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तुम्हें निर्धारित करना है...

    कलर टीवी पर प्रसारित किये जा रहे धारावाहिक 'चक्रवर्ती अशोक सम्राट' के मेधावी  किशोर नायक अशोक के साथ चाणक्य के आज के संवाद का एक अंश, जिसने मेरे मन-मस्तिष्क को कुछ आन्दोलित-सा कर दिया है, प्रस्तुत कर रहा हूँ। चाणक्य अशोक को इस कहानी में परिस्थिति की तत्कालीन विषमता को समझाते हुए निम्नांकित वाक्य के साथ अपना उद्बोधन समाप्त करते हैं -     ' तुम्हें निर्धारित करना है कि आने वाली पीढ़ियों को तुम कैसा राष्ट्र सौंप कर जाओगे!'       क्या आज की परिस्थिति में या किसी भी देशकाल में किसी भी राष्ट्र के लिए यह बात सन्दर्भ नहीं रखती? अवश्य रखती है, बस देश व देशवासियों को प्यार करने वाला, संकल्पित व्यक्तित्व का स्वामी एक.…एक अशोक होना चाहिए और होना चाहिए दूरदर्शी, समर्पित और नीतिवान कुशल राजनीतिज्ञ एक चाणक्य!    ऐसा हुआ, तो क्या मौर्यकालीन 'स्वर्ण-युग' पुनः लौट कर नहीं आ जायेगा !    मेरे देश के कर्णधार! आज की युवाशक्ति! तुम्हें...यह तुम्हें निर्धारित करना है....

सज़ा-ए-मौत ...

 प्रबुद्ध मित्रों,  निम्नलिखित आलेख यद्यपि कुछ विस्तार ले गया है फिर भी चाहूंगा कि आप इसे पढ़ें और मेरे विचारों से सहमति / असहमति से अवगत करावें।    जघन्य अपराधी को भी फांसी न दी जाय और फांसी के दंड का प्रावधान ही समाप्त कर दिया जाये, इस मत के समर्थकों को गहन चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है। यदि चिकित्सा से भी उपचार न हो पाये तो ऐसे रोगियों में से कुछ के दिमाग को सर्जरी के द्वारा खोला जाकर गहन अध्ययन किया जाना चाहिए कि कौन से कीटाणुओं ने इनकी सोच को विवेकहीन बना दिया है।     मुझे बहुत उद्वेलित कर दिया है उन दिग्भ्रमित लोगों के comments ने, जो आतंककारी याकूब की फांसी के मसले में मूलतः अपनी-अपनी  रोटी सेंकने के मकसद से किये गये हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि ऐसे  comments उन लोगों ने भी किये हैं जो कानून की बड़ी-बड़ी पोथियाँ पढ़ने के बाद अरसे तक न्यायालयों को अपने तर्कों से विचारने को विवश करने की क्षमता रखते हैं। अपराधियों को बचाने के लिए कानून को तोड़ने-मरोड़ने की रणनीति का उपयोग करना और झूठ से आच्छादित व्यूह-रचना कर सत्य को असत्य और असत्य को सत्य में तब्दील करना इनके पेशे की मज