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डायरी के पन्नों से ..."एक प्रस्तुति और..."

            विगत माह की रचना ...      दो रुबाइयाँ - हमीं ने  दिया  रुतबा उनको, हम  से  ही  गिला करने लगे, वो राहों में हमकदम क्या हुए, खुद को ही खुदा कहने लगे।  ***  हममें  वो  ताक़त  है,  वो  जज़्बा  है,    कि हर मुश्किल को आसां बना देंगे।  कुछ  क़दम मेरे  हमक़दम तो बनो,  हम  आसमां  भी छू के  दिखा देंगे।  *****

डायरी के पन्नों से ... 'नई रचना'

पेश हैं मेरी दो नई रचनायें मेरे दोस्तों...  बेवफ़ा तेरी बेवफ़ाई  का,                                 कब तुझसे हमने शिकवा किया है, उम्मीदेवफ़ा में जिए जायेंगे क़यामत तक,                                 गर ज़िन्दगी ने हमें धोखा न दिया।                          -------------         आरज़ू हो तुम, मेरी चाहत हो, दिल का इक अरमान हो तुम।         ज़र्रा  नहीं  हो, सितारा नहीं  हो,  मेरे लिए, मेरी जां हो तुम।