15अगस्त का पावन दिवस- हमें अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिल गई सन् 1947 में, हम स्वाधीन हो गए। लेकिन ... लेकिन क्या हम सच में स्वतन्त्र हैं ? हम आज भी स्वतन्त्र नहीं हैं, आज भी हमारे कई भाई-बहिन आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में परतन्त्र हैं। आज भी सफ़ेदपोश एक बड़ा तबका आम आदमी का रहनुमा बना हुआ है। देशी अंग्रेजों की हुकूमत आज भी अभावग्रस्त लोगों को त्रस्त कर रही है। सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले, मेरी कविता के नायक 'मंगू' की वेदना को मैंने कविता लिखते वक़्त महसूसा है, अब...अब आप भी महसूस करना चाहेंगे न इस अहसास को ? ( मेरी यह कविता पांच वर्ष पूर्व आकाशवाणी, उदयपुर से प्रसारित हुई थी। ) ...