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सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गिरा हुआ आदमी (लघुकथा)

सेठ गणपत दयाल के घर के दरवाजे के पास दीनू जाटव जैसे ही पहुँचा, उसने मकान के भीतर से आ रही रोने की आवाज़ सुनी। ठिठक कर वह वहीं रुक गया। कुछ रुपयों की मदद की उम्मीद लेकर वह यहाँ आया था। उसकी जानकारी में था कि सेठ जी आज घर पर अकेले हैं, क्योंकि सेठानी जी अपने बेटी को लेने उसके ससुराल गई हुई थीं। वह लौटने लगा यह सोच कर कि शायद सेठानी जी बेटी-नातिन को ले कर वापस आ गई होंगी, बाद में आना ही ठीक रहेगा। पाँच-सात कदम ही चला होगा कि दबी-दबी सी एक चीख उसे सुनाई दी। सड़क के दूसरी तरफ बैठा एक कुत्ता भी उसी समय रोने लगा था। किसी अनहोनी की आशंका से वह घबरा गया और वापस गणपत दयाल के घर की तरफ लौटा। 'किसकी चीख हो सकती है यह? सेठ जी की नातिन अगर आई हुई है तो भी वह चीखी क्यों होगी? क्या करूँ मैं?', पशोपेश में पड़ा दीनू दरवाजे के पास आकर रुक गया। तभी भीतर से फिर एक चीख के साथ किसी के रोने की आवाज़ आई। अब वह रुक नहीं सका। उसने निश्चय किया कि पता तो करना ही चाहिए, आखिर माज़रा क्या है! हल्का सा प्रहार करते ही दरवाजा खुल गया। दरवाजा भीतर से बन्द किया हुआ नहीं था। भीतर आया तो बायीं ओर के कमरे से आ रही किसी के

अतिक्रमण (कहानी)

  (1) इंटरवल के बाद रजनी अपने विद्यालय का राउन्ड लगा कर अपने कार्यालय-कक्ष में लौटी तो दसवीं कक्षा की छात्रा अरुणा के साथ कोई सज्जन वहाँ बैठे थे। वह समझ गई कि अरुणा उसके आदेशानुसार अपने पिता को लेकर आई है। जैसे ही वह अपनी कुर्सी पर बैठी , अरुणा ने अपने पिता का परिचय कराया - “ मैडम , यह मेरे पापा हैं। ” “ ठीक है , तुम जाओ अपनी क्लास में। ” - रजनी ने कहा।     अरुणा के उसकी कक्षा में जाने के उपरान्त रजनी ने परिचय की व्यावहारिकता पूरी होने पर अरुणा के पापा ओम प्रकाश जी के साथ लगभग तीस मिनट तक बातचीत की। वार्तालाप की समाप्ति के बाद ओम प्रकाश जी ने विदा लेते हुए कहा- “ आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मैडम कि आपने मुझे सारी बात बताई। अब से हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे। "  ओम प्रकाश जी के जाने के बाद रजनी कुर्सी पर सिर टिका कर बैठ गई। विचार-श्रंखला ने उसे अपने जीवन के बीस वर्ष पहले के समय में धकेल दिया , जब वह ब्याह कर इंजीनियर चंद्र कुमार के धनाढ्य व प्रतिष्ठित परिवार में आई थी।       विवाह के बाद की पहली रात्रि ...      " तुम आकाश के चंदा नहीं , मेरे माथे के चाँद हो प्रियतम! " &qu