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डायरी के पन्नों से- एक दोहा, एक तुक्तक

आज की प्रस्तुति --- 1) यदि हर संपन्न व्यक्ति कम से कम एक ज़रूरतमंद को अपनी शक्ति के अनुसार अपना अंशदान दे सके तो ईश्वर मुस्करा उठेगा, धरती स्वर्ग बन जाएगी .... चोरी करना और डकैती, अगर कहीं यह पाप है, लोग हों भूखे, हम पेट भरें, ज़िन्दगी अभिशाप है! 2) 'चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय...' का आधुनिक संशोधित संस्करण--- चलती चाकी देख के, क्यों किसी का मनवा जागे? पापी सब जब ऐश करें, तो क्यों दूजों को डर लागे?                      ***********