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डायरी के पन्नों से ..."पांच सूत्री कार्यक्रम"

     विषय भी पुराना है, सन्दर्भ भी पुराना है और मेरी यह व्यंग्य-रचना भी पुरानी है- स्व. श्री संजय गांधी (स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी के पुत्र ) के समय की....लेकिन आज भी लोगों में कहीं-न-कहीं वही सोच काम करती है।                        

डायरी के पन्नों से ..."जीवन और मृत्यु"

 चलचित्र 'वक्त' के लिए आशा भोंसले की मदहोश आवाज़ में गाया गीत - 'आगे भी जाने न तू , पीछे भी जाने न तू , जो भी है बस यही इक पल है...कर ले पूरी आरज़ू !''- जिसने ध्यान से सुना है और इसके मर्म को समझा है, वह  निश्चित ही अपने जीवन के हर पल को जी रहा होगा। तो जी लो दोस्तों, अपने जीवन के हर पल को तबीयत से जी लो, क्योंकि.....अगले पल क्या होने वाला है किसी को नहीं पता ! ( ईश्वर करे सबके लिए सब-कुछ अच्छा ही हो। )     मेरी यह क्षणिका भी जीवन की क्षण-भंगुरता के कटु-सत्य को प्रदर्शित करती है।            "जीवन और मृत्यु"  सुबह का विश्वास लेकर,  शाम की आस लेकर,  आकाश में उड़ती चिड़िया,  अनायास ही,   दोपहर में   गिर पड़ी   धरती पर,  अपने पंख फड़फड़ा कर।              -----            

डायरी के पन्नों से ... "ईर्ष्या"

     कोई यदि किसी दूसरे के अधिकार की जगह पर स्थापित हो जाये तो उसके प्रति क्रोध, आक्रोश, दुःख, घृणा, ईर्ष्या या बदले की भावना या ऐसी ही कोई अन्य प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। ऐसा ही एक भाव मेरी इस क्षणिका में...!           "ईर्ष्या"   नींद पलकों को छूकर चली जाती है, हर रात जब वह आती है, क्योंकि- दिल में बसी हुई तुम्हारी तस्वीर, उसे मेरी आँखों में नज़र आती है।      -----   ki