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अगस्त, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नसीहत (प्रहसन)

राजस्थान में अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो रहे हैं कि कुछ अपराधियों ने अभी हाल ही उनका पीछा किये जाने पर राज्य के एक जांबाज़ सिपाही प्रह्लाद सिंह के सिर में गोली मार दी। फलतः उपचार के दौरान कल सुबह प्रहलाद सिंह शहीद हो गए। मन बहुत व्यथित है। मैं एक संवेदनशील व्यक्ति हूँ, अतः उत्सुकतावश पड़ोसी राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए आज राज्य के बॉर्डर से हो कर जा रहा था।  तभी मैंने देखा कि यात्रियों से भरी ओवरलोडेड एक बस राजस्थान के बॉर्डर को पार कर रही है। मैंने बस को रोक कर उसकी छत पर बैठे एक यात्री से पूछा- "भाई लोग, इस तरह बस पर क्यों बैठे हो और कहाँ जा रहे हो?" "हम सब अपराधी हैं और राजस्थान छोड़ कर जा रहे हैं।" "ओह, क्या यहाँ की पुलिस से अचानक इतना डर लग गया तुम लोगों को? अगर ऐसा है तो अपराध करना बंद क्यों नहीं कर देते?" "अजी, पुलिस से कौन डरता है? हम तो मुख्यमंत्री जी की नसीहत मान कर राज्य छोड़ कर जा रहे हैं। अब वह मुख्यमंत्री हैं, तो उनकी बात माननी पड़ेगी न! " "क्या यहाँ का प्रशासन पुलिस पर अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है कि वह आप लो

बन्धन (कहानी)

                       क्षमा और अनुज दो साल से एक-दूसरे के सम्पर्क में थे। वे कॉलेज के अन्तिम वर्ष में थे, तब से दोनों में दोस्ती थी जो बाद में प्यार में बदल गई। क्षमा एक परम्परावादी संस्कारी लड़की थी, जो शादी करने और परिवार बसाने का सपना देखती थी, जबकि अनुज एक आधुनिक लड़का था, जिसे एक स्वच्छन्द ज़िन्दगी पसन्द थी। दोनों की विचारधारा बुनियादी तौर पर भिन्न थी।  एक दिन, क्षमा ने अनुज से उनके भविष्य के बारे में बात करने का फैसला किया। क्षमा- “अनुज, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” अनुज- “बोलो क्षमा!” क्षमा- “क्या तुम्हें नहीं लगता कि अब समय आ गया है कि हम अपने रिश्ते को अगले स्तर पर ले जाएँ?” अनुज- “तुम्हारा मतलब क्या है?” क्षमा- “अनुज, हमें अब शादी कर लेनी चाहिए।” अनुज- “शादी? क्षमा, हम इसके लिए अभी बहुत छोटे हैं।” क्षमा- “हम छोटे नहीं हैं अनुज! हम दोनों पच्चीस साल के हैं, हमने ग्रेजुएशन कर लिया है और अब नौकरी कर रहे हैं। हम दो साल से एक-दूसरे के करीब हैं, हमें किसका इंतज़ार है?” अनुज- “क्षमा, शादी एक बड़ा फैसला है। यह ऐसा कुछ नहीं है जो आप मनमर्जी से करते हैं।” क्षमा- “मैं यह सब यूँ ही नहीं क

बिछड़ा प्यार (कहानी)

कानपुर शहर के एक मोहल्ले में रहने वाले रिया और अमन बचपन के दोस्त थे, जो एक ही पड़ोस में पले-बढ़े थे। दोनों की ज़िन्दगी हँसते-खेलते अच्छे से गुज़र रही थी। कभी-कभी बचपन की उनकी आपसी चुहल कुछ इस सीमा तक बढ़ जाती थी कि दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे। दोनों को फोटोग्राफी का शौक था और यदा-कदा जगह-जगह के कई तरह के फोटो लिया करते थे। कभी-कभार ऐसा भी होता था कि ‘मेरा फोटो तुझसे अच्छा’, कह कर एक-दूसरे के फोटो फाड़ डालने की नौबत भी आ जाती थी। बचपन का यह लड़ना-झगड़ना कब उनकी एक-दूसरे के प्रति आसक्ति में बदल गया, इसका उन्हें पता ही नहीं चला। उन्होंने अपने सपनों से लेकर अपने सभी रहस्यों तक को एक-दूसरे के साथ साझा किया था। वे अविभाज्य थे, एक शरीर और दो प्राण बन चुके थे। लेकिन अचानक उनकी किस्मत ने पलटा खाया और अमन का परिवार भीषण आर्थिक विषमता की जकड़न में आ गया। एक दिन अमन को अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में जाना पड़ा। उन्होंने सम्पर्क में रहने का वादा किया और कुछ समय तक उन्होंने सम्पर्क बनाए भी रखा। उन्होंने एक-दूसरे को पत्र लिखकर अपने नये अनुभव और भावनाएँ साझा कीं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, पत्रों का

मोहब्बत की दुकान (व्यंग्य लघुकथा)

                                                     मोहब्बत की दुकान                                                     बाज़ार में टहलकदमी करते हुए एक दुकान के पास पहुँचते ही मेरे पाँव रुक गए। अजीब-सा नाम था उस दुकान का- 'मोहब्बत की दुकान'।  मैं यह जानने को उत्सुक हुआ कि आखिर इस दुकानदार द्वारा क्या माल बेचा जाता है। नाम देख कर काम जानने की इच्छा होना स्वाभाविक भी था ही। दुकानदार के चेहरे पर मुस्कान थी। असली थी या नकली, यह भला मेरे जैसा सीधा-सादा आदमी कैसे जान सकता था? पास जा कर मैंने पूछा- "भैया जी, क्या बेचते हो?" दुकान से बाहर आ कर मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया- "दुकान के बोर्ड पर जो नाम लिखा है, तुमने पढ़ा नहीं क्या?" "पढ़ा है भाई।" "क्या लिखा है उस पर?" "मोहब्बत की दुकान।" "मिठाई की दुकान पर जाते हो तो वहाँ क्या मिलता है?" "मिठाई! और क्या मिलेगा?" "वही तो! तो भाई साहब, इसी तरह हमारे यहाँ मोहब्बत मिलती है।" "वो तो ठीक है, लेकिन यह मोहब्बत भी कोई बेचने की चीज़ है?" "नही

दानवीर (कहानी)

                                                                                                            पहाड़ियों के बीच बसे एक छोटे से शहर में राजा राम नाम का एक भिखारी रहता था। नाम के अनुरूप ही वह दिल से भी राजा था। उसके करीबी लोग उसे ‘राजू’ कह कर पुकारते थे। अपनी बदहाली के बावज़ूद, राजू को हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करने में खुशी मिलती थी। हर दिन, वह हलचल भरे बाज़ार के पास बैठता था। पैबन्द वाले पायजामे पर पहनी हुई जगह-जगह से फटी कमीज़ और थकी हुई आँखें उसकी गरीबी को बयां करती थीं। एक शाम, जब सूरज ढ़लने को था, राजू की नज़र सड़क के दूसरे किनारे खड़ी एक किशोरी लड़की पर पड़ी। कागज़ का एक मुड़ा हुआ टुकड़ा हाथ में लिये वह हताश दृष्टि से आते-जाते लोगों को देखते हुए कुछ कह रही थी। उसकी आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे। राजू ने उसकी परेशानी देखी और धीरे से उसके पास आया। "माफ़ करना बेटी”, उसने धीरे से कहा- "तुम किस बात से इतनी दुखी हो रही हो?" अपनी परेशानी बताते हुए लड़की की आवाज कांप उठी- “ मेरे पिता बहुत बीमार हैं और भूखे हैं। डॉक्टर ने दवा लिखी है, लेकिन मेरे पास उनकी दवा ख़रीदने क