कानपुर शहर के एक मोहल्ले में रहने वाले रिया और अमन बचपन के दोस्त थे, जो एक ही पड़ोस में पले-बढ़े थे। दोनों की ज़िन्दगी हँसते-खेलते अच्छे से गुज़र रही थी। कभी-कभी बचपन की उनकी आपसी चुहल कुछ इस सीमा तक बढ़ जाती थी कि दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे। दोनों को फोटोग्राफी का शौक था और यदा-कदा जगह-जगह के कई तरह के फोटो लिया करते थे। कभी-कभार ऐसा भी होता था कि ‘मेरा फोटो तुझसे अच्छा’, कह कर एक-दूसरे के फोटो फाड़ डालने की नौबत भी आ जाती थी। बचपन का यह लड़ना-झगड़ना कब उनकी एक-दूसरे के प्रति आसक्ति में बदल गया, इसका उन्हें पता ही नहीं चला। उन्होंने अपने सपनों से लेकर अपने सभी रहस्यों तक को एक-दूसरे के साथ साझा किया था। वे अविभाज्य थे, एक शरीर और दो प्राण बन चुके थे। लेकिन अचानक उनकी किस्मत ने पलटा खाया और अमन का परिवार भीषण आर्थिक विषमता की जकड़न में आ गया। एक दिन अमन को अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में जाना पड़ा। उन्होंने सम्पर्क में रहने का वादा किया और कुछ समय तक उन्होंने सम्पर्क बनाए भी रखा। उन्होंने एक-दूसरे को पत्र लिखकर अपने नये अनुभव और भावनाएँ साझा कीं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, पत्रों का आदान-प्रदान कम होता गया और अंततः बंद हो गया।
रिया को अमन की बहुत याद आती थी, लेकिन उसने अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की कोशिश की। उसने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित किया, नये दोस्त बनाए और फोटोग्राफी के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाया। उसने ऑनर्स के साथ कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और सौभाग्य से उसे एक विश्वख्यात प्रतिष्ठित पत्रिका के लिए फोटो जर्नलिस्ट के रूप में नौकरी भी मिल गई, जिसका मुख्यालय पेरिस में था। उसने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों, उनके आकर्षण और दर्द को कैमरा में कैद करते हुए कई स्थानों की यात्रा की। उसकी आरजू थी कि कभी उसे पेरिस की यात्रा करने का अवसर मिले। अपनी इस ख़्वाहिश को उसने अमन के सामने भी कई बार उजागर किया था। कभी ऐसा अवसर ज़रूर आएगा, ऐसा मान कर उसने अपना पास्पोर्ट भी बनवा लिया था, लेकिन पेरिस की यात्रा कर पाना इतना आसान भी नहीं था। बहरहाल वह खुश थी, लेकिन अमन को नहीं भूल सकी थी।
अमन को भी रिया की बेइन्तहां याद आती थी, लेकिन उसके सामने अपनी चुनौतियां थीं। उसका परिवार गरीब था। उसे उनका भरण-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उसने स्कूल छोड़ दिया और छोटी-मोटी नौकरियाँ करने लगा। उसने एक मैकेनिक, एक वेटर, एक डिलीवरी बॉय और ऐसे ही अन्य रूपों में काम किया, जिससे उनसे गुज़ारे लायक पर्याप्त वेतन मिल जाता था। प्यार की तो बात ही छोड़ दें, उसके पास किसी शौक या दोस्तों के लिए भी समय नहीं था। वह इस प्रकार की ज़िन्दगी से थक गया था, लेकिन उसने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी।
एक दिन उसने एक अखबार में फोटोग्राफी प्रतियोगिता का एक विज्ञापन देखा। प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टि भेजने के लिए बीस दिन का समय था। प्रथम पुरस्कार में पेरिस शहर की यात्रा व सवा लाख रुपये की धन-राशि का प्रावधान था। उसे याद आया कि रिया हमेशा वहाँ जाना चाहती थी। पुरानी सभी यादें उसके ज़हन में ताज़ा हो आईं। उसे लगा, इस प्रतियोगिता को जीत कर वह उसे दोबारा देखने की उम्मीद कर सकता था। उसने अपना पुराना कैमरा ढूँढ़ निकाला, जिसे उसने बचपन के एक स्मृति-चिन्ह के रूप में संजो रखा था। उसने अपने जीवन के अनुभवों को अपनी कल्पना में साकार करने की कोशिश करते हुए अपने आस-पास की, इधर-उधर की कुछ तस्वीरें लीं। उन तस्वीरों के सुन्दर प्रिन्ट बनवा कर उसने प्रतियोगिता-आयोजकों को एक पत्र के साथ भेजा।
पत्र इस प्रकार था :-
‘प्रिय महोदय/महोदया,
मैं शिवराजपुर (जिला-कानपुर) निवासी अमन शर्मा हूँ। मैं फोटोग्राफी प्रतियोगिता के लिए अपनी प्रविष्टि जमा करा रहा हूँ। मैं कोई पेशेवर फोटोग्राफर नहीं हूँ और न ही मैंने इसका कोई औपचारिक प्रशिक्षण लिया है। मैं एक साधारण युवक हूँ, जिसे तस्वीरें लेना पसंद है। मुझे उम्मीद है कि आपको मेरा काम पसंद आएगा।
जो चित्र मैंने भेजे हैं, वह किसी प्रसिद्ध स्थल या ऐतिहासिक स्थान के नहीं हैं। यह मेरी रोज़मर्रा की जिंदगी के हैं, जिन लोगों से मैं मिलता हूं, जिन स्थानों पर मैं जाता हूं, जो चीज़ें मैं करता हूं। यह सामान्य हैं, लेकिन वास्तविकता लिये हुए हैं। मेरे नज़रिये से यह इस दुनिया की सुंदरता और संघर्ष को दर्शाते हैं।
मेरे पास इस प्रतियोगिता में प्रवेश करने का एक विशेष कारण है। मैं पेरिस की यात्रा जीतना चाहता हूँ, अपने लिए नहीं, बल्कि किसी और के लिए। ऐसा व्यक्ति जो मेरे लिए बहुत मायने रखता है, ऐसा व्यक्ति जिसे मैंने वर्षों से नहीं देखा है, लेकिन जिसे मैं अभी भी पूरे दिल से प्यार करता हूँ।
उसका नाम रिया गुप्ता है। वह कानपुर में रहती है और आपकी पत्रिका के लिए फोटो जर्नलिस्ट है। वह मेरी बचपन की दोस्त है, मेरा पहला प्यार है, मेरी सोलमेट है। हम एक साथ बड़े हुए, लेकिन नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण हम अलग हो गए। हमारा एक-दूसरे से सम्पर्क टूट गया, लेकिन हमने एक-दूसरे को कभी विस्मृत नहीं किया।
मुझे पता है, यह आपको एक परी कथा की तरह लगेगा, लेकिन यह सच है। मैंने आपकी पत्रिका के माध्यम से उसके करियर पर नज़र रखी है और मुझे उसकी उपलब्धियों पर गर्व है। वह एक अद्भुत लड़की है और उससे भी अधिक अद्भुत फोटोग्राफर है। उसने दुनिया को अपने चश्मे से देखा है, लेकिन अभी तक पेरिस नहीं देखा है।
पेरिस उसके सपनों का शहर है और मैं इसे उसके लिए साकार करना चाहता हूँ। मैं इस यात्रा से उसे आश्चर्यचकित करना चाहता हूँ, उसे बताना चाहता हूँ कि मैं उसे कितना प्यार करता हूँ। मैं उसके साथ समय बिताना चाहता हूँ और वह सब कुछ हासिल करना चाहता हूं जो हमने खो दिया है।
कृपया ऐसा करने में मेरी मदद करें। मुझे इस प्रतियोगिता के विजेता के रूप में चुनें और मुझे लंबे समय से खोए हुए मेरे प्यार से दोबारा मिलने का मौका दें।
मेरा ईमेल एड्रेस XXXXX@gmail.com है।
अग्रिम धन्यवाद के साथ,
आपका,
अमन शर्मा’
आयोजन-कर्ताओं के द्वारा नियुक्त निर्णायक अमन का पत्र पढ़ कर उसकी बेबाकी और साहस से बेहद प्रभावित हुए। उसके द्वारा प्रेषित तस्वीरें उन्होंने देखीं, जिनमें एक अनोखी नज़र और अंदाज शामिल था। यह तस्वीरें अलौकिक थीं और आयोजक उन्हें देख कर चटक्रीट थे। उनमें से एक वरिष्ठ निर्णायक ऐसा भी था, जिसने लड़कपन के अपने प्यार को खो दिया था। उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसने अपने साथी निर्णायकों से अनुरोध किया कि इस युवक को प्रथम पुरस्कार का विजेता घोषित करें। सबने मिल कर अमन के लिए प्रथम पुरस्कार का प्रस्ताव पारित किया।
कुछ हफ्ते बाद अमन के लिए मैगजीन ऑफिस से एक फोन आया, जिसमें उसे बताया गया कि वह प्रतियोगिता जीत गया है। अमन को बहुत ख़ुशी हुई। उसने निर्णायकों को बहुत-बहुत धन्यवाद कहा। सूचनादाता ने उसे बताया कि उसकी पेरिस की यात्रा के लिए आयोजकों ने सब प्रबन्ध कर लिया है, जिसमें अगले माह की उसकी हवाई टिकट, होटल में तीन दिन की बुकिंग और यात्रा से सम्बन्धित अन्य सभी आवश्यक सुविधाओं के उपहार शामिल हैं। पुरस्कार की नकद राशि शाम तक उसके बैंक खाते में पहुँच जाएगी व टिकट तथा होटल सम्बन्धी विवरण ईमेल से भेज दिया जायगा।
अमन को अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था। शाम को उसने अपनी ईमेल और बैंक खाता चैक किया। उसने देखा कि उसमें वह सब-कुछ था, जिसे देने का आयोजकों का वादा था, लेकिन खाते में राशि मात्र पचास हज़ार रुपये ही आई थी। डेढ़ लाख की जगह पर मात्र पचास हज़ार रुपये देख कर उसे बेहद आश्चर्य हुआ, लेकिन यह सोच कर कि शायद शेष राशि की किश्त उसे बाद में दे दी जायगी, उसने स्वयं को आश्वस्त कर लिया।
उसने बिना विलम्ब किये तत्काल सुविधा में पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया। पासपोर्ट आते ही फ्रांस के वीज़ा के लिए भी प्रार्थना-पत्र सम्बंधित ऑफिस में भेज दिया। आश्चर्यजनक रूप से उसका वीज़ा भी जल्दी ही आ गया। अब वह पेरिस की यात्रा कर सकता था। यात्रा की निर्धारित तिथि को उसने अपना बैगेज तैयार किया और एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गया। उसे इस बात का अफ़सोस था कि निर्णायकों ने उस पर यह अतुलनीय मेहरबानी ज़रूर की थी, लेकिन रिया के बारे में कुछ नहीं किया था, जो उसकी पहली प्राथमिकता थी। जो भी हो, वह पेरिस के अपने अनुभवों को कभी रिया को बताएगा, तो वह कितनी आल्हादित हो उठेगी, इसकी कल्पना से ही वह रोमांचित हो रहा था।
एक लम्बी यात्रा के बाद अमन पेरिस के एयरपोर्ट पर था। वह टैक्सी कर के उसके लिए निर्धारित होटल पर पहुँचा। अमन ने होटल के रिसेप्शन पर चेक इन किया। उसे एक सुइट की एक चाबी दी गई। उसे बताया गया कि उसके लिए एक सुइट बुक किया गया है, जिसे उसे एक अन्य व्यक्ति के साथ साझा करना होगा। उसे यह बात कुछ अखरी, लेकिन दूसरे ही क्षण उसने अपने मन में उठे इस अकृतज्ञतापूर्ण विचार के लिए स्वयं को धिक्कारा। आयोजकों ने यह जो सुअवसर उसे दिया था, उसके सामने यह असुविधा कुछ मायने ही नहीं रखती थी, उसे अहसास हुआ।
होटल के परिचारक ने उसका बैग उठाया और अमन उसके साथ सुइट तक आ गया। परिचारक के द्वारा दरवाजा खोलने पर अमन सुइट के भीतर आया। ‘जिसके साथ उसे यह सुइट साझा करना है वह अजनबी न जाने कौन होगा? हाँ, अगर वह भारतीय हुआ तो ज़्यादा बोरियत नहीं होगी’, अमन सोच रहा था।
जहाँ वह खड़ा था, सुइट का एक शानदार कमरा था, जिसमें एक किंग-साइज़ बैड, एक फ़ायरप्लेस, व अन्य सभी आधुनिक सुविधाएँ थीं। बैग टेबल पर रख कर वह कमरे में इधर-उधर घूमता चारों ओर देख रहा था कि दरवाज़ा खुला और एक युवती ने भीतर प्रवेश किया।
अमन ने उसे देखा, पहचाना और चीख पड़ा- “रियाआआ!”
रिया ने भी उसकी ओर ध्यान से देखा। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, ‘अमन? हाँ, यह तो मेरा अमन ही है।’
रिया का बैग उसके हाथ से छूट कर फर्श पर जा गिरा। दोनों एक-दूसरे से लिपट कर प्रसन्नता के आवेग में रो पड़े।
दोनों ने एक-दूसरे को पुकारा-
"रिया!"
"अमन!"
बहुत देर तक वह एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। दोनों एक-दूसरे के प्यार में इस कदर डूब गए कि कोई शिकवा-शिकायत करने का अवसर भी उनके पास नहीं था।
दोनों एक-दूसरे के प्यार में स्वयं को भी भूल गए थे, लेकिन नहीं भूले थे तो उन फ़रिश्तों को जिनकी बदौलत आज का यह दिन वह देख सके थे, जिन्होंने रिया को भी यहाँ भेज कर एक सुनहरा आश्चर्य दोनों की झोली में डाल दिया था।
मिलन का आवेश समाप्त होने के बाद अमन ने उठ कर चाय बनाई। चाय का एक सिप ले कर अमन ने रिया से पूछा- “तुम कैसे पहुँची यहाँ तक? क्या तुमसे फोटो-प्रतियोगिता के आयोजकों ने सम्पर्क किया था?”
“नहीं अमन, मुझे तो मेरे बॉस ने बुला कर बताया था कि पेरिस में एक अल्पकालिक नौकरी के लिए मुझे चुना गया है और टिकट नियोक्ता की तरफ से दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि पेरिस में मेरे ठहरने के लिए होटल की बुकिंग कर ली गई है। उन्होंने मुझसे मेरा पासपोर्ट माँगा और कहा कि मुझे वीज़ा प्रायोरिटी से यात्रा की तारीख से पहले मिल जायेगा तथा वीज़ा मिलते ही मुझे पेरिस के लिए रवाना होना होगा। उन्होंने जानना चाहा कि क्या मैं इसके लिए तैयार हूँ।’
दो पल के लिए रुकी रिया। अमन उत्सुकता से उसकी तरफ देख रहा था। रिया ने चाय का घूँट गले से उतार कर पुनः कहना शुरू किया- ‘अन्धा क्या चाहे, दो आँखें। मैंने तुरंत ‘हाँ’ कह दिया। मैं इस ऑफर से चकित थी, रोमांचित थी। मेरे सपनों की पेरिस-यात्रा साकार होने जा रही थी। मैं बहुत खुश थी अमन! मैंने बॉस से पूछा था कि किस किस्म की नौकरी है, लेकिन उन्होंने कहा, जब मैं पेरिस पहुँचूँगी, तभी जान सकूंगी। उन्होंने मुझे एयर टिकट दी और बुक किये गए कमरे वाली होटल का पता भी दे दिया। मुझे और कुछ जानने की ज़रुरत थी भी नहीं। मुझे उम्मीद थी कि सब-कुछ अच्छा ही होगा। और तब वीज़ा आते ही यात्रा के दिन मैंने अपने ख़्वाबों के शहर पेरिस के लिए फ्लाइट पकड़ ली।
मुझे जिस होटल का पता दिया गया था, वह यही होटल है… यह….तुम्हारे वाला! यह सस्पेन्स मेरे जीवन के लिए अमूल्य और अविस्मरणीय बन गया है। मैं बहुत खुश हूँ अमन! तुम्हें पा कर मुझे सारी कायनात मिल गई है।” -रिया ने अपनी कहानी पूरी की।
“यह सब-कुछ उस प्रतियोगिता के निर्णायकों की मेहरबानी से सम्भव हुआ है रिया। मैं मन ही मन दुखी था कि उन्होंने मुझे यहाँ आने का उपहार तो दे दिया, लेकिन जिस के लिए मैंने यह सब चाहा था, उस रिया को यहाँ भेजने के लिए कुछ नहीं किया। अब पता चला कि कितने खूबसूरत तरीके से उन्होंने हमें तुम्हारी स्वप्निल जगह पेरिस में मिलवाया है। इस नायाब तोहफे के लिए हम ताज़िन्दगी उनके शुक्रगुज़ार रहेंगे।” -अमन भाव-विह्वल हो कर बोला। उसने प्रतियोगिता में भाग लेने की अपनी समस्त कहानी रिया को बताई।
“ओह, मेरे सबसे प्यारे अमन!” -भावातिरेक में रिया अमन के गले में बाँहें डाल कर झूल गई।
“अरे, मार ही डालोगी क्या मुझे?” -अमन ने उसे बाँहों में भर के चूम लिया।
अनायास ही दरवाजे की बेल बजी। अमन ने दरवाजा खोला। परिचारक एक लिफाफा उसे थमा कर चला गया। लिफाफा दोनों ने एक साथ पढ़ा। उसमें अमन के लिए रिया की कंपनी में ही फोटो जर्नलिस्ट का नियुक्ति-पत्र तथा एक माह का निःशुल्क प्रशिक्षण का ऑफर था। पत्र में यह भी बताया गया था कि अमन के पुरस्कार की शेष एक लाख रुपये की राशि अमन की इच्छा पूरी करने के लिए रिया की पेरिस यात्रा के लिए काम में ले ली गई है।
आँखों में ख़ुशी के आँसू लिए एक चीत्कार के साथ दोनों एक बार फिर एक-दूसरे से लिपट गये।
“कोई इतना दयालु कैसे हो सकता है रिया? उन्होंने मुझे तुमसे मिला कर जीने का मकसद ही नहीं दिया, सुखी जीवन के लिए नौकरी के रूप में एक आर्थिक सम्बल भी दे दिया है।” -अमन की आँखें अभी तक प्रसन्नातातिरेक से अश्रुपूरित थीं।
पेरिस की उस शानदार होटल में रहते हुए उन्होंने वहाँ के कई स्थानों का भ्रमण किया और तीन दिन का समय अच्छे से गुज़ारा।
और… वापसी की उड़ान में वह दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे स्वदेश पहुँचते ही अपनी शादी की प्लानिंग कर रहे थे।
***समाप्त***
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