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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आखिर कब तक ? (कहानी)

   "पापा मैं दो घंटे में ज़रूर लौट आऊँगी। मेरी कुछ फ्रेंड्स मुझे अलग से बर्थडे ट्रीट दे रही हैं। वहाँ से लौट कर मैं अपने घर के फंक्शन में शामिल हो जाऊँगी।… प्लीज़ पापा!... मम्मी, पापा को बोलो न, मुझे परमिशन दे दें।" -धर्मिष्ठा ने आजिज़ी करते हुए कहा।   "अरे बेटा, नहीं मानती तो जा आ। लेकिन देख, अपने रिश्तेदारों और तेरी फ्रैंड्स के अलावा मेरे स्कूल-स्टाफ से एक मित्र भी सपरिवार आ रहे हैं। अभी चार बज रहे हैं, छः बजे तक हर हालत में आ जाना। तब तक तेरी मम्मी और मैं पार्टी की व्यवस्था देखते हैं।" -धर्मिष्ठा के अध्यापक पिता प्रथमेश जी ने उसका कन्धा थपथपाते हुए प्यार से कहा।   धर्मिष्ठा कुलांचे भरती हुई अर्चना के घर पहुँची। अर्चना उसकी घनिष्ठ सहेली थी तथा कॉलेज में उसके साथ ही फर्स्ट ईयर में पढ़ती थी। उसके पापा बैंक में क्लर्क थे। अर्चना ने सजी-धजी धर्मिष्ठा को देखा तो देखती ही रह गई, बोली- "क़यामत ढा रही हो जान! आज तो यह बिजली कहीं न कहीं गिर कर ही रहेगी।” 'धत्त' कहते हुए धर्मिष्ठा ने उसके गाल पर हलकी-सी चपत लगाई। “अंकल-आंटी कहाँ हैं? उनसे भी मिल

रहम (लघुकथा)

      नरीमन ने जेरेन को बुला कर खिड़की से बाहर सड़क के उस पार देखने को कहा और बोली- "देखो तो उस बेरहम को।"    जेरेन ने देखा, सामने एक किशोरवय लड़का मिट्टी में गिरे पड़े एक छोटे बकरे पर एक नुकीले पत्थर से बार-बार प्रहार कर रहा था। बकरे का जिस्म जगह-जगह से कट-फट गया था।   जेरेन ने ज़ोर से आवाज़ लगा कर उस लड़के को फटकारा- "अबे, क्यों इस बेरहमी से मार रहा है उसे? देख क्या हालत हो गई है उसकी? मरने वाला है वह, छोड़ उसे।", कह कर जेरेन नीचे उतर कर उनके पास गया।  "यह उस चबूतरे पर बनी देवता की मूर्ति के पास जा कर रोज़ गन्दगी करता है। आज पकड़ में आया है, खबर ले ली है मैंने इसकी।" -लड़का यह कह कर वहाँ से चला गया।   इसी बीच वहाँ आ गई नरीमन से जेरेन ने कहा- "देखा तुमने उस बेवकूफ को! यह मासूम जानवर क्या इतना समझता है कि गन्दगी कहाँ करे, कहाँ न करे।"   ... और जेरेन व नरीमन उस बकरे को गोद में ले कर घर ले आये, उसके घावों से मिट्टी हटा कर अच्छी तरह धो-पोंछ कर उसे प्यार से सहलाया व एक कोने में लिटा दिया।    मुस्कराते हुए नरीमन जेरेन से कह रही थी- "लॉक डा

कोरोना पर विजय

   कोरोना से कैसे जीत सकेंगे ?.... शासन को मेरा सुझाव - मुख्य बिन्दु :- 1) चिकित्सकों व अन्य स्वास्थ्य-कर्मियों तथा पुलिस-कर्मियों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सभी उपकरण व सुविधाएँ दी जाएँ क्योंकि एक चिकित्सक सौ व्यक्तियों को व एक पुलिस-कर्मी दस व्यक्तियों को संक्रमण से बचा सकता है। यह दोनों वर्ग जी-जान से अपने कार्य-क्षेत्र में जूझ रहे हैं। राजनीति व धर्म दोनों को एक ओर रखा जा कर दोनों वर्गों के कार्य में व्यवधान डालने का प्रयास करने वालों को तुरंत कठोर दण्ड दिया जाये।  2) दुग्ध-उत्पादकों तथा अन्य खाद्य व जीवनोपयोगी आवश्यक पदार्थों के उत्पादकों के उत्पादन उनसे क्रय किये जा कर जनता को उपलब्ध कराने की समुचित व्यवस्था की जावे। इस कार्य की सही पालना हो, इस बात का कठोरता से सुपरविज़न किया जावे।  3) लॉक डाउन की अवधि आवश्यक रूप से और आगे बढ़ाई जावे और इसकी सख्ती से पालना कराई जावे।  यह असम्भव नहीं है, यदि सरकार अपनी पूरी इच्छा-शक्ति से इस पर अमल करेगी तो कोरोना (कोविड-19) समूल रूप से नष्ट हो सकेगा।

प्रभु उवाच...! (लघुकथा)

                   असलम एक समर्पित निष्ठावान मुसलमान था। अल्लाह का सच्चा बंदा था वह, किन्तु अपने धर्म के प्रति कट्टर था।   वह कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते सरकारी आदेश की पालना में अपने घर पर ही नमाज़ पढ़ता था, किन्तु उसका मानना था कि अल्लाह की बंदगी की सही जगह मस्जिद ही है। अपने इसी विश्वास के कारण आज वह सब की नज़र बचा कर साँझ के समय अपने मोहल्ले के नज़दीक वाली मस्जिद में पहुँचा और अपनी आँखें बन्द कर अल्लाह की इबादत करने लगा।    वह मानता था कि अल्लाह एक अदृश्य शक्ति है और उसे देखा नहीं जा सकता पर न जाने क्यों उसके दिल ने आवाज़ दी- "परवरदिगार तू कहाँ है? मुझे अपना दीदार दे और बता कि तेरी इस दुनिया में कोरोना नाम की यह तबाही क्यों आई है? किस इन्सानी कौम के गुनाहों की सज़ा सब को मिल रही है?"   ... और अचानक एक करिश्मा हुआ। आँखें बन्द होने के बावज़ूद उसने महसूस किया कि एक तेज़ रौशनी चारों ओर फ़ैल गई है। उसने आँखे खोली तो नज़र चुंधिया गई। तुरंत आँखें बन्द की उसने और फिर धीरे-धीरे दुबारा खोलीं तो वह चौंक पड़ा। मस्जिद में ही सामने की ओर तेज़ रोशनी के बीच एक आकृति उभर रही थी। उसने देखा,

कल क्या होगा...???

                                                                मानव-समाज के विनाश के लिए कोविड-19 का विष-पाश जिस तरह से सम्पूर्ण विश्व को जकड़ रहा है उससे उत्पन्न होने वाली भयावह स्थिति की कल्पना मैं कर पा रहा हूँ। विशेषतः मैं अपने देश भारत के परिप्रेक्ष्य में अधिक चिंतित हूँ, क्योंकि यहाँ कई लोग इस महामारी की गम्भीरता का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं।    ईश्वर करे, मेरा यह चिन्तन निरर्थक प्रमाणित हो, किन्तु कहीं तो अज्ञानवश व कहीं धर्मान्धता के कारण जो हठधर्मिता दृष्टिगत हो रही है वह एक अनियंत्रित दीर्घकालीन विनाश के प्रारम्भ का संकेत दे रही है।    कोरोना-संक्रमण के परीक्षण के अपने नैतिक कर्तव्य की पालना के लिए कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों और उनकी सुरक्षा के लिए सहयोग कर रहे पुलिस कर्मियों पर बरगलाये गए एक धर्मविशेष के कुछ लोगों द्वारा जिस तरह से पथराव कर आक्रमण किया गया, वह घटना कुछ ऐसा ही संकेत देती है। दिल्ली में निजामुद्दीन में  एकत्र हुए तबलीग़ी   जमात के लोग, जिनमें से 1०० से अधिक लोग कोरोना-संक्रमित चिन्हित भी हुए, देश के अन्य राज्यों में अनियंत्रित रूप से प्रवेश कर गए हैं। क