विगत माह की रचना ... दो रुबाइयाँ - हमीं ने दिया रुतबा उनको, हम से ही गिला करने लगे, वो राहों में हमकदम क्या हुए, खुद को ही खुदा कहने लगे। *** हममें वो ताक़त है, वो जज़्बा है, कि हर मुश्किल को आसां बना देंगे। कुछ क़दम मेरे हमक़दम तो बनो, हम आसमां भी छू के दिखा देंगे। *****