मानसिक स्तर पर जिस ऑटो-चालक की दो पैसे की औकात नहीं है, उसने केजरीवाल को थप्पड़ मारा। केजरीवाल पर यह दूसरा प्रहार था। ऐसा एक पागल व्यक्ति की व्यक्तिगत सोच के कारण नहीं होता, निश्चित ही दलगत संकीर्णता और छद्म संकेत ही इसके पीछे के कारण हुआ करते हैं। इससे पहले कितने भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को किसी आम आदमी ने थप्पड़ मारा है ? केजरीवाल ने उस घिनौने आदमी को क्षमा भी कर दिया है।
कमीनेपन की इस पराकाष्ठा को देखकर ऐसी ही सोच वाले कुछ घटिया लोग इसे भी 'आप' की ही नौटंकी कह रहे हैं। इस घटना की निंदा के बजाय इस तरह का कमेंट करने वाले, क्या उस ऑटो-चालक से भी अधिक निम्न स्तर के लोग नहीं हैं? विपक्षियों की यह कुटिल राजनीति क्या सामान्य-जन के गले उतरेगी ? सुमन शेखर का चवन्ना मसखरापन भी काम नहीं आने वाला है। आम आदमी को अधिक समय तक गुमराह नहीं किया जा सकेगा।
भगोड़ा कहने वाले ओछी सोच के लोग यदि थोड़ा भी अपने दिमाग (अगर हो तो) का इस्तेमाल करें तो समझ सकेंगे कि C.M. की कुर्सी के आकर्षण को अपने उसूलों के खातिर ठोकर मार देने वाले केजरीवाल किसी भी प्रकार की सुरक्षा स्वीकार न कर अपनी पार्टी का प्रचार बिकुल आम आदमी की तरह ही कर रहे हैं।
इस युगपुरुष के त्याग और तपस्या के आस-पास भी कोई अन्य उम्मीदवार नहीं ठहरता।
सुनने में आया है कि कुछ सिरफिरे आतंकपोषी, भाजपा के P.M. उम्मीदवार मोदी जी के लिए खतरा बन रहे हैं। ईश्वर न करे यदि मोदी जी कोई खरोंच भी पहुंची तो क्या हम यह बर्दाश्त कर पाएंगे ? यदि नहीं, तो राजनैतिक प्रतिद्वन्दी ही सही, सच्चाई की राह पर चलने वाले, भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले इस युवा क्रन्तिकारी के प्रति ऐसी कठोर सोच क्यों ? अपनी मानवीय संवेदनाओं (यदि मन में बची हों ) को उभरने दें और घृणा त्याग कर केवल व केवल स्वच्छ और अहिंसक राजनीति को ही प्रश्रय दें।
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