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ख़्वाब / हकीकत (प्रहसन)

   मैं भी न दोस्तों, कैसे-कैसे अजीब सपने देखने लगा हूँ! कल सपने में मैं आह-आह पार्टी में था और वाह-वाह पार्टी को भला-बुरा कह रहा था। आज के सपने में देखा कि वाह-वाह पार्टी में शामिल हो कर आह-आह पार्टी को गालियाँ दे रहा हूँ 🙂🙃।

कुछ मन की बात... (लेख)

    एक अन्तराल के बाद मित्र त्रिलोचन जी घर आये थे। हम दोनों बाहरी दालान में बैठे थे। कुछ बातचीत शुरू हो उसके पहले मैंने पूछा- "क्या लोगे मित्र, चाय या कॉफी?" "नहीं यार, कुछ भी नहीं। बस पानी पिला दो, बहुत प्यास लग रही है।" मैं गिलास में पानी ले कर आया, तो त्रिलोचन जी बोले- "यह क्या? तुम तो यह पानी गाय के तबेले से निकाल कर लाये हो। यह क्या बेहूदगी है?" "अरे, तुमने देखा नहीं, मैंने इसका संक्रमण मिटाने के लिए इसमें कुछ कण पोटेशियम परमेंगनेट के डाल दिए हैं। थोड़ी बदबू ज़रूर है, लेकिन नाक बन्द कर के पी सकते हो।" "बहुत हो गया। कौन-सी दुश्मनी निकाल रहे हो? मैं चलता हूँ।" -नाराज़ हो कर वह उठ खड़े हुए।  "बैठो, बैठो मित्र, नाराज़ मत होओ। पहले यह बताओ, इसे पीने से तुम्हारी प्यास तो बुझ जाती न?"  "तो क्या प्यास बुझाने के लिए कुछ भी पी लूँगा?" -अनमने ढंग से कुर्सी पर वापस बैठते हुए त्रिलोचन जी ने कहा। "यार, एक बात बताओ। तुम्हारे व्हॉट्सएप मैसेज में कल जब मैंने हिन्दी की दो अशुद्धियाँ बताई थीं, तो तुमने कहा था कि अशुद्धि होने

काम वाली बाई (प्रहसन)

"मैडम जी, मैं आपसे ज़्यादा सुन्दर हूँ न?" "यह किसने बोला तुमसे?" "जी, साहब कह रहे थे।" मैडम जी ने घूर कर देखा काम वाली बाई को और फिर शीशे के पास जा कर खुद को देखा।  उल्लेखनीय यह नहीं है कि उस दिन साहब के साथ क्या गुज़री, हाँ, अगले दिन काम वाली बाई को घर से ज़रूर निकाल दिया गया।  जो हुआ सो हुआ, हैरानी इस बात की है कि लोग सच को बर्दाश्त क्यों नहीं कर पाते 😜 ।  *******

CAA के विरोध का औचित्य?

         भारत के बाहर विदेशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्ला देश) में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग (गैर मुस्लिम) वहां की सरकारों व मुस्लिम जनता के द्वारा लगातार प्रताड़ित किये जाते रहे हैं। अपने धर्म, अपनी अस्मिता, अपनी सम्पत्ति और यहाँ तक कि अपने आस्तित्व की रक्षा कर पाना उनके लिए दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में, जिनसे बन पड़ा, उन देशों से भाग कर भारत में आ गए और वर्षों से यहाँ शरणार्थी का जीवन जीते रहे हैं। उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी थी। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाई और ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक व निर्भीक जीवन जी सकने का मार्ग प्रशस्त किया एवं तदर्थ दिसम्बर सन् 2019 में 'नागरिकता (संशोधन) अधिनियम' (CAA) बनाया, जिसे दि. 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति ने भी मान्यता दे दी। विभिन्न विचारधाराओं एवं राजनैतिक विरोधियों की प्रतिरोधात्मक अभिवृत्ति से जूझने के बाद अन्ततः दि. 11 मार्च, 2024 को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया।  अभी भी कुछ लोग व राजनैतिक दल CAA लागू होने को अपनी पराजय मान कर छटपटा रहे हैं

चिन्टू की चाची (कहानी)

                                                       "चिन्टू! .....ओ चिन्टू! कहाँ है रे?" दो मिनट ही हुए थे चिन्टू को विनीता के पास आये कि अनुराधा की तेज़ आवाज़ विनीता के कानों में पड़ी। सहम कर विनीता ने अपने पास बैठे चिन्टू को चूम कर कहा- "जा बेटा, तेरी मम्मी बुला रही है।" "नहीं चाची, मैं अभी यहीं रहूँगा आपके पास।"- मचल कर चिन्टू बोला। "ना बेटे, मम्मी बुला रही हैं न! अभी जा, बाद में फिर आ जाना।"- विनीता ने प्यार से समझाया। चिन्टू विनीता के द्वारा दी गई टॉफ़ी मुँह में घुमाते हुए अनिच्छापूर्वक कमरे से बाहर निकल कर अपनी मम्मी के पास चला गया। विनीता ने सुना, अनुराधा चिन्टू पर बरस रही थी- "फिर गया तू चाची के वहाँ? कितनी बार कहा है तुझसे मुँहजले कि वहाँ मत जाया कर।....और यह मुँह में क्या है ...निकाल, थूक इसे!" -और फिर दो-तीन थप्पड़ के बाद चिन्टू के जोरों से रोने की आवाज़ आई। विनीता का कलेजा मुँह को आ गया, चाहा, दौड़ कर जाये और चिन्टू को अपने ह्रदय से लगा ले, लेकिन अनुराधा के डर से ऐसा न कर सकी। विनीता के लिए अनुराधा का यह व्यवहार कोई नई बात नहीं

'महत्वहीन' (कहानी)

                       वह अपने घर के दरवाज़े से बाहर निकल कर कुछ कदम ही चली थी कि उसने देखा, उसका कुत्ता 'टॉमी' उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था। झल्ला कर रुक गई वह। 'उफ्फ़ नॉनसेन्स!' -उसके मुँह से निकला। सूर्योदय होने में लगभग डेढ़-पौने दो घण्टे शेष थे। डरते-डरते अपने हाथों में थामे शिशु की ओर उसने देखा और एकबारगी काँप उठी। कल ही तो वह दिल्ली के अस्पताल से अपनी माँ व शिशु के साथ लौटी थी। अपने किसी भी परिचित को उन्होंने इस बच्चे के जन्म की भनक तक नहीं होने दी थी। दिसम्बर माह का अन्तिम सप्ताह था। शीत के साथ ही भय की एक लहर ने उसका रोम-रोम खड़ा कर दिया। दिल की गहराई तक उसने यह सिहरन महसूस की और भयाक्रान्त हो चारों ओर नज़र डाली। उसे लगा, जैसे सभी दिशाओं से कुछ अज्ञात शक्तियाँ आँखें फाड़-फाड़ कर उसे घूर रही हैं। एक चीख उसके कण्ठ में घुट कर रह गई। एक बार फिर निद्रामग्न अपने शिशु की ओर देख कर उसने पीछे खड़े टॉमी की ओर देखा। टॉमी अपनी पूँछ हिलाता हुआ चुपचाप खड़ा शायद उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था। अपनी मालकिन के साथ रहना उसकी आदत-सी बन गई थी, इसीलिए वह साथ चला आया था।  वह टॉमी