीं आये थे। सूचना देने वाले सज्जन को एक महाशय ने तो खुल कर कह भी दिया- “भाई साहब, भगवान उनको जल्दी ठीक करें, पर हम तो उनके वहाँ नहीं जाने वाले।”  “अरे भैया जी, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? सुना है, वह बेचारे एक-दो दिन के ही मेहमान हैं।” “आप को तो जुम्मे-जुम्मे चार दिन हुए है इस बस्ती में आये। यह दामोदर जी बच्चों-बूढ़ों सभी से चिड़चिड़ाते रहते थे। अब किसका मन करेगा ऐसे आदमी से मिलने जाने का?” “आखिर वज़ह क्या थी उ