"... तो भाइयों और बहिनों! मैं कह रहा था, हमें हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए। सच्चाई की राह में तकलीफें आती हैं पर फिर भी हमें झूठ और बेईमानी का साथ कभी नहीं देना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि विधान सभा के चुनाव नज़दीक हैं। मैं मानता हूँ कि केन्द्रीय सरकार का सहयोग नहीं मिलने से हमारी पार्टी अब तक कुछ विशेष काम नहीं कर सकी है, लेकिन मेरा वादा है कि इस बार हम आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देंगे। मेरे विपक्षी उमीदवार फर्जी चन्द जी आप से झूठे वादे करेंगे, बहलाने की कोशिश करेंगे, लालच भी देंगे, किन्तु आप धोखे में नहीं आएँ। आपको सच्चाई का साथ देना है, मुझे अपना अमूल्य वोट दे कर जिताना है। मैं आपकी सेवा में अपनी जान...।"- मंत्री दुर्बुद्धि सिंह झूठावत अपने पहले चुनावी भाषण में अपने कस्बे के क्षेत्र-वासियों को सम्बोधित कर रहे थे कि अचानक उनका मोबाइल बज उठा। मोबाइल ऑन कर कॉलर का नाम देखा और "क्षमा करें, दो मिनट में लौटता हूँ"- कह कर 'हेलो-हेलो' कहते सभामण्डप के निकट ही बने अस्थायी कक्ष में चले गये।
कॉल ख़त्म होते ही उन्होंने अपने पी.ए. को फ़ोन लगाया- "हाँ वर्मा जी, मेरी बात ध्यान से सुनो। अभी खुराफत अली का फोन आया था।...अरे वही रतन पुर से अपनी पार्टी का एम.एल.ए.। कह रहा था कि थानेदार दमन लाल ने उसके बेटे जबरन मोहम्मद को गिरफ्तार कर थाने में बिठा रखा है। किसी आदिवासी लड़की का रेप-वेप किया है साले ने।... अच्छा तुम्हें भी पता चल गया है?... तो उसे छोड़ने के लिए बोलना है थानेदार को।...अरे समझो बात को। साले खुराफात अली को 'मक्कार टैक्नो इंडस्ट्रीज़' के साथ हुई हमारी डील का पता चल गया है। बोलता था, उसके पास सबूत है उस डील का।... नहीं-नहीं। तुम बोलो थानेदार को कि गरम खून है, ग़लती हो जाती है बच्चों से।... वह लड़की के बाप को कुछ पैसा देने का लालच दे कर चुप रहने को बोले, पैसा मुँह-माँगा दे देगा खुराफत।... क्या?... दो गवाह भी हैं लड़की वालों के साथ?... अरे भाई, थोड़ा धमका कर और थोड़ा पैसे से, उनका भी मुँह बन्द कराए।अब यह भी मुझे बताना पड़ेगा क्या?... अभी तो यह काम करना ही पड़ेगा उस बदजात का, वरना मेरी तो लुटिया ही डूब जाएगी, समझ लो!...कैसे नहीं मानेगा थानेदार? उसको भी तो थोड़ा-बहुत मिलेगा। फिर भी नहीं माने तो बोलना उसे कि उसकी वो गिरधारी की रिश्वत-प्रकरण वाली फाइल डी.एस.पी के पास पैण्डिंग पड़ी है, खुल गई तो साला नौकरी से तो जायगा ही, जेल भी होगी।... बस आज शाम तक वो हराम का पिल्ला छूट जाना चाहिए। एक बार इलेक्शन हो जाने दो, फिर देखता हूँ इस खुराफात अली को तो!"
बात खत्म कर के मंत्री जी वापस स्टेज के माइक पर आये। स्टेज पर बैठे एक कार्यकर्ता ने श्रोताओं से शांत रहने की अपील की। जनता का कोलाहल बन्द हुआ तो मंत्री जी जनता से पुनः रूबरू हुए- "हाँ, तो भाइयों और बहिनों! आपने देखा, अभी मेरे विरुद्ध खड़े हो रहे 'धांधली युवा पार्टी' के उम्मीदवार फर्जी चन्द जी का फोन आया था। कह रहे थे कि उनके साले को उसकी फैक्ट्री के लिए सब्सिडी दिलवा दूँ तो वह इलेक्शन में मेरे सामने से हट जायेंगे। अरे, मुझे कोई डर है क्या उनके मेरे खिलाफ़ खड़े रहने से? आप लोग मेरे साथ हो, सच्चाई मेरे साथ है। कहाँ टिकेंगे वह मेरे सामने? अरे, उनका साला न जाने किस-किस के नाम से चार-चार बैंकों से लोन लेकर डकारे बैठा है, चुकाने का नाम ही नहीं ले रहा। आप उनसे पूछने जायँगे तो वह कह देंगे कि चुनाव का टाइम है, इसलिए उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। आप ही बताइये, अभी उनका फोन आया था कि नहीं? अब बताओ, ऐसे भ्रष्टाचारी की मैं मदद करूँ क्या? मैंने तो साफ मना कर दिया कि भई, यह काम मुझसे नहीं होगा, आप मेरे खिलाफ लड़ो या मत लड़ो।... भाइयों और बहिनों, आप का साथ मेरी ताकत है। मेरी पार्टी 'राष्ट्रीय घपला पार्टी' आपकी पार्टी है, मैं आपका हूँ। मेरे हाथ मज़बूत होंगे तो आप मज़बूत होंगे, राज्य मज़बूत होगा, देश मज़बूत होगा। तो बोलिये मेरे साथ- 'राष्ट्रीय घपला पार्टी' ज़िन्दाबाद!"
... और शांति के साथ भाषण सुन रही मन्त्र-मुग्ध जनता की तालियों व जयकारों से आसमान गूँज उठा।
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