सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

व्यंग्य लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नसीहत (प्रहसन)

राजस्थान में अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो रहे हैं कि कुछ अपराधियों ने अभी हाल ही उनका पीछा किये जाने पर राज्य के एक जांबाज़ सिपाही प्रह्लाद सिंह के सिर में गोली मार दी। फलतः उपचार के दौरान कल सुबह प्रहलाद सिंह शहीद हो गए। मन बहुत व्यथित है। मैं एक संवेदनशील व्यक्ति हूँ, अतः उत्सुकतावश पड़ोसी राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए आज राज्य के बॉर्डर से हो कर जा रहा था।  तभी मैंने देखा कि यात्रियों से भरी ओवरलोडेड एक बस राजस्थान के बॉर्डर को पार कर रही है। मैंने बस को रोक कर उसकी छत पर बैठे एक यात्री से पूछा- "भाई लोग, इस तरह बस पर क्यों बैठे हो और कहाँ जा रहे हो?" "हम सब अपराधी हैं और राजस्थान छोड़ कर जा रहे हैं।" "ओह, क्या यहाँ की पुलिस से अचानक इतना डर लग गया तुम लोगों को? अगर ऐसा है तो अपराध करना बंद क्यों नहीं कर देते?" "अजी, पुलिस से कौन डरता है? हम तो मुख्यमंत्री जी की नसीहत मान कर राज्य छोड़ कर जा रहे हैं। अब वह मुख्यमंत्री हैं, तो उनकी बात माननी पड़ेगी न! " "क्या यहाँ का प्रशासन पुलिस पर अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है कि वह आप लो

केन्द्र सरकार से गुज़ारिश

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार उन्हें इस दीपावली पर एक अनूठा विचार आया और उस विचार के आधार पर उन्होंने केन्द्र सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि भारतीय मुद्रा (नोट) के एक ओर गाँधी जी की तस्वीर यथावत रखते हुए दूसरी ओर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की तस्वीर छपवाई जाए, ताकि देवी देवताओं का आशीर्वाद देश को प्राप्त हो (देश के लिए आशीर्वाद चाहते हैं या स्वयं के लिए, यह तो सभी जानते हैं 😉 )। इसके बाद आरजेडी दल की तरफ से एक प्रस्ताव आया कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर और दूसरी तरफ लालू यादव व कर्पूरी ठाकुर की तस्वीरें छपवाई जाएँ, ताकि डॉलर के मुकाबले रुपया ऊँचा उठे और देश का विकास हो (यानी कि अधिकतम मुद्रा चारा खरीदने के काम आए 😉 )। अब जब इस तरह के प्रस्ताव आये हैं, तो मेरी भी केन्द्र सरकार से गुज़ारिश है कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर तो यथावत रहे, किन्तु दूसरी तरफ मेरी तस्वीर छपवाई जाए, क्योंकि मेरी सूरत भी खराब तो नहीं ही है। मेरी दावेदारी का एक मज़बूत पक्ष यह भी है कि कल रात मुझे जो सपना आया, उसके अनुसार मैं पिछले जन्म में एक समर्पित स्वतंत्रता सैनानी था

बेरोज़गारी

     यह बीजेपी वाले खुद तो ढंग से लोगों को रोज़गार दे नहीं पा रहे हैं और जो लोग इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, उनकी आलोचना करते रहते हैं। अब देखिये न, इस निराशा के चलते एक पार्टी के सैकड़ों लोग केवल एक आदमी को रोज़गार दिलाने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा तक गली-गली में पैदल चल कर अपने पाँव रगड़ रहे हैं। इसी तरह एक और पार्टी के कर्ता-धर्ता अपनी पुरानी रोज़ी-रोटी छिन जाने के डर से नया रोज़गार पाने के लिए गुजरात की ख़ाक छान रहे हैं। इन्हें रोज़गार मिलेगा या नहीं, यह तो ईश्वर ही जाने, किन्तु बेचारे कोशिश तो कर ही रहे हैं न! इनकी मदद न करें तो न सही, धिक्कारें तो नहीं 😏 । *****

फेरी वाला (हास्य-व्यंग्य)

प्रातः बिस्तर से उठा ही था कि फेरी वाले की आवाज़ आई। अस्पष्ट होने से उसकी पूरी हांक समझ में नहीं आई, केवल बाद के दो शब्द सुनाई दे रहे थे - ".......ले लो, .......ले लो।" क्या बेच रहा है, जानने के लिए उठ कर बाहर आया। उसे रोक कर पूछा- "क्या बेच रहे हो भाई?" "अरे साहब, बेचेंगे तो तब न, जब कोई खरीदार हो! हम तो फ्री में दे रहे हैं, फिर भी कोई नहीं ले रहा। आप ही ले लो साहब!" -फेरी वाले ने जवाब में कहा। "केजरीवाल जी ने भेजा है क्या?" "अरे नहीं साहब, कॉन्ग्रेस आलाकमान से आया हूँ।" "ओह, तो क्या दे रहे हो भाई?" "कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद। ले लो साहब!" -बेहद आजिज़ी के स्वर में वह बोला। क्या करता मैं, आप ही बताइये!... भई, मैंने भी मना कर दिया- “नहीं चाहिए भाई, आगे जा कर पूछो।” *****

वसुधैव कुटुम्बकम् 'व्यंग्य लघुकथा'

                                                                                                                                                      आज रविवार था, सो बाबू चुन्नी लाल जी शहर के चौपाटी वाले बगीचे में अपने परिवार को घुमाने लाए थे। कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद अचानक उन्हें बगीचे के किनारे पान की दूकान पर माधव जी खड़े दिखाई दे गए। माधव जी पहले इनके मोहल्ले में ही रहा करते थे, लेकिन अब दूसरे मोहल्ले में चले गए थे। तथाकथित समाज-सेवा का जूनून था माधव जी को, तो पूरे मोहल्ले के लोगों से अच्छा संपर्क रखते थे। मोहल्ले की कमेटी के स्वयंभू मुखिया भी बन गए थे। मोहल्ले के विकास के लिए चन्दा उगाहा करते थे और उस चंदे से समाज-सेवा कम और स्वयं की सेवा अधिक किया करते थे। वह कड़वा किसी से नहीं बोलते थे, किन्तु किस से कैसे निपटना है, भली-भांति जानते थे। वाकपटु होने के साथ कुछ दबंग प्रवृत्ति के भी थे, अतः किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि उनसे चंदे का हिसाब मांग सके। एक चुन्नी लाल जी ही थे, जो उनसे कुछ कहने में झिझक नहीं रखते थे। चुन्नी लाल जी उनसे संपर्क करने का प्रयास पहले भी कर चुके थे, लेकिन उ

पड़ोसी की बदहाली (व्यंग्य लेख)

           पता नहीं, आप क्रिकेट के मैदान में रन कैसे बना लेते थे इमरान साहब! सियासत के मैदान पर तो आप लगातार क्लीन बोल्ड हो रहे हो। वैसे तो आपके मुल्क के अभी तक के सभी हुक्मरान उल्टी खोपड़ी के ही देखने में आए हैं। आप लोगों की हालत ऐसे आदमी जैसी है जिसके पास एक बीवी को खिलाने की औकात नहीं है और दो-तीन निकाह के लिये उतावला रहता है। तो, बड़े मियां, मानोगे मेरी एक सलाह? मौके का फायदा उठा कर ज़बरदस्ती कब्जाया POK लौटा दो हमारे भारत को। वैसे भी कड़की भुगत रहा इन्सान अपने घर की चीजें बेच कर अपनी ज़रूरतें पूरी करने को मजबूर हो जाता है। ... और फिर POK तो आपका अपना माल भी नहीं है, देर-सवेर हम वापस ले ही लेंगे आपसे। एक बात और कहूँ आप बुरा न मानें तो! देखिये, अमेरिका ने आपको घास डालनी बन्द कर दी है और आपको भी अच्छे-से पता है कि आपका वो गोद लिया पापा है न, क्या नाम है उसका, हाँ याद आया, 'चीन', तो वह तो मतलब का यार है आपका।...अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा आपके लिए! भुखमरी के आपके इन हालात में मैं आपको बमुश्किल दो-तीन हज़ार रुपये की अदद मदद कर सकता हूँ। सौ-पाँचसौ की बढ़ोतरी और भी करता, मगर क्या करूँ पें

लैंडमार्क (लघुकथा)

मेरा पुराना मित्र विकास एक साल पहले इस शहर में आया था। मैं भी उससे तीन माह पहले ही यहाँ आया था। उसके आने की सूचना मिलने के कुछ ही दिन बाद उससे फोन पर बात कर उसके घर का पता पूछा, तो उसने चहकते हुए जवाब दिया था- "अरे वाह, तो आखिर तुम आ रहे हो! यार, मैं तो ज़बरदस्त व्यस्तता के कारण तुम से मिलने नहीं आ पाया, पर तुम तो मिलने आ सकते थे न!" "क्या बताऊँ दोस्त? कोरोना की आफत ने घर से बाहर निकलना ही दुश्वार कर दिया है, फिर भी आज हिम्मत कर रहा हूँ। तुम अपने घर का पता तो बताओ।" -मैंने कहा था।  "गली का नाम तो मुझे ठीक से याद नहीं है, लेकिन तुम ऐसा करना कि जनरल हॉस्पिटल तक आने वाली सड़क पर सीधे चले आना। हॉस्पिटल से आधा किलो मीटर पहले सड़क पर दो बड़े गड्ढे दिखाई देंगे। बड़ा वाला गड्ढा तो सड़क के एक किनारे पर है और दूसरा उससे छोटा वाला सड़क के बीचोंबीच दिखाई देगा। तो बस, बड़े गड्ढे के पास वाली गली में बायीं तरफ छः मकान छोड़ कर सातवें  मकान में रहता हूँ। मकान मालिक का नाम राजपाल सिंह है। समझ गये न?" मेरे लिए भी यह शहर नया ही था। मैं उसके बताये पते पर बिना कठिनाई के पहुँच गया था क्य

'एक पत्र दोस्तों के नाम'

     मेरे प्यारे दोस्तों, मैं अपने एक सहयोगी राजनैतिक मित्र के साथ मिल कर पिछले एक माह से एक नई राजनैतिक पार्टी बनाने की क़वायद कर रहा था। आपको जान कर खुशी होगी कि हम अपने इस अभियान में सफल हो गए हैं, खुशी होनी भी चाहिए😊। न केवल पार्टी की संरचना को मूर्त रूप दिया जा चुका है, अपितु इसका नामकरण भी किया जा चुका है।   मित्रों, हमारी इस नई राष्ट्रीय पार्टी का नाम है- 'अवापा'! कैसा लगा आपको हमारी पार्टी का नाम, बताइयेगा अवश्य। हमारी पार्टी का मुख्य उद्देश्य देशसेवा तो है ही, एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि जो राजनेता देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं, जिन्हें अन्य पार्टियों द्वारा तिरस्कृत किया गया है, उचित अवसर नहीं दिया गया है, उन्हें हमारी इस पार्टी में सही स्थान दिया जाए। हाँ, सही समझा आपने! यदि आप में से किसी भी शख़्स को किसी पार्टी से निराशा हासिल हुई है तो आपका स्वागत करेगी हमारी यह नई पार्टी, आपके जीवन में नई आशा का संचार करेगी।     कल के अखबार में निम्नांकित समाचार जब मैंने देखा तो सिद्धू जी की राजनीतिगत पीड़ा देख मन विह्वल हो उठा।                 मैं सिद्धू जी को भी आमन

'परिवर्तन' (लघुकथा)

                  X-पार्टी की पराजय के बाद एक सप्ताह पहले Y-पार्टी की सरकार बन गई थी।    X-पार्टी का कार्यकर्त्ता (अपनी ही पार्टी के एक छुटभैये नेता से)- "भाई साहब, एक बहुत ज़रूरी काम आन पड़ा है। ज़रा नेता जी से आपकी सिफारिश करवानी थी।" छुटभैया- "सॉरी भाई, आत्मा की आवाज़ पर अभी तीन दिन पहले मैंने Y-पार्टी जॉइन कर ली है। अब मेरी बात तुम्हारी X-पार्टी में कोई नहीं मानने वाला।"  "अरे भाई साहब, Y-पार्टी के नेता जी से ही तो सिफारिश करनी है। मैं भी Y-पार्टी में ही हूँ, कल मैंने भी इस पार्टी की सदस्यता ले ली थी। X-पार्टी में तो मेरा दम घुट रहा था।"                                                                              *****

'रात्रि-कर्फ्यू'

                                                                      हमारे देश के कुछ प्रांतों के कुछ शहरों में कोरोना में हो रही बढ़ोतरी के कारण रात्रि का कर्फ्यू लगाया गया है। नहीं समझ में आ रहा कि रात्रि-कर्फ्यू का औचित्य क्या है? अब कर्फ्यू है तो आधी रात को बाहर जा कर देख भी तो नहीं सकते कि कौन-कौन सी दुकानें, सब्जी मंडियाँ व सिनेमा हॉल रात-भर खुले रहने लगे हैं या फिर लोग झुण्ड बना कर सड़कों पर कीर्तन कर रहे हैं। सरकार या प्रशासन, कोई भी जनता को इस रात्रि-कर्फ्यू का औचित्य या उपयोगिता नहीं बता रहा है।     जैसा कि टीवी में देखते हैं, दिन के समय पूरे देश में सड़कों पर, सब्जी मंडियों में और बाज़ारों में लोगों की रेलमपेल लगी रहती है। न तो लोगों के मध्य दो गज की दूरी होती है और न हर शख़्स ने मास्क पहना हुआ होता है। प्रशासन यह देख नहीं पाता, इसे रोक नहीं पाता। प्रशासन को लगता है, हमारे देश की जनता समझदार है, स्व-अनुशासित है। प्रशासन की इसमें शायद कोई ग़लती नहीं है क्योंकि यह देखने के लिए कि कोई कर्फ्यू तोड़ तो नहीं रहा है, वह रात को जागता है, परिणामतः दिन में उसे सोना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन कोर

'KBC - एक हास्यान्वेषण'

                                                                 KBC के एपिसोड्स का गहन अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष:-  1) जया बच्चन इन दिनों बहुत खुश नज़र आ रही हैं। सम्भवतः इसलिए कि KBC में इस बार कोरोना-काल के चलते महानायक अमिताभ बच्चन व महिला प्रतिभागी परस्पर गले नहीं लग पा रहे हैं 😜 ।                                                                        *********  2) KBC में हॉट सीट पर आने वाले कई प्रतिभागी या तो उच्च आदर्शों वाले व त्याग और सद्भावना की प्रतिमूर्ति हुआ करते हैं जो अपने द्वारा जीती गई राशि का अधिकांश भाग परोपकार में लगाने का निश्चय किये होते हैं या फिर अपनी आर्थिक समस्याओं से इतना ग्रसित होते हैं 😜  कि न केवल अमिताभ जी की सहानुभूति का लाभ पाते हैं, अपितु कुछ भोले दर्शक भी चाहने लगते हैं कि वह वहाँ से अच्छी राशि ले कर जाएँ।                                                                         ********* 3) इस सीजन में अभी तक में केवल महिलाएँ करोड़पति बनी हैं। सम्भवतः पुरुष-वर्ग बॉर्नविटा खा कर नहीं आता 😜 ।                                                           

'कुत्ते की पूँछ' (हास्य-व्यंग्य)

                                                                    जानकारी मिली कि कोरोना का प्रकोप थोड़ा मंदा हुआ है, तो अपने मित्र, विमलेश से मिलने की प्रबल इच्छा हो आने से पहुँच गया एक दिन उनके घर।    मेरे सद्भावी मित्र परेशान न हों, मैंने बाकायदा मास्क लगा रखा था और हर राह चलते शख़्स से छः-सात फ़ीट की दूरी बनाये रखते हुए सर्पाकार गति से चलते हुए विमलेश के घर तक की एक किलोमीटर की दूरी तय की थी।    विमलेश के वहाँ पहुँचा तो उनके घर का दरवाज़ा संयोग से खुला मिला। भीतर जा कर देखा, वह महाशय अपने सिर को एक हाथ पर टिकाये कुर्सी पर उदास बैठे थे। मुझे देख कर सामने रखी एक अन्य कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए फीकी हँसी के साथ बोले- “आओ भाई, अच्छे आये तुम!” “क्या हुआ विमलेश जी, भाभी से झगड़ा हो गया या वह मायके गई हुई हैं?” -मैंने मुस्कराते हुए पूछा।  “नहीं यार, ऐसा कुछ भी नहीं है। वह तो अपने रूम में बैठी स्वैटर बुन रही हैं।” “तो फिर यूँ मुँह लटकाये क्यों बैठे हो? अगर दूध नहीं है घर में तो चिन्ता न करो, मैं चाय पी कर आया हूँ।”  “अरे नहीं भाई, बात कुछ और ही है। मेरा कुत्ता कहीं चला गया है।” “ओह,

'नया वायरस'

        धरती पर मानव-संख्या-संतुलन के मद्देनज़र चीन के महान वैज्ञानिकों  😜 ने एक और वायरस का आविष्कार कर लिया है - 'हन्ता वायरस'      चीन में बस में बैठ कर जा रहे एक व्यक्ति की हन्ता वायरस के संक्रमण से मौत हो गई। कहा जा रहा है कि यह वायरस कोरोना से अलग प्रकृति का है अतः बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है। यह वायरस कोरोना की तरह मनुष्य से मनुष्य तक नहीं पहुँचता।   आप अपने घर में चूहों का प्रवेश रोक दें और यदि बरामदे में पेड़-पौधे लगे हुए हैं तो उन पर घूम रही गिलहरी से भी सावधान रहें। इन दोनों का मल-मूत्र 'हन्ता वायरस' का जनक है। यदि सावधानी के बावज़ूद आपके हाथ इनके मल-मूत्र के संपर्क में आ जाएँ तो अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लें, अन्यथा आपके संक्रमित हाथ से कोरोना की तरह ही यह वायरस आपके मुँह, नाक या आँख के जरिये शरीर में प्रवेश कर जायेगा। इससे सम्भावित मृत्यु-दर 38% है। अतः सावधान रहें, सुरक्षित रहें। 🙏                                                                 ************

'सही जनगणना' (लघुकथा)

  जनसंख्या गणना विभाग की वार्षिक बैठक थी। पाँच वर्षों के बाद करवाई गई जन-गणना की रिपोर्ट विभाग के निदेशक की टेबल पर रखी थी। रिपोर्ट देख कर निदेशक चौंक पड़े, सहायक निदेशक से पूछा- "जनसंख्या में 40 % की कमी कैसे आ सकती है, जबकि बढ़ती जनसंख्या को लेकर सरकार परेशान हो रही है। किसने तैयार की है यह रिपोर्ट?" मीटिंग में मौज़ूद विभाग में नवनियुक्त गणना-अधिकारी अविनाश ने खड़े होकर कहा- "सर, रिपोर्ट मैंने तैयार की है। मैंने अपने विभाग के सात होशियार कर्मचारियों की मदद से गणना करवाई है। सब की रिपोर्ट मिलने के बाद मैंने स्वयं रैण्डम चैकिंग कर सत्यापन करने के बाद ही सावधानी से रिपोर्ट तैयार की है। मैं इस रिपोर्ट के सम्बन्ध में तथ्यात्मक जानकारी दे सकता हूँ सर!", कहते हुए आत्मविश्वास से परिपूर्ण दृष्टि से उसने निदेशक की ओर देखा। निदेशक अविनाश के इस अप्रत्याशित उत्तर से चौंके और प्रश्न भरी नज़र अविनाश पर डाली। मौन स्वीकृति पाकर अविनाश ने अपनी बात कहना शुरू किया- "सर, मैंने तीन आदमियों को सड़क के चौराहों व उनके आस-पास की सड़कों पर लगाया और पुलिस विभाग, भ्रष्टाचार विभाग, नगरपालिका व

'देश मज़बूत होगा' (लघुकथा)

                                                                                                          "... तो भाइयों और बहिनों! मैं कह रहा था, हमें हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए। सच्चाई की राह में तकलीफें आती हैं पर फिर भी हमें झूठ और बेईमानी का साथ कभी नहीं देना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि  विधान सभा के चुनाव नज़दीक हैं। मैं मानता हूँ कि केन्द्रीय सरकार का सहयोग नहीं मिलने से हमारी पार्टी अब तक कुछ विशेष काम नहीं कर सकी है, लेकिन मेरा वादा है कि इस बार हम आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देंगे। मेरे विपक्षी उमीदवार फर्जी चन्द जी आप से झूठे वादे करेंगे, बहलाने की कोशिश करेंगे, लालच भी देंगे, किन्तु आप धोखे में नहीं आएँ। आपको सच्चाई का साथ देना है, मुझे अपना अमूल्य वोट दे कर जिताना है। मैं आपकी सेवा में अपनी जान...।"- मंत्री दुर्बुद्धि सिंह झूठावत अपने पहले चुनावी भाषण में अपने कस्बे के क्षेत्र-वासियों को सम्बोधित कर रहे थे कि अचानक उनका मोबाइल बज उठा। मोबाइल ऑन कर कॉलर का नाम देखा और "क्षमा करें, दो मिनट में लौटता हूँ"- कह क

'मेरी कालजयी रचना'

                         फेसबुक में एक परम्परा है, ‘तू मेरी पोस्ट लाइक करे तो मैं तेरी पोस्ट लाइक करूँ’ और इसी परम्परा का निर्वाह अधिकांश लोग करते हैं। यदि आपने कई लोगों की पोस्ट लाइक की हैं, तो आपकी कचरा-पोस्ट को भी तीन अंकों में लाइक और प्यारे-प्यारे कमैंट्स मिल जाएँगे और यदि आप व्यस्ततावश या किसी अन्य कारण से लोगों की पोस्ट लाइक करने से चूक गए तो आपकी दमदार पोस्ट को भी लाइक्स का सूखा झेलना पड़ेगा। जी हाँ, मेरी साफ़गोई के लिए मुझे मुआफ़ करें, लेकिन हक़ीकत यही है।     तो जनाब, यही वह वज़ह है कि पान की दूकान पर खड़े-खड़े अफलातूनी तुकबन्दी करने वाले सूरमा जब ‘कवि’ कहलाने के शौक से दो-तीन बेतुकी पंक्तियाँ फेसबुक पर चिपका देते हैं तो ‘वाह-वाह’, ‘क्या बात है’, ‘क्या लिखा है’, ‘बहुत खूब’, जैसे जुमलों की बख्शीश फेसबुकिये दोस्तों की तरफ से मिल जाती है।    जब ऐसे हालात नज़र आते हैं और क़ाबिलेबर्दाश्त नहीं रहते तो देखने-पढ़ने वालों को झुंझलाहट तो होगी ही (जो क़ायदे से नहीं ही होनी चाहिए, पर हो जाती है), लेकिन अच्छे हाज़मे वाले लोग इसे पचा जाते हैं। मेरे जैसे इंसान से जब नहीं रहा गया तो मैंन

डायरी के पन्नों से..."मेरे आँगन में धूप नहीं आती..."

     समर्पित है मेरी यह कविता, CRPF के उन वीर जवानों को जो पुलवामा (कश्मीर) में  कुछ गद्दारों व आतंककारियों के कुचक्र की चपेट में आकर  काल-कवलित हो गये , जो चले गए यह कसक लेकर कि काश, जाने से पहले दस गुना पापियों को ऊपर पहुँचा पाते ! 'मेरे आँगन में धूप नहीं आती...'     मेरे आँगन के छोटे-बड़े पौधे जिन्हें लगाया है पल्लवित किया है  मेरे परिवार ने, बड़े जतन से, जो दे रहे हैं  मुझे जीवन। चिन्ताविहीन हूँ  कि वह जी रहे हैं  मेरे लिए।  वह जी रहे हैं मेरे लिए, पर उन्हें भी तो चाहिए  मेरा  प्यार, दुलार  और संरक्षण।  मैं नहीं दे रहा जो उन्हें चाहिए                मुझे तो   बस उन्हीं से चाहिए,                              अपेक्षा है  तो उन्हीं से।  अपनी पंगुता पर, अपनी विवशता पर झुंझलाता हूँ जब, तो  दोषी ठहराता हूँ  दूर गगन के  बादलों को।  हाँ,  दोषी हैं वह भी, ढँक लेते हैं  सूरज को और  नहीं मिल पाती धूप, मेरे आँगन के पौधों को।  कुम्हला जाते हैं मेरे पौधे, गिर जाते हैं कभी-कभी  सूख कर धरती पर। मेरी नज़र

बधाई...!

    बधाई, बधाई, ...बधाई! राजस्थान की समस्त सम्माननीय महिलाओं को हार्दिक बधाई! आप सभी को राजस्थान की 'मुख्यमंत्री' घोषित किया गया है....... अगले एक माह तक के लिए! आप सभी अपनी कार / स्कूटर / साईकिल / बैलगाड़ी पर लाल बत्ती लगवा सकती हैं!    

मैंने भी उसके गाल को सहलाया था...

    कल अनायास ही मित्र अल्ताफ से 'नेशनल ग्लोरी मॉल' में मुलाकात हो गई। जनाब का मुँह इस तरह लटका हुआ था जैसे अभी-अभी कहीं से पिट कर आये हों।      पूछने पर अल्ताफ मियां ने एक लम्बी सांस लेकर कैफ़ियत इस प्रकार दी - 'अमां यार क्या बताऊँ, एक छोटी-सी भूल का खामियाजा इस कदर उठाना पड़ा कि बेगम साहिबा के लिए एक अदद हीरे की अंगूठी कीमतन चालीस हज़ार रुपया कहीं से कर्ज लेकर खरीदनी पड़ी है। आज अलसुबह ही बेगम मोहतरमा ने आगाह किया कि यदि  एक कीमती हीरे की अंगूठी ख़रीद कर उन्हें नज़र नहीं की तो वह मेरे खिलाफ 'मी टू (Me too)' के तहत अखबार में ख़बर निकलवा के मुझे रुसवा करवा देंगी।'     'पर भला ऐसी क्या खता हो गई आपसे?'- मैंने उत्सुकतावश पूछा।    'अरे यार, आपकी भाभीजान ने मुझे याद दिलाया कि मैंने 15 साल पहले उनके साथ  घर के पिछवाड़े में छेड़छाड़ कर दी थी। मैंने उनसे कहा कि अरे तुम तो मेरी बेगम हो फिर भला क्या गुनाह हो गया, तो आंखे तरेर कर वह बोलीं कि मियां निकाह हुये तो 14 बरस हुए हैं, उस समय तो मैं ग़ैरशादीशुदा थी। अब खैरियत चाहते हो तो अंगूठी खरीद लाओ मेरे लिए, वर्ना

मेरे शरीर का x-ray स्क्रीनिंग....

      यूँ ही कल मैंने अपने सम्पूर्ण शरीर का x-ray स्क्रीनिंग करवाया तो प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार मेरे शरीर में कुल 248 हड्डियाँ होना ज्ञात हुआ। तुरत मैंने स्कूटर का रुख अपने पारिवारिक डॉक्टर के घर की ओर किया और उन्हें अपनी रिपोर्ट दिखाई- "डॉ. साहब, मैंने जीवविज्ञान में पढ़ा है कि एक वयस्क व्यक्ति के शरीर मे हड्डियों की कुल संख्या 206 होती है, पर कुदरत का करिश्मा देखिये कि मेरे शरीर मे 248 हड्डियाँ हैं।"     डॉक्टर साहब ने रिपोर्ट देखकर मुझे लौटा कर मुस्कराते हुए कहा- "यह कुदरत का करिश्मा नहीं है जनाब, यह आपके उदयपुर की सड़कों का कमाल है।"