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अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वैचारिक दोगलापन

   सर्वप्रथम तो मैं अपने मित्रों को यह बता दूँ कि मेरे कई मित्र भाजपा से हैं तो कई कॉन्ग्रेस से। मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि AAP के किसी छोटे-बड़े नेता से मेरा दूर-दूर तक कोई परिचय नहीं है जब कि मैं केजरीवाल का unconditional समर्थक हूँ।   अब मैं आपसे कल का वाकया share करना चाहता हूँ। कल रात मैं अपने एक मित्र के घर भोजन पर गया था। यहाँ, यह बताना असन्दर्भित नहीं होगा कि मेरे यह मित्र एक अन्य पार्टी से प्रतिबद्धता के कारण केजरीवाल को हद दर्जे तक नापसंद करते हैं। खैर, भोजन के बाद मित्र के आग्रह पर मैं कुछ देर वहीँ रुका हुआ था कि तभी उन्होंने TV ऑन कर दिया। 'color' चैनल पर 'बालिका-वधू' का एपिसोड दिखाया जा रहा था।   कल के एपिसोड में इस कहानी के एक प्रमुख पात्र, डॉ जगदीश को चुनाव में खड़ा होता दिखाया गया है।    डॉ जगदीश को उनके गांव/शहर वालों ने राजनीति में पहली बार उतारा है ताकि स्वच्छ राजनीति के जरिये क्षेत्र का विकास हो सके। उसके विरुद्ध खड़ा है राजनीति के दांव-पेच में माहिर एक पुराना खिलाड़ी जो येन-केन-प्रकारेण चुनावी जंग को जीतना चाहता है। बीच-बीच में बात भी कर रहे हम द

16 मई, 2014 के बाद.....

  16 मई, 2014 के बाद भारत देश की धरती पर कोई इंसान मौज़ूद नहीं होगा क्योंकि मोदी के विरोधियों को गिरिराज सिंह के अनुसार पाकिस्तान जाना होगा और मोदी के समर्थकों को फ़ारूक़ अब्दुल्ला के अनुसार समुद्र में डूब जाना होगा। ....... जय हिन्द !

आज का मेरा सुविचार

    'घर के बाहर यार (दोस्त) और घर के भीतर प्यार (जीवन-साथी) हो तो ऐसा हो कि आपके हर लम्हे में उसका वज़ूद आपके जीने का सबब बन जाए।'   

कई रूप शैतान के

   कहते हैं इस धरती पर भगवान कई रूपों में  मिल जाता है, ठीक उसी तरह शैतान भी अलग-अलग रूपों में कई चेहरों के पीछे छिपा नज़र आता है। इसका नज़ारा इस चुनावी माहौल में हाल के दिनों में खूब ही देखने को मिला है। चन्द दिनों की बात है, कॉन्ग्रेसी नेता इमरान मसूद ने भाजपा के नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी काटने का प्रलाप किया था, इसके कुछ ही समय बाद सपा के मुलायम सिंह बलात्कारियों पर नरमी की वकालत कर जनता की थू-थू का पात्र बने थे और अब भाजपा (बिहार) नेता गिरिराज सिंह ने भी एक घृणित, आतंककारी बयान दिया है कि मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान जाना होगा। ऐसा कहते वक्त उन्होंने ऐसी कोई वसीयत भी नहीं दिखाई जिसमें भारत देश के पौराणिक किसी सम्प्रभु स्वामी ने इस देश की जागीर उनके नाम कर दी हो। उपरोक्त बयान देकर गिरिराज सिंह ने सम्भवतः मोदी जी (यदि PM बनते हैं) के मंत्रिमण्डल में स्थान तलाशने का प्रयास किया है, लेकिन वस्स्तुतः तो उन्होंने मोदी जी और भाजपा दोनों का ही अहित किया है। यही नहीं, उन्होंने उक्त कुटिल वक्तव्य से स्वयं अपना भी अहित ही किया है। तानाशाही सोच वाले ऐसे लोगों के कारण ही भाजपा अपने बू

हम सब एक हैं.…

    मेरे अच्छे दोस्तों  (fb के भीतर व बाहर के, दोनों ही) !    जितना भी मेरे मन में आप सब के लिए प्यार है उसको एकबारगी अपनी पूरी शक्ति से एकत्र कर आपको समर्पित करते हुए पूरी नम्रता के साथ अपनी भावना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया पूर्वाग्रहों से मुक्त हो मेरे कथन को पढ़ें, समझें व इस पर मनन करें।    मित्रों, शहर में, देश में, जब हिन्दू-मुसलमनों को आपस में लड़ते-झगड़ते देखता हूँ, fb पर एक-दूसरे के विरुद्ध कटुता फैलाते देखता हूँ तो मेरा मन रो पड़ता है। सोचिये, हम भारतवासियों को अनगिनत शहीदों के जीवन की कीमत चुकाने पर कितने ही युगों की पराधीनता के बाद स्वतन्त्रता की सांसें नसीब हुई हैं। उन शहीदों में हिन्दू भी थे तो मुसलमान भी। मुग़ल साम्राज्य से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक के समय में हिन्दू और मुस्लिम इस कदर आपस में मिले-जुले रहे हैं कि कुछ अपवादों के अलावा कहा जा सकता है कि भाइयों की तरह ही रहे हैं। जहाँ तक झगड़ने की बात है क्या भाइयों में झगड़ा नहीं होता ? दोनों सम्प्रदायों के लोगों की भाषा और संस्कृति भी इस कदर घुल-मिल गई है कि अब अलगाव करना सम्भव नहीं है। जब हमने एक-दूसरे के

निर्बल व्यक्ति ही हिंसा का सहारा लेता है.…

मानसिक स्तर पर जिस ऑटो-चालक की दो पैसे की औकात नहीं है, उसने केजरीवाल को थप्पड़ मारा।  केजरीवाल पर यह दूसरा प्रहार था। ऐसा एक पागल व्यक्ति की व्यक्तिगत सोच के कारण नहीं होता, निश्चित ही दलगत संकीर्णता और छद्म संकेत ही इसके पीछे के कारण हुआ करते हैं। इससे पहले कितने भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को किसी आम आदमी ने थप्पड़ मारा है ? केजरीवाल ने उस घिनौने आदमी को क्षमा भी कर दिया है। कमीनेपन की इस पराकाष्ठा को देखकर ऐसी ही सोच वाले कुछ घटिया लोग इसे भी 'आप' की ही नौटंकी कह रहे हैं। इस घटना की निंदा के बजाय इस तरह का कमेंट करने वाले, क्या उस ऑटो-चालक से भी अधिक निम्न स्तर के लोग नहीं हैं? विपक्षियों की यह कुटिल राजनीति क्या सामान्य-जन के गले उतरेगी ?  सुमन शेखर का चवन्ना मसखरापन भी काम नहीं आने वाला है। आम आदमी को अधिक समय तक गुमराह नहीं किया जा सकेगा।  भगोड़ा कहने वाले ओछी सोच के लोग यदि थोड़ा भी अपने दिमाग (अगर हो तो) का इस्तेमाल करें तो समझ सकेंगे कि C.M. की कुर्सी के आकर्षण को अपने उसूलों के खातिर ठोकर मार देने वाले केजरीवाल किसी भी प्रकार की सुरक्षा स्वीकार न कर अपनी पार्टी का प्रचा

अधकचरा कानून !

    अंग्रेजों के समय का बना हुआ हमारा कानून आज पंगु प्रमाणित हो रहा है। समय की मांग है कि इसमें उचित संशोधन किये जाएँ। शासन-तंत्र की दुर्बलता और अयोग्यता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी की सज़ा भी क्रियान्वित नहीं की जा सकी।     कई मामलों में झूठी गवाहियों ने कहीं तो दोषियों को मुक्त करवा दिया तो कई बार निर्दोषों को कारावास की कोठड़ी में सड़ने के लिए विवश किया है।   सोहराबुद्दीन एनकाउन्टर के मामले को ही देखें हम। इस मामले में दिनेश एम. एन. (S.P.) जैसा निर्विवाद ईमानदार पुलिस अफसर अभी तक जेल में बंद है। आरोपित अफसर निरपराध हैं या अपराधी, यह तो न्यायलय ही बतायेगा, लेकिन यदि उस एनकाउंटर को फर्जी ठहराया जाता है तो भी ऐसे एनकाउंटर को अपराध क्यों माना जाये ? जैसा भी यह कानून है, मैं इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता। यदि वह दुर्दान्त अपराधी बच निकलता तो न जाने कितने घर और तबाह करता और ज़िंदा पकड़ा भी जाता तो क्या गेरेंटी थी कि हमारा अधकचरा कानून उसे सज़ा दे ही पाता। सज़ा मिल भी जाती तो वह भीतर रह कर भी अपनी गैंग को कमांड करता रहता और फिर क्

कहाँ है राजनीति में शुचिता ?

  धर्म-निरपेक्षता को सभी राजनैतिक दल अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते रहे हैं। आज कोई भी दल ऐसा नहीं है जो धर्म और जाति के उन्माद को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाने से परहेज रखता हो, तिस पर दावा प्रत्येक के द्वारा यही किया जाता है कि एक मात्र वही दल धर्म-निरपेक्षता का हिमायती है। इनके स्वार्थ की वेदी पर धर्म, सत्य और विश्वास,यहाँ तक कि मानवता की भी  बलि चढ़ा दी गई है। कुछ जिम्मेदार किस्म का  मीडिया, देश-समाज के प्रबुद्ध-जन और सुलझे हुए चंद राजनीतिज्ञ कितना ही क्यों न धिक्कारें, वर्त्तमान निर्लज्ज राजनेताओं के कानों पर जूं नहीं रेंगती।  अभी हाल ही श्रीमती सोनिया गांधी ने मुस्लिम धार्मिक नेता बुखारी से संपर्क कर मुस्लिम समुदाय का समर्थन कॉन्ग्रेस के पक्ष में चाहा। क्या कॉन्ग्रेस का हिन्दू मतदाता इस कारण कॉन्ग्रेस से विमुख नहीं होगा ? इसी तरह जब बीजेपी हिंदुओं के ध्रुवीकरण की दिशा में काम करती है तो क्या मुस्लिम मतदाता उससे विमुख नहीं होगा ? यह कैसी राजनीति है जिसमे दोनों सम्प्रदायों के मध्य खाई खोदने का काम दोनों हो दलों के नेता निरंतर किये जा रहे हैं। इसका कैसा भयावह परिणाम होगा, इसका क्य

पथ-विचलन …

    भारतीय राजनीति के पुरोधा, पक्ष और विपक्ष में समान रूप से सम्माननीय युग-पुरुष, कवि-ह्रदय वयोवृद्ध अटल बिहारी बाजपेयी आज शरीर के साथ ही राजनैतिक रूप से भी शक्तिविहीन हो गये हैं और यह बात वह बीजेपी अच्छी तरह से जान रही है जिसके प्राण कभी बाजपेयी जी की सांसों में ही बसते थे। यही तो कारण है  कि अब केवल अडवाणी और खंडूरी जी ही उनकी सुध लेने के लिए जाते हैं, जबकि बाजपेयी जी की कदमबोसी कर अपना भविष्य सँवारने वाले नेता अब अपना भविष्य कहीं और तलाश रहे हैं। परिवर्तन तो समय के साथ युगों-युगों से होता आया है पर बाजपेयी जैसे व्यक्तित्व को हाशिये पर डाल कर विस्मृत कर दिया जाना अनैतिकता ही नहीं, अमानवीयता की श्रेणी में भी आता है। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और बाजपेयी के आदर्शों को भूली, पथ्य-अपथ्य के विवेक को खो चुके रोगी वाली मानसिक स्थिति पा चुकी, बीजेपी के इस प्रकार के नवीनीकरण की कल्पना तो किसी ने भी नहीं की होगी……