पहाड़ियों के बीच बसे एक छोटे से शहर में राजा राम नाम का एक भिखारी रहता था। नाम के अनुरूप ही वह दिल से भी राजा था। उसके करीबी लोग उसे ‘राजू’ कह कर पुकारते थे। अपनी बदहाली के बावज़ूद, राजू को हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करने में खुशी मिलती थी। हर दिन, वह हलचल भरे बाज़ार के पास बैठता था। पैबन्द वाले पायजामे पर पहनी हुई जगह-जगह से फटी कमीज़ और थकी हुई आँखें उसकी गरीबी को बयां करती थीं। एक शाम, जब सूरज ढ़लने को था, राजू की नज़र सड़क के दूसरे किनारे खड़ी एक किशोरी लड़की पर पड़ी। कागज़ का एक मुड़ा हुआ टुकड़ा हाथ में लिये वह हताश दृष्टि से आते-जाते लोगों को देखते हुए कुछ कह रही थी। उसकी आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे। राजू ने उसकी परेशानी देखी और धीरे से उसके पास आया। "माफ़ करना बेटी”, उसने धीरे से कहा- "तुम किस बात से इतनी दुखी हो रही हो?" अपनी परेशानी बताते हुए लड़की की आवाज कांप उठी- “ मेरे पिता बहुत बीमार हैं और भूखे हैं। डॉक्टर ने दवा लिखी है, लेकिन मेरे पास उनकी दवा ख़रीदने क