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दिल्ली में AAP-मंत्रीमंडल का शपथ-ग्रहण ---

     आज दिल्ली के रामलीला मैदान में 'आप' के नवगठित मंत्रीमंडल के सदस्यों ने पद व गोपनीयता की शपथ ली। केंद्र-सरकारों व विभिन्न राज्य-सरकारों द्वारा अब तक कितनी ही बार शपथें ली जाती रही हैं और तदर्थ समारोह भी आयोजित होते रहे हैं, लेकिन कई मायनों में आज का यह आयोजन अद्भुत और अनुकरणीय था। मंत्रियों का मेट्रो-ट्रेन में सफ़र करके समारोह स्थल पर जाना प्रतीकात्मक रूप से तो अच्छा कहा जा सकता है लेकिन इसे अधिक प्रभावकारी कदम नहीं माना जा सकता। ऐसा किया जाना इतना आवश्यक भी नहीं था क्योंकि सदैव इस तरह यात्रा करना न तो व्यवहारिक है और न ही सम्भव। फिर भी यह समारोह कई मायनों में प्रशंसा-योग्य था। निहायत ही सादगीपूर्ण ढंग से निर्वहित किये गए इस आयोजन में कोई व्यक्ति VIP नहीं था, पार्टी के नाम के अनुरूप ही मंत्री से लेकर सामान्य व्यक्ति तक हर व्यक्ति आम आदमी ही था। मंत्रियों एवं विधायकों के परिवार भी जनता के मध्य ही बैठे थे सामान्य लोगों की तरह। सभी के लिए एक जैसी कुर्सियां, एक-सी सुविधा थी इसलिए प्रवेश-पत्र का भी प्रावधान नहीं था। सही मायनों में लोकतंत्र आज देखा, न केवल दिल्ली-वासियों ने अ

दिल्ली के नये मुख्यमंत्री को शुभकामना-सन्देश -

    केजरीवाल जी को को उनके नए कार्य-क्षेत्र में प्रवेश के लिए बधाई !   आपको मेरी तथा तरक्की-पसंद हर भारतीय की ओर से शुभकामना कि 'AAP' सफलता के नए आयाम स्थापित कर सके। आपको सावधान भी रहना होगा सम्भावित कुचक्रों के विरुद्ध क्योंकि यह तो जानी-समझी हुई बात है कि पड़ौसी की उन्नति किसी से बर्दाश्त नहीं होती, फिर यह तो राजनीति-क्षेत्र है। राजनीति में तो बाप-बेटा भी एक-दूसरे के नहीं होते। वही लोग जो अब तक 'AAP' पर सरकार बनाने का दबाव डाल रहे थे, अब पानी पी-पी कर आपको कोस रहे हैं। कितना हास्यास्पद है यह सब....कोई दीन-ईमान-धर्म नहीं राजनीतिज्ञों और उनके पिछलग्गुओं का। आपके हर आदर्श कदम की आलोचना भी होगी क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री और अटलबिहारी बाजपेयी तथा इन जैसे कुछ ही अन्य नेताओं के द्वारा अपनाई गई राजनीति से परे अब तक की भारतीय राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता की संस्कृति कभी रही ही नहीं है।   केजरीवाल जी ! आप मूल रूप से 'राजनीतिज्ञ' नहीं हैं, इसलिए अब तक परम्परा में रही 'बदले की राजनीति' से भी परहेज रखना चाहिए आपको, क्योंकि यह तो तथाकथित राजनीतिज्ञों का ही

अभी उन्हें तपना है...

प्रजातंत्र भी क्या अजीब शै है ! तुकी-बेतुकी जो चाहे, जब चाहे, बोल ले। जो कहा गया है, सुना गया है- उसके स्रोत की विश्वसनीयता को परखने का प्रयास भी कोई नहीं करता। अफीमघर से निकली गप्पें भी क्रिया-प्रतिक्रियाओं के सहारे सत्य से अधिक आधार पा लेती हैं जन-मानस के मन-मस्तिष्क में।    अभी हाल ही सुनने में आया कि केजरीवाल जी ने मोदी जी को  चुनाव लड़ने की चुनौती दी है और वह भी गुजरात में। है न अफीमखाने की गप्प ? अब, आईआईटीयन केजरीवाल जी इतने भी नादान नहीं कि विश्व-भर में अपनी चमक बिखेरने वाली हस्ती मोदी जी को चुनौती दें। अगर इस ख़बर में तनिक भी सच्चाई है तो केजरीवाल जी ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है।    केजरीवाल जी आम आदमी के प्रतिनिधि हैं- सीधे और सच्चे। जो कुछ भी उन्हें सही लगता है, उस पर बेबाक टिपण्णी कर देते हैं चाहे किसी को बुरा लगे या भला और यही कारण है कि अपने ही गुरु आ. अन्ना जी को भी खरी-खरी कह देते हैं। केजरीवाल जी का कद फिलहाल मुख्यमंत्री की कुर्सी के लायक ही है। इस पद पर अपनी योग्यता प्रमाणित करने के बाद ही जनता उनकी  क्षमता को अगली कसौटी पर कसने के लिए तत्पर हो सकेगी। मोदी जी क

हो जाने दें नये चुनाव...

साँप-छछूंदर की गति हो गई है 'AAP' की ! यदि किसी का भी समर्थन नहीं लेकर सरकार बनाने से इन्कार करते हैं तो लोग कहेंगे कि जनता को नए चुनावों में धकेल दिया और यदि किसी भी एक का समर्थन लेकर सरकार बनाते हैं तो कहेंगे कि यह पार्टी आदर्शों का ढों ग कर रही थी। फिर भी AAP के द्वारा बिना किसी की परवाह किये दृढ़तापूर्वक सरकार बनाने से इन्कार कर दिया जाना उचित होगा, अन्यथा अन्य पार्टियों में और उसमे कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। कुछ प्रतीक्षा करें, हो सकता है कॉन्ग्रेस में से कुछ विधायकों का हृदय-परिवर्तन हो जाय और वे BJP में शामिल हो जाएँ और तब BJP अपनी सरकार बना ले। दोनों पार्टियों की अब तक की संस्कृति तो यही रही है। यदि ऐसा कुछ नहीं होता है तो हो जाने दें नये चुनाव। नये चुनावों का खर्च किसी भी एक बड़े घोटाले से तो कम ही होगा।

यह कैसे भगवान हैं ?

आज के एक समाचार के अनुसार बीकानेर (राज.) में रेजिडेंट डॉक्टर्स एवं किसी मरीज के तीमारदारों के बीच किसी मुद्दे पर कुछ झड़प और मारपीट की घटना हुई और उसके बाद रेजिडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गये मरीजों को ईश्वर के भरोसे छोड़कर। अस्पताल के यह भगवान इतने निर्दयी और बेशर्म क्यों होते जा रहे हैं - यह आज का एक अबूझ सवाल है। हो सकता है पिछली एक-दो घटनाओं में मरीजों के परिजनों की गलती रही हो, लेकिन बाद की अधिकांश घटनाओं में रेजिडेंट्स ने अपनी एकता एवं बहुसंख्यता के उन्माद में न केवल मरीजों एवं उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार किया है बल्कि हड़ताल का सहारा लेने की गैर-जिम्मेदारी भी बरती है। प्रशासन भी दबाव में आकर इनकी उचित-अनुचित मांगें मानने को विवश होता रहा है और जनहित में उनकी हठधर्मिता के आगे झुकता रहा है जो एक शोचनीय विषय बन गया है।    जनता की सेवा की एवज में पल रहे इस चिकित्सक-समुदाय को अपने झूठे अहंकार से बाज आकर अपने कर्त्तव्य को समझना चाहिए और अगर वह ऐसा नहीं करता तो जनता उसे कभी अच्छा सबक सिखा भी सकती है।    खेलों में एक व्यवस्था रखी जाती है कि यदि ठीक मैच के पहले कोई खिलाड़ी घायल या रु

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र :

मैंने देखा है विश्व-पटल पर उभरते मेरे देश के समग्र विकास को -   सुदूर किसी गांव में कहीं एकाध जगह लगे हैंडपम्प से  निकलती पतली-सी धार और पास में घड़े थामे पानी के लिए आपस में झगड़ती ग्रामीण बालाओं की कतार में;  शहर में सर्द रात में सड़क के किनारे पड़े, हाड़ तोड़ती सर्दी से किसी असहाय भिखारी के कंपकपाते बदन में;  कहीं अन्य जगह ऐसी ही किसी विपन्न, असमय ही बुढ़ा गई युवती के सूखे वक्ष से मुंह रगड़ते, भूख से बिलबिलाते शिशु के रूदन में;  किसी शादी के पंडाल से बाहर फेंकी गई जूठन में से खाने योग्य वस्तु तलाशते अभावग्रस्त बच्चों की आँखों की चमक में;                                                                       और....…और इससे भी आगे, विकास की ऊंचाइयों को देखा है -  पड़ौसी मुल्कों की आतंकवादी एवं विस्तारवादी हरकतों के प्रति मेरे देश के नेताओं की बेचारगी भरी निर्लज्ज उदासीनता में;  चुनावों से पहले मीठी मुस्कराहट के साथ अपने क्षेत्र की जनता के साथ घुल-मिल कर उनके जैसा होने का ढोंग रचकर, किसी मजदूर के हाथ से फावड़ा लेकर मिट्टी खोदते हुए, तो किसी लुहार से हथौड़ी लेकर लोहा पीटते हु

सचिन को भारत-रत्न

    सचिन बहुत ही अच्छा खिलाड़ी होने के साथ ही एक अच्छे इंसान भी हैं इस बात से पूरा इत्तेफाक रखता हूँ मैं, लेकिन जदयू सांसद शिवानन्द तिवारी द्वारा सचिन के लिए किये गए कथन में निहित असहमति की भावना से भी कुछ सीमा तक सहमत हूँ कि उन्हें 'भारत-रत्न' का सम्मान दिये जाने का कोई औचित्य नहीं है। सचिन ने अपने करियर के लिए खेला और इसी कारण उनके प्रयास देश के लिए भी गौरव का कारण बने- यही सच है। सचिन के कुछ-एक बार असफल हो जाने की स्थिति में आज उनकी प्रशंसा की इबारतें लिखने वालों में से ही कइयों ने यह भी कहा था कि सचिन केवल अपने लिए ही खेलते हैं।    मैं यह कह कर क्रिकेट में उनके योगदान को कमतर करके नहीं आंक रहा क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया है शायद ही कोई कर पाये, लेकिन यह बात भी भुलाने योग्य नहीं है कि जितना उन्होंने क्रिकेट को दिया उससे कहीं अधिक क्रिकेट ने उन्हें लौटाया है। सचिन निस्सन्देह बहुत बड़े सम्मान के पात्र हैं, लेकिन 'भारत-रत्न' के बजाय खेलों से सम्बन्धित सर्वोच्च सम्मान दिया जाना समीचीन होता। इसके लिए 'खेल-रत्न' सम्मान दे कर उन्हें सम्मानित किया जा सकता था। संदर

Posted by me on Facebook...on Dt.18-9-13

हिन्दू हूँ, हिंदुत्व के प्रति समर्पित हूँ, लेकिन अन्य धर्मों एवं धर्मानुयायियों के प्रति पूर्ण आदर-सम्मान रखता हूँ। हिन्दुत्व का अपमान होते नहीं देख सकता, साथ ही हिन्दुओं की पारम्परिक धार्मिक सहिष्णुता का पक्षधर भी हूँ। छद्म धर्म-निरपेक्षता के प्रति घृणा-भाव है मन में और धार्मिक आस्था का दुरुपयोग करने वाले राजनीतिज्ञों को नारकीय कीड़ों की श्रेणी का जीव मानता हूँ मैं।  हिन्दू- महासभा के प्रति भी आदर -भाव है जो हिन्दू होने के कारण होना भी चाहिए, लेकिन ऐसी धार्मिक संस्थाओं के मठाधीश जब अनर्गल बात कह जाते हैं तो मन उद्वेलित हो उठता है। अभी हाल ही तथाकथित संत आसाराम के कुत्सित कृत्यों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हुए जब श्री अशोक सिंघल एवं श्री प्रवीण तोगड़िया ने आरोप लगाया कि संतों को बदनाम किया जा रहा है तो दुखद आश्चर्य हुआ। एक मासूम बच्ची का जीवन लगभग नष्ट हो गया है- यह भी नहीं देखा उन्होंने ? स्पष्टतः यह एक ओछी एवं अदूरदर्शी सोच का परिचायक है। होना यह चाहिए कि कपटतापूर्ण हथकण्डों को आधुनिक राजनीतिज्ञों के लिए ही छोड़ दिया जाय और धार्मिक संस्थाएं इससे मुक्त रहें। आ. सिंघल जी ने अभी हा

वाह रे प्रजातंत्र --

  मुख्य मंत्री जी (राजस्थान) जनता को बाँट रहे हैं - अस्पतालों में मुफ्त दवाइयां और जांचें (अव्यवस्था से ग्रस्त), मुफ्त सी एफ एल बल्ब, सस्ता अनाज, छात्राओं को मुफ्त लैपटॉप, साइकिलें, छात्रवृत्तियाँ और भी न जाने क्या कुछ। पात्र-अपात्र सभी को मिल रहा है यह सब कुछ और पहचान-भ्रष्टाचार का योगदान पृथक से जुड़ रहा है इसमें। आ. मुख्य मंत्री जी के वेतन से तो निश्चित  ही नहीं बांटा जा रहा यह सब-कुछ। जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए कर, आदि से अर्जित कोष का सरे-आम दुरूपयोग हो रहा है। निस्संदेह ही ज़रूरतमंद को सुविधा उपलब्ध कराना राजकीय धर्म है, लेकिन राज्य-कोष का अनुचित दोहन वांछनीय नहीं। राज्य-सरकार रोजगार के उपाय करने के विपरीत लोगों में कामचोरी एवं भीख की प्रवृति को जन्म दे रही है।  सन्देह है कि यह सभी अनुदान 'वोट' में तब्दील हो पायेंगे। मैंने लाभ उठाने वाले लोगों में से ही कई लोगों को व्यवस्था का उपहास करते देखा है।                                 राज-कोष की लूट है जितना लूट सके सो लूट,                                बाद इलेक्शन पछताएगा, फिर न मिलेगी छूट।    

मेरे शहर की आयड़ नदी...

    आज बहुत दिनों बाद पंचवटी कॉलोनी के पास आयड़ नदी की तरफ से निकलना हुआ। नदी किनारे भीड़ देख कर मैं भी रुक गया। देखा, स्वच्छ पानी से लबालब भरी नदी कल-कल करती बह रही है। मन प्रफुल्लित हो उठा, मुग्ध-भाव से चिर-प्रतीक्षित  इस मनोहारी दृश्य को अविराम निहार रहा हूँ मैं। उदयपुर में रहने वाले सभी नागरिक पिछले कई वर्षों से इस अभागी नदी में गंदे नालों व गटर से गिरते पानी का छिछला प्रवाह ही देखते आये हैं, उस समय के अलावा जब कि शहर की झीलों के ओवरफ्लो का पानी इसमें कुछ चंद दिनों के लिए भर आता है। समस्त प्रशासनिक अमला एवं  चुने हुए जन-प्रतिनिधि जब-तब जनता के समक्ष लुभावने वादे ही करते आये हैं जैसी कि उनकी फितरत है।     मेरे अलावा अन्य लोग भी मुग्ध भाव से इस सुहाने दृश्य को देख रहे हैं। आज अचानक बरसों का सपना सच हुआ देख प्रसन्नता की स्मित सभी की आँखों में झलक रही है। ऐसा लग रहा है, जैसे उदयपुर पेरिस सदृश हो गया है।    अहा! अब इस नदी में कुलांचे भरती जल-राशि सभी को कितना आल्हादित कर रही है। मैं अभी यहाँ से जाना नहीं चाहता। मेरे साथ खड़े अपलक इन मनोरम पलों को जी रहे अन्य लोग भी यहाँ से हटने का ना

निर्भया-बलात्कार कांड के अपराधी -

      निर्भया-बलात्कार एवं हत्याकांड के सात अपराधी हैं। चार मुजरिमों को फांसी की सज़ा  दी गई है जिसके विरुद्ध बचाव-पक्ष अपील करने का मानस बना रहा है। हो सकता  है इस सज़ा को नाकाफ़ी मान कर उच्च न्यायालयों द्वारा अधिक कठोर सज़ा दे दी जाये - यथा, इन्हें चौराहे पर खड़ा करके जनता पत्थर मार-मार कर इनका शरीर छलनी कर दे और फिर इनके घायल शरीरों पर नमक-मिर्च तब तक छिडके जब तक चीखते -चीखते इनके प्राण न निकल जाएँ।  एक अपराधी ने कारागृह में आत्म-हत्या कर ली अतः उसके लिए कुछ कहना उचित नहीं होगा।  उसने अपनी सज़ा ख़ुद तजवीज कर ली। नर्क में अपने पाप की सज़ा वह अब भी भुगत रहा होगा।  एक अन्य अपराधी को नाबालिग होने का लाभ देकर कानूनी बाध्यता के कारण तीन वर्ष तक सुधार-गृह में रखने की सज़ा दी गई है। बालिगों वाला अपराध करने वाला, निर्ममता की पराकाष्ठा तक जाने वाला  वह दरिंदा नाबालिग कैसे माना जा सकता है- समझ से परे है यह बात। शादी या मतदान के मापदंड के आधार पर भले ही बालिग कहलाने की उम्र 18 वर्ष मानी जाये और इसे संशोधित नहीं किया जाये, लेकिन अपराधी को नाबालिग होने का लाभ मिलना कत्तई न्यायोचित नह

"सिंघम"

 अभी स्टार प्लस पर फिल्म 'सिंघम' प्रदर्शित की जा रही थी  और मैं मंत्र-मुग्ध इसे देख रहा था। चार बार इस फिल्म को पहले भी देख चुका हूँ। अभी कुछ देर पहले पुलिस इंस्पेक्टर सिंघम और उसके अधीनस्थों द्वारा एक भृष्ट मंत्री की पिटाई होते देखा और ख़ुशी से मन प्रफुल्लित हो गया। एक क्षण के लिए भूल गया था कि मैं फिल्म देख रहा हूँ।  वास्तविक पुलिस में सिंघम जैसे ईमानदार अफसर हैं कहाँ और जो हैं वह तन से भले ही शाक्तिशाली हों, मन से बहुत ही कमज़ोर हैं। उनमें इतना साहस नहीं कि किसी भी राजनीतिज्ञ, चाहे वह कितना ही भृष्ट हो- के विरुद्ध आँख उठा सकें। अब तो विधानसभा और संसद में गुंडे-मवालियों के प्रवेश को लोकसभा में पक्ष और विपक्ष ने एकमत हो विधि-सम्मत करवा लिया है। सुप्रीम कोर्ट पर कार्य-पालिका ने अपनी महत्ता बना ली है फलतः पुलिस-विभाग और भी पंगु  होने वाला है। आमजन और न्याय-प्रणाली का भगवान  ही रक्षक है। एक बात फिल्म के अंतिम भाग में निराश मन को सान्त्वना दे गई कि सिंघम के हर कदम को बाधित करने वाले एक भृष्ट अफसर का अंत में ह्रदय-परिवर्तन हो जाता है। मेरी गुजारिश है समस्त पुलिस-कर्मियों से कि फिल

'द्रौपदी का चीर-हरण'

      द्रौपदी  का चीर-हरण हो रहा है कौरवों के दरबार में। कई दुशासन दे रहे हैं अंजाम इस  निर्लज्जता को और अपनी ही विवशता से सिर झुकाये कुछ पांडव असहाय से सह रहे हैं इस दुराचार को।  निरीह द्रौपदी की आँखें पथरा गई हैं बिलखते-बिलखते, लेकिन इस कौरव-सभा में कोई उसका  मददगार नज़र नहीं आ रहा। हमने इस भारत-भूमि को  इतना अपवित्र कर दिया है कि श्रीकृष्ण भी शायद अवतरित होना नहीं चाहते यहाँ। आह…                                                                                                                                                                          

'मुंबई के बलात्कारी'---Posted by me on Facebook...on Dt.24-8-13

    मुंबई के बलात्कारियों ! काश, तुमने संत का चोला पहना होता तो यूँ आसानी से गिरफ्तार तो नहीं होते। तुम्हारे समर्थन में भोले- भाले, अन्धविश्वासी अनुयायियों की भीड़ भी तो नहीं है जो तुम्हें बचाने के लिए शोर मचाये। लेकिन … लेकिन फिर भी शायद तुम बच जाओगे फिर से ऐसा नारकीय कुकर्म करने के लिए क्योंकि मेरे देश का न तो कानून ही सक्षम है और न ही कानून के रखवाले। और नहीं, तो कोई नेता ही तुम्हारी ढाल बन जायेगा। अभी तो तुम्हारे जैसे नरपिशाचों की शिकार बनी दिल्ली की मासूमा के लहू के दाग सूखे भी नहीं हैं। कुछ समय तक कुछ संवेदनशील लोग तुम्हारी इस नामर्दगी को धिक्कारेंगे और फिर चुप हो जाएंगे, क्योंकि पंगु प्रशासन की संवेदनहीनता से अनेकों बार रूबरू हो चुके हैं। तुमसे ही एक सवाल -यह धरती तो पहले से ही कितने ही पापियों के बोझ से दबी पड़ी है फिर तुम्हारा पैदा होना क्यों ज़रूरी था ? … मेरे देशवासियों, हमारा देश शांति-पूर्वक जीने के लिए अब सुरक्षित नहीं रहा है…तब तक नहीं, जब तक कि कोई कृष्ण जन्म नहीं ले लेता ऐसे पापियों के संहार के लिए।

'आरक्षण' (लघुकथा)--Posted by me on Facebook...Dt.7-9-12

Gajendra Bhatt September 7, 2012   Likhne ka shauk bachpan se tha lekin kuchh mood hi nahin ban raha tha in dino, so tahalte-tahalte railway station ke platform par ja pahuncha. Do jano ko wahan ladte dekha to mein bhi pas mein chala gaya. Dono mein se ek S (Upper class) bola- "Lekin mein yahaan majdoori kyon nahin kar sakta, mein bhi to majdoor hun". Doosre majdoor R (Reserved class) ne kaha- "Kyonki ye jagah hum logon ke liye reserved hai. Tumhare varg ke  majdoor platform ke bahar majdoori kar sakte hain." S (samanya varg ka) bola- "Lekin bhaiya, platform ke bahar passenger bhi kam milenge aur paisa bhi kam milega?"  R (reserve varg ka)- "Ye tumhari problem hai. Akhbar nahin padhte kya? Sarkar se puchho. Aur han ye bhaiya- bhaiya kya hota hai, aukaat mein rehkar baat karo." Paas hi khada R ka saathi ( Reserved class) bola- "Akhbar kaise padhega, school mein admission milta to padhta na. ha ha ha ha..." S mayoo

Rape & punishment--Posted by me on Facebook...on Dt.19-12-12

December 19, 2012 Rape & punishment: A question has been raised in the parliament whether a rapist could be sentenced to death. In my opinion the only answer is 'yes'. A woman is sole owner of her body & no one has a right even to touch her without her permission. I don't hesitate expressing my view that the person, responsible for a rape, should be hanged & then his body should be thrown before the dogs to be eaten by them.

बलात्कारी दरिन्दे-- Posted on Facebook by me...on Dt.29-12-12

Gajendra Bhatt December 29, 2012 आंसू थम नहीं रहे हैं ...बलात्कारी दरिन्दों ने दिल्ली में मेडिकल की छात्रा के साथ जो बहशियाना हरकत की है और उनकी जिस पैशाचिक पराकाष्ठा ने उस मासूम की सांसें भी छीन ली हैं उसे देखते हुए उन राक्षसों के अंग विच्छेद कर दिए जाने चाहियें। नहीं, यह सजा कम होगी, उन्हें फांसी या सूली पर चढ़ा दिया जाना चाहिये। नहीं, उनके टुकड़े-टुकड़े कर के चील-कौओं के सामने फ़ेंक दिया जाना चाहिए। नहीं, नहीं, नहीं ...उनके पाप के लिए ये सजाएं काफी नहीं होंगी, कोई बताये हमारे देश के रहनुमाओं को, न्याय के रक्षकों को या फिर मानवाधिकार के अनुयाइयों को, कि मानवता पर कलंक, उन जंगली भेड़ियों ( भेड़िये क्षमा करें इस तुलना के लिए) के लिए क्या सजा तजवीज हो ? प्रश्न है मेरा- 'क्या उम्र-कैद की वर्तमान अधिकतम सजा उन हैवानों के लिए काफी होगी ?'

दिल्ली की गैंग-रेप की पीड़िता--Posted on Facebook by me...on Dt.9-1-13

Gajendra Bhatt January 9 'कैसी सज़ा हो ?' दिल्ली की गैंग-रेप की पीड़िता की आत्मा अनंत में विलीन हो चुकी है, लेकिन तथाकथित भद्र लोगों की अभद्र एवं बेशर्मी की हद तोड़ती टिप्पणियां न केवल उस आत्मा को आहत कर रही होंगी, बल्कि जन-मानस को भी उद्वेलित कर रही हैं। कुत्सित टिप्पणियों के अलावा यह भी कहा जा रहा है कि इस तरह के बीभत्स एवं क्रूर दुष्कर्म करने वाले जानवरों को कड़ी सजा नहीं दी जावे। पूछा जाय उनसे कि यदि उनकी अपनी बेटी की  ऐसी दशा हुई होती तो भी क्या उनकी सोच यही होती। सजा तो ऐसे दुर्दान्त दानवों के लिए यह हो कि उन्हें नपुंसक बना कर ही नहीं छोड़ा जाय, बल्कि उनका एक पैर भी काट डाला जाय ताकि उनका अपराधी मन और कोई अपराध भी न कर सके और सामाजिक प्रताड़ना सहते-सहते एक दिन अपनी ही मौत मर जायं। पता नहीं उस मासूम, दिवंगत पीड़िता के दर्द से व्याकुल संवेदनशील लोगों के आक्रोश की आग से क़ानून-निर्माताओं के मन को थोड़ी-बहुत भी तपन अनुभव हो रही होगी अथवा नहीं। लेकिन ... आज नहीं तो कल, यदि देश के निर्मम, संवेदनहीन कर्णधारों ने अपनी निर्लज्ज निष्क्रियता कायम रखी तो इस आग की

प्रधान मन्त्री से गुजारिश :-Posted on Facebook by me...on Dt. 20-4-13

Gajendra Bhatt April 20 माननीय प्रधान मन्त्री जी, मेरी आप से गुजारिश है :- 1) दिल्ली के पुलिस-महकमे को समाप्त करवा दीजिये क्योंकि अब इसकी ज़रूरत नहीं रही। पीड़ित को रूपया देकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने की पेशक़श तो अपराधी के रिश्तेदार ही कर लेंगे जो अभी पुलिस के कुछ अधिकारी कर रहे हैं। 2) मानवाधिकार- संस्था को भी हटा दीजिये क्योंकि पीड़ित की पीड़ा से अधिक चिंता इसे अपराधी के लिए रहती है जब भी अपराधी को कठोर सज़ा देने की बात उठती  है। 3) ऐसे मुख्य मंत्रियों को सचिवालयों से हटाकर उनके घर भेज दीजिये जो आतंकवादियों / अपराधियों को सज़ा नहीं देने की वक़ालत करते हैं, ताकि वह अपनी खेती-बाड़ी सम्हालें। 4) हमारे देश का क़ानून बहुत कमज़ोर है इसलिए इसमें बदलाव करके कठोरतम बनवायें और ऐसा न कर सकें तो गुनहगारों को जनता को सुपुर्द करवा दें ताकि जनता उन दरिन्दों को उचित सजा दे; पांच वर्ष की मासूम बच्ची से दुष्कर्म करने वाले नर-पिशाच के शरीर में उसी तरह बोतल डाल सके जैसा उसने उस बच्ची के साथ किया। 5) अन्तिम प्रार्थना यह है कि कृपया अपना मौन त्यागें और कुछ ऐसा बदलाव व्यवस्था में कराएँ

फिर दिल्ली में ---Posted on Facebook...on Dt.20-4-13---'फिर दिल्ली में'

Gajendra Bhatt April 20 फिर दिल्ली में --- गुड़िया, तुम पर ज़ुल्म हुआ,  और दरिन्दा जिंदा है। राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध का,  देश आज शर्मिंदा है।।

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days-मेरा आज का विचार -- 31 मई, 2013

हम किसी का अभिवादन करते हैं इसका कारण मात्र यह नहीं कि वह इसके योग्य है, अपितु यह भी है कि  हमने ऐसे संस्कार पाए हैं । -गजेन्द्र भट्ट 

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days-मेरा आज का विचार -- 4 जून, 2013

सर्द रात में अपने कमरे में जब गर्म लिहाफ़ ओढ़ कर सो रहे हो तो सड़क के किनारे बिना चादर, पांव  सिकोड़ कर सो रहे गरीब व्यक्ति का स्मरण कर लो, शायद कभी एक लिहाफ़ उसको भी ओढाने की इच्छा  आपके मन में जाग जाए । -गजेन्द्र भट्ट 

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days -मेरा आज का विचार -- 3 जुलाई, 2013

ईश्वर मुझे वह सब कुछ दे जिसकी मुझे आवश्यकता है, लेकिन इसके पहले उसका ध्यान रखे जिसके पास  आवश्यकता से बहुत कम है। -गजेन्द्र भट्ट