मित्रों, मेरी प्रथम दो रचनाएँ सन् 2010 की हैं, जबकि तीसरा मुक्तक मेरी सन् 2017 की रचना है। मेरी यह प्रस्तुति भी हमेशा की तरह आपके प्यार की ख्वाहिशमंद होगी- (1) खुदी में खुद को इतना न जकड़ लो, कि चाह कर भी तुम हिल न सको। दूरियां इतनी भी न बनालो हमसे, कि क़यामत तक भी मिल न सको। (2) नज़रों से जो मिल गईं नज़रें अगर, आँखों से दिल में उतर जायेंगे हम। बाहर न तलाशो, भीतर ही ढूंढो, दिल में ही कहीं नज़र आएंगे हम। (3) यही तो गिला है कि दुनिया अलग से बना ली तुमने, मैंने जो देखा था, वो तुमने ख़्वाब नहीं देखा। मेरे होठों पर खिली मुस्कराहट तो देखी है तुमने, मेरी आँखों में छुपे दर्द का सैलाब नहीं देखा। *****