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'सिलसिला' (रुबाई)

                                                                                                                                 न तुम्हारे हो सके हम, न किसी और ने थामा हमको, ताउम्र मुन्तशिर रहे हम, ऐसा सिलसिला दे दिया तुमने!  कभी कहा करते थे तुम, हमें इश्क करना नहीं आता, तुम्हें तो इल्म ही नहीं, कितने आशिक पढ़ा दिये हमने!  ***** मुन्तशिर = बिखरा-बिखरा  इल्म = जानकारी 

डायरी के पन्नों से ..."चंद रुबाइयाँ और मुक्तक"

मेरे अध्ययन-काल की रचनाएँ ...          

डायरी के पन्नों से ..."कुछ शेर / रुबाइयाँ"

पेश हैं कुछ रचनाएं - अतीत की