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कोई तो दोषी है …

     कितनी अच्छी व्यवस्था थी- हर 15-20 फीट पर सड़कों पर छोटे-बड़े गड्ढे यानि कि अघोषित स्पीड-ब्रेकर थे। किशोर, जवान, बुजुर्ग, सभी बहुत ही सावधानी से वाहन चलाते थे।     नगर निगम के चुनावों के चलते इन दिनों सड़कों का डामरीकरण करके यातायात एकदम सुगम कर दिया गया है।     अब आलम यह है कि लम्बे समय की आदत के कारण बुजुर्गों सहित कुछ जिम्मेदार किस्म के लोग अब भी सड़कों पर धीमे-धीमे  ही वाहन चला रहे हैं और रफ़्तार के बाज़ीगर, शोहदे किस्म के लोग बेतहाशा अपने वाहन दौड़ाते हुए कई बार धीमे चलने वाले व्यक्ति को टक्कर मार देते हैं। धीमे चलने वाले लोग कुसूरवार भी तो हैं, वह क्यों नहीं सड़कों पर फर्राटे मारते, जबकि सड़कें शानदार बना दी गई हैं।     कोई न कोई तो दोषी है। कुल मिलाकर यही कहना उचित होगा कि बेड़ा गर्क हो चुनावी राजनीति का, जिसके कारण सड़कों का उद्धार हुआ है।