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'महरी' (लघु कथा)

                                                            नंदिनी ने बाहर की तरफ का एक कमरा एक साल से घर की महरी जमना को दे रखा था। जमना के काम से नंदिनी बहुत खुश थी। आठवें दर्जे तक शिक्षित जमना का पति चार कि.मी. दूर अपने गाँव में मजदूरी करता था। जमना सप्ताह के छः दिन नंदिनी के यहाँ रहती थी और एक दिन अपने पति के साथ रहने के लिए गाँव चली जाती थी। वह एक दिन भी नंदिनी के लिए पहाड़ बन जाता था, क्योंकि जमना के होते नंदिनी को घर का पत्ता भी नहीं हिलाना पड़ता था। कल सुबह जब जमना ने अपने पति की बीमारी का कारण बता कर दो माह की छुट्टी चाही, तो नंदिनी को बहुत अखरा था। उसने नाराज़ होकर उसका हिसाब चुकता कर कह दिया था- "तुम अपने  पति को सम्हालो, मैं दूसरी महरी रख लूंगी।"     जमना नंदिनी की ओर देखती रह गई थी और उदास स्वर में बोली थी- "जैसी आपकी इच्छा मेमसाब, अब घरवाला बीमार हो तो उसको तो सम्हालना ही पड़ेगा न! हम दोनों के अलावा और कोई घर में है भी तो नहीं जो उनकी तीमारदारी करे। मैं कल आकर मेरा सामान ले जाऊँगी।", यह कह कर वह अपने गाँव चली गई थी।    नंदिनी उसके काम से इतनी संतुष्ट थी कि