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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवन-दर्शन (लघुकथा)

                                                           यात्रियों से लबालब भरी बस मंथर गति से अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी। कुछ दिन से निरन्तर हो रही वर्षा के कारण सड़क ऊबड़खाबड़ हो गई थी और कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं होने से इसी मार्ग से यात्रा करना सब की विवशता थी। छोटी दूरी के यात्री बीच में अपना-अपना गाँव आने पर उतर जाते थे, किन्तु लम्बी दूरी के यात्री बस की धीमी गति से परेशान हो रहे थे। उन्हें भली-भाँति पता था कि इस रास्ते पर अधिक तेज़ गति से गाड़ी चलाना बहुत मुश्किल था, फिर भी किसी विशेष प्रयोजन से यात्रा कर रहे कुछ यात्री तथा कुछ उतावली प्रवृत्ति के लोग बार-बार कण्डक्टर व ड्राइवर से गाड़ी कुछ तेज़ चलाने के लिए आग्रह कर रहे थे। इन लोगों के बारम्बार कहने के उपरान्त भी ड्राइवर अपने ही ढंग से गाड़ी चला रहा था।     यात्री-मानसिकता होती ही ऐसी है कि हर कोई जैसे उड़ कर अपने इच्छित स्थान पर पहुँच जाना चाहता है। सम्भवतः ऐसी ही मनोवृत्ति के चलते ड्राइवर के पास केबिन में बैठे तीन यात्रियों में से एक व्यक्ति ने उद्विग्न हो कर ड्राइवर से पूछा- "ड्राइवर सा'ब! आप गाड़ी थोड़ी तेज़ क्यों नहीं चलाते

कड़वा सच (लघुकथा)

                               छुट्टी होने पर ऑफिस से घर लौटते हुए देखा, राह में किसी एक्सीडेंट के कारण भीड़ लगी हुई थी। बाइक एक ओर खड़ी कर मैं भी वहाँ का माज़रा देख रहा था कि अनायास ही पास में ही फुटपाथ पर पुराने कपड़े बेचने वाले दुकानदार के सामान पर नज़र पड़ गई। मुझे वहाँ पर अन्य कपड़ों के बीच ठीक वैसा ही स्वेटर नज़र आया जैसा मैंने सुबह घर की गली के बाहर बैठे भिखारी को दिया था। मैंने कपड़े बेचने वाले से पूछा तो उसने बताया कि एक भिखारी यह स्वेटर आज ही उसे बेच कर गया है।   'तो ऐसा काम करते हैं यह भिखारी! वह तो दस रुपये ही माँग रहा था, पर सर्दी से काँपते देख कर मैंने तो उसे अपना स्वेटर ही दे दिया था। ऐसे लोगों पर दया दिखाना फिज़ूल है।' -झुंझलाते हुए घर की ओर चल दिया।  गली के मोड़ पर वह भिखारी उसी स्थान पर बैठा मिला।    उसके पास जा कर मैं क्रोध में बरसा- "तुम लोगों पर क्या दया करना? मैंने सुबह तुम्हें स्वेटर दिया और आज ही तुम उसे बेच आये।"  "शरीर की ठण्ड तो सहन हो जाती है बाबूजी, मगर पेट की आग बर्दाश्त नहीं होती। भीख नहीं मिलने से मुझे दो दिन से खाना नसीब नहीं हुआ थ