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दानवीर (कहानी)

                                                                                                            पहाड़ियों के बीच बसे एक छोटे से शहर में राजा राम नाम का एक भिखारी रहता था। नाम के अनुरूप ही वह दिल से भी राजा था। उसके करीबी लोग उसे ‘राजू’ कह कर पुकारते थे। अपनी बदहाली के बावज़ूद, राजू को हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करने में खुशी मिलती थी। हर दिन, वह हलचल भरे बाज़ार के पास बैठता था। पैबन्द वाले पायजामे पर पहनी हुई जगह-जगह से फटी कमीज़ और थकी हुई आँखें उसकी गरीबी को बयां करती थीं। एक शाम, जब सूरज ढ़लने को था, राजू की नज़र सड़क के दूसरे किनारे खड़ी एक किशोरी लड़की पर पड़ी। कागज़ का एक मुड़ा हुआ टुकड़ा हाथ में लिये वह हताश दृष्टि से आते-जाते लोगों को देखते हुए कुछ कह रही थी। उसकी आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे। राजू ने उसकी परेशानी देखी और धीरे से उसके पास आया। "माफ़ करना बेटी”, उसने धीरे से कहा- "तुम किस बात से इतनी दुखी हो रही हो?" अपनी परेशानी बताते हुए लड़की की आवाज कांप उठी- “ मेरे पिता बहुत बीमार हैं और भूखे हैं। डॉक्टर ने दवा लिखी है, लेकिन मेरे पास उनकी दवा ख़रीदने क

'मैं तुलसी मेरे आँगन की' (कहानी)

  (1) आज रुद्र फिर खाना खाये  बिना ही ऑफिस चला गया था। कभी भी, कोई बात अच्छी नहीं लगती थी, तो वह अपना गुस्सा खाने पर उतार दिया करता था। आज भी ‘सब्जी अच्छी नहीं बनी है’, कहते हुए भोजन की थाली परे खिसका कर वह खड़ा हो गया था। अनामिका परेशान थी, 'दिन भर भूखे रहेंगे वह! यदि ऑफिस की कैन्टीन में कुछ नाश्ता कर भी लिया तो क्या? क्या घर के खाने की बराबरी हो सकती है? मैं अकेली कैसे खा लूँ, मैं भी नहीं खाऊँगी।' अनामिका खाना बनाने में प्रयुक्त  छोटे बर्तन हाथों से ही मांज कर व अन्य काम निपटा कर बाहर आ गई। कल उसका व्रत था, सो वह कल शाम से ही भूखी थी, किन्तु अब तो उसकी भूख ही मर गई थी। मोबाइल में गाने लगा वह लिविंग रूम में आ कर खिड़की के पास बैठ गई और बाहर आसमान को निहारने लगी। अगस्त का महीना था। आसमान में छाये बादलों से छन-छन कर आती हल्की धूप धरती को प्रकाशमान किये हुए थी। मौसम बहुत लुभावना था, फिर भी अनामिका  का मन व्याकुल था। मोबाइल से आ रही लता जी की मधुर आवाज़ में गाये गाने की स्वर-लहरी वातावरण में रस घोल रही थी, किन्तु अनामिका के मन के उद्वेग को कम करने में सफल नहीं हो पा रही थी। कुछ ही दे