मुक्तक न तुम्हारे हो सके हम, न किसी और ने थामा हमको, ताउम्र मुन्तशिर रहे हम, ऐसे सिलसिले दे दिये तुमने! कभी कहा करते थे तुम, हमें इश्क करना नहीं आता, तुम्हें तो इल्म ही नहीं, कितने आशिक पढ़ा दिये हमने! मुन्तशिर = बिखरा-बिखरा इल्म = जानकारी *****