असलम एक समर्पित निष्ठावान मुसलमान था। अल्लाह का सच्चा बंदा था वह, किन्तु अपने धर्म के प्रति कट्टर था।
वह कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते सरकारी आदेश की पालना में अपने घर पर ही नमाज़ पढ़ता था, किन्तु उसका मानना था कि अल्लाह की बंदगी की सही जगह मस्जिद ही है। अपने इसी विश्वास के कारण आज वह सब की नज़र बचा कर साँझ के समय अपने मोहल्ले के नज़दीक वाली मस्जिद में पहुँचा और अपनी आँखें बन्द कर अल्लाह की इबादत करने लगा।
वह मानता था कि अल्लाह एक अदृश्य शक्ति है और उसे देखा नहीं जा सकता पर न जाने क्यों उसके दिल ने आवाज़ दी- "परवरदिगार तू कहाँ है? मुझे अपना दीदार दे और बता कि तेरी इस दुनिया में कोरोना नाम की यह तबाही क्यों आई है? किस इन्सानी कौम के गुनाहों की सज़ा सब को मिल रही है?"
... और अचानक एक करिश्मा हुआ। आँखें बन्द होने के बावज़ूद उसने महसूस किया कि एक तेज़ रौशनी चारों ओर फ़ैल गई है। उसने आँखे खोली तो नज़र चुंधिया गई। तुरंत आँखें बन्द की उसने और फिर धीरे-धीरे दुबारा खोलीं तो वह चौंक पड़ा। मस्जिद में ही सामने की ओर तेज़ रोशनी के बीच एक आकृति उभर रही थी। उसने देखा, यह तो हिन्दुओं के भगवान राम की आकृति थी।
असलम के चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव उभरे, उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं- "लाहौलबिलाकुवत... ऐ मेरे परवरदिगार! मैंने तो तेरे दीदार की ख्वाहिश की थी, तू मुझे यह क्या दिखा रहा है... तोबा-तोबा!"
"असलम! अपनी आँखें खोल। तू एक नेक बन्दा है और एक अच्छे दिल का मालिक है, लेकिन साथ ही तू बेवकूफ भी है। पागल इन्सान, मैं ही राम हूँ और मैं ही रहीम हूँ...।"
असलम ने अब तक अपनी आँखें खोल ली थीं और वह अचम्भे से राम की उस आकृति की और देख रहा था। तभी कुछ पल के लिए उसे राम की जगह मोहम्मद साहब नज़र आये।
इसी दौरान दो अन्य युवक, जो किसी ज़रूरी काम से बाहर निकले थे, मस्जिद में दिख रहे इस चमत्कार को देख सामने ही सड़क पर रुक कर यह अभूतपूर्व नज़ारा देखने लगे थे।
दोनों युवकों में से एक युवक, जो मन्दिर दर्शन के लिए घर से निकला था, हाथ जोड़ कर राम की उस आकृति को अपलक देखते हुए श्रद्धा से अभिभूत होकर अपना सर झुका कर बोला- "जय श्री राम!
उसी क्षण दूसरे युवक ने भावभीनी नज़रों से प्रभु की ओर देखते हुए अपने वक्ष पर सलीब का चिन्ह बनाया और बोल पड़ा- "हे प्रभु यीशु, हमारे गुनाह माफ़ कर।"
पहले युवक ने आश्चर्य से दूसरे से पूछा- "भाई, तुम राम को यीशु क्यों कह रहे हो?"
"राम कहाँ हैं, सामने तो खुद प्रभु यीशु खड़े हैं।" - वह युवक ईसाई था।
... राम की उस आकृति ने अपनी बात जारी रखी- "तूने मेरे दीदार की इल्तज़ा की थी, लेकिन तू ही सोच, तेरे मज़हब के मुताबिक़ मैं तेरे सामने रूबरू कैसे होता? तुम लोग मुझे किसी शक़्ल में तो नहीं देखते हो न! मुझे इसीलिए राम के रूप में आना पड़ा है। मेरे कुछ समझदार बन्दे, हिन्दू भी तो मुसलमान भी, सभी इन्सानों को समझाते भी हैं कि मैं एक ही शक्ति हूँ। मैं ही राम हूँ, मैं ही अल्लाह हूँ और अन्य सभी धर्मों का ईश्वर भी मैं ही हूँ, लेकिन तुम इन्सानों की आँखों पर पड़ा पर्दा नहीं हटता। अपने दिल की आँखों से मुझे देखो तो तुम सब की गफलत ख़त्म हो जाएगी।"
अब परमेश्वर ने एक-एक कर तीनों की ओर देखते हुए कहा- "इस कोरोना के लिए तुम में से किसी की कौम ज़िम्मेदार नहीं है। यह तो किसी और ही देश की ग़फ़लत या खुराफात का नतीजा है। तुम अगर इससे सुरक्षित रहना चाहते हो तो जब तक यह बीमारी ख़त्म न हो जाये, घर से बाहर मत निकलो। सरकारी आदेशों की पूरी पालना करो और पूजा-इबादत भी अपने घर पर ही करो। घर से बाहर जाना बहुत ज़रूरी हो तो अपने साथ सैनिटाइज़र रखो और चेहरे पर मास्क लगा कर निकलो। एक दूसरे से दो मीटर की दूरी बना कर रखो और घर पहुँच कर अच्छी तरह साबुन से हाथ धोओ। ध्यान रहे कि यह वायरस मुँह और नाक से और कभी-कभी आँखों से भी मनुष्य के फेफड़ों तक पहुँचता है और इन्सान की मौत का कारण बन जाता है। अगर इन बातों की पालना नहीं करोगे तो तुम्हें मेरे पास न चाहते हुए भी आना पड़ जायगा। अच्छा, तुम लोग अपना काम जल्दी से निपटा कर अपन-अपने घर पहुँचो।"
... और भगवान अन्तर्ध्यान (विलुप्त) हो गये। इसके साथ ही वह दिव्य प्रकाश भी विलुप्त हो गया।
असलम व अन्य दोनों युवकों ने सिर झुका कर ईश्वर को नमन किया। तीनों के मन-चक्षु अब खुल गए थे।
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कहानी अच्छी है पर शायद एक स्वप्न है | काश भगवान् , ईश्वर , अल्लाह या यीशु अपने अस्तित्व का प्रमाण यूँ ही साक्षात् दे देते तो सारे फसाद ही मिट जाते | सादर |
जवाब देंहटाएंस्वप्न नहीं रेणु जी, मेरी कहानी के यह पात्र प्रभु को अपनी आँखों से देख रहे हैं। यह कथ्य मात्र प्रेरणा के लिए है, वरना तो इस कलियुग में ईश्वर दर्शन कहाँ देने वाले हैं!
हटाएंअब आपका ब्लॉग बहुत प्यारा लग रहा है आदरणीय सर |
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद रेणु जी, श्रेय आपको ही जाता है।
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