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ऑटो वाला (सत्य-कथा)

              कई वर्ष पहले का वाक़या है। मेरे विभाग के एक साथी अधिकारी शर्मा जी के एक दुर्घटना में देहांत होने की सूचना मिलने पर मैं उनके दाह-संस्कार में शामिल होने बस से सुबह डूंगरपुर के लिए रवाना हुआ। एक तो मन पहले से ही उदास था, दूसरे बस में भीड़ बहुत ज्यादा थी तो मन उद्विग्न हो उठा। करेला ऊपर से नीम चढ़ा की तर्ज पर डूंगरपुर पहुँचने के बीस मिनट पहले बस का टायर पंक्चर हो गया तो बस विलम्ब से पहुंचनी ही थी। मैं बस-स्टैंड से शर्मा जी के घर गया तो पता चला कि शवयात्रा निकले आधा घंटा हो चुका है। श्मशान घाट सीधे ही पहुँचने के अलावा कोई चारा नहीं था अतः घर से बाहर आकर ऑटो के लिए इधर-उधर देखा, लेकिन कोई ऑटो नज़र नहीं आया क्योंकि इनका घर मुख्य सड़क से थोड़ा भीतर की ओर था। संयोग से एक परिचित बाइक पर मेरे पास से निकल रहे थे कि उनकी नज़र मुझ पर पड़ी और बाइक रोक कर मुझसे पूछा कि कहाँ जाना है। मैंने उनसे तहसील चौराहे पर छोड़ने की प्रार्थना की। तहसील चौराहा वहाँ से लगभग दो किमी दूर था। उन्होंने मुझे वहाँ छोड़ दिया।   वहाँ से सुरपुर गाँव (जहाँ शहर ...