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जनवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'AAP', "AAP' और 'AAP' ---

     'AAP' के सदस्यों के विरुद्ध  झूठी-सच्ची बातें प्रसारित कर उन्हें आलोचना का केंद्र-बिंदु बनाने की हौड़-सी मची हुई है इन दिनों विरोधियों में। विपक्षियों ने बिन्नी जैसे अभद्र एवं महत्तवाकांक्षी व्यक्ति के सम्बन्ध में केजरीवाल जी के दो बयानों को विरोधाभासी बताकर खूब बवाल मचाया। केवल दो-चार व्यक्तियों को छोड़कर जनता से उभरे कुछ नेताओं से बनी नई पार्टी की सरकार में आपस में कुछ असहमति के क्षण आ सकते हैं जो यदा-कदा मनमुटाव का रूप भी ले सकते हैं। मामलों को निपटने के लिए कभी-कभी कूटनीतिक व राजनीतिक वक्तव्य जारी करना पार्टी-हित में ही नहीं शासन-हित में भी ज़रूरी हो जाता है। क्या हमने अपने और केवल अपने हित में अपनी ही कही बात से बदल जाने की प्रवृत्ति अभी तक की स्थापित पार्टियों के नेताओं में नहीं देखी-सुनी ? इस विषय में हम इकतरफा सोच क्यों रखें ? जहाँ तक केजरीवाल जी का प्रश्न है, बिना किसी विपरीत प्रमाण के उनके व्यकित्व व आचरण के प्रति संदेह व्यक्त किया जाना न्यायोचित होगा ? एक पुराना आईआईटीयन जो अतिरिक्त आयुक्त, आयकर जैसे पद को छोड़कर जनता के बीच उसका दर्द बांटने चला आया, जो देश में

राजनीति का यह कैसा खेल ?

   सुनने में आया है कि कॉन्ग्रेस समर्थित सम्पत पाल नामक महिला अपनी महिला गुलाबी गेंग की मदद से डॉ कुमार विश्वास को अमेठी और रायबरेली में घुसने पर डंडे मारने की धमकी दे रही है। क्या उम्दा प्रजातंत्र है यह ! क्या इन दोनों क्षेत्रों में कानून का शासन नहीं है या वहाँ  इंसाफ-पसंद कोई मानव-समूह नहीं है कि यह सब हो पायेगा ? क्या भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को खड़ा कर विजय प्राप्त करने की कूटनीति आज के समय में भी काम आ जायेगी ? क्या इस तरीके से कॉन्ग्रेस लोकसभा की चुनाव-वैतरणी पार कर सकेगी ? क्या लोकसभा में केवल इन दो सीटों के साथ प्रवेश करना चाहती है कॉन्ग्रेस ? क्या महात्मा गांधी की कॉन्ग्रेस है यह ?  और सबसे बड़ा प्रश्न- क्या मैं, इन पंक्तियों का लेखक अब से कुछ वर्षों पहले तक इसी कॉन्ग्रेस का समर्थक हुआ करता था ?

आखिर कब तक ?

  भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी मोदी जी ने गृहमंत्री शिंदे के बयान ( अल्पसंख्यक युवकों की गिरफ़्तारी के सम्बन्ध में ) को लेकर प्रधानमंत्री जी को लिखे पत्र में कहा है- " अपराध अपराध होता है। धर्म के आधार पर तय नहीं हो कि वह दोषी है या बेगुनाह। हमें सुनिश्चित करना होगा कि बिना भेदभाव के इन्साफ मिले। अपराधी का कोई धर्म नहीं होता। इस सियासत से तो देश नीचे चला जायगा।"    मोदी जी ने इस मामले में तुरंत दखल की मांग की है।   कितनी विचित्र और भयावह स्थिति है कि जिस बात की गम्भीरता को मोदी जी ही नहीं, हर आम आदमी समझ रहा है, क्यों प्रधानमंत्री जी को वह बात समझाने की ज़रूरत पड़ रही है। छद्म धर्म-निरपेक्षता का ताना-बाना जो इस शासक-वर्ग ने बुना है, उसमें स्वयं ही उलझकर इनकी पार्टी रहा-सहा जनाधार भी शीघ्र ही खो देगी - ऐसा प्रतीत हो रहा है। परिणामत: कॉन्ग्रेस में कुछ जो अच्छे नेता हैं उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। गृहमंत्री जी को अपना बयान वापस ले देश से क्षमा मांगनी चाहिए।    आश्चर्य इस बात का है कि नवोदित पार्टी 'AAP' ने इस विषय में अपनी नीति अभी तक स्पष्ट नहीं की

एक अच्छी शुरुआत हो ---

  समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर' के अनुसार जाने-माने उपन्यासकार श्री चेतन भगत ने 'AAP' द्वारा दिल्ली में जनहित में लिए गए कुछ निर्णयों की आलोचना की है। चेतन भगत जी की विद्वता को पूरा सम्मान देते हुए कहना चाहूंगा कि उनकी कई बातों  से सहमत नहीं हुआ जा सकता। पानी और बिजली में की गई रियायत कमज़ोर तबके के लिए ज़रूरी थी और इसमें जो धन व्यय होगा उसे 'नुक्सान' की संज्ञा देना अविवेक और जल्दबाजी कहा जायगा। कितना व्यय होगा, इसका सही आंकलन भी सांख्यिकीय विषय है। शासक-वर्ग को जनहित में कहाँ व्यय करना चाहिए और कहाँ नहीं, यह विवाद का बिंदु हो सकता है किन्तु इसके औचित्य का निर्णय जन-साधारण द्वारा नहीं किया जा सकता।      जहाँ तक दिल्ली के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों में आरक्षण का मुद्दा है, निश्चित रूप से यह विषय न केवल विवादास्पद है अपितु अवांछनीय भी है। इस निर्णय पर पुनर्विचार कर इसे निरस्त किया जाना वांछनीय है। चेतन भगत जी ने भी इसे सही नहीं माना यह उचित है लेकिन उनहोंने जिस तरह से इस फैसले को प्रलयंकारी मान कर कथन किया है कि यह निर्णय भारत को विभालित करेगा, यह अत

अच्छी राजनीति ग्राह्य क्यों नहीं ?

  मैं समझ नहीं पा रहा कि किसी नए नेता या पार्टी का उदय लोग पचा क्यों नहीं पाते। क्यों पहले से जमे हुए राजनेता किसी नये को उभरने  देना नहीं चाहते ? क्या राजनीति और सत्ता केवल पूर्व में स्थापित कुछ नेताओं की बपौती है ? 'AAP' का अभ्युदय हुए कुछ ही दिन हुए हैं, उन्हें सत्ता पर काबिज़ हुए भी बमुश्किल दो सप्ताह हुए हैं और उनके काम-काज की आलोचना कुछ विघ्न-संतोषी इस तरह कर रहे हैं जैसे कि इस पार्टी को काम करते हुए चार-पांच साल हो गए हों। जो कुछ केजरीवाल जी की इस सेना ने किया है उसका दशांश भी तो पूर्व की दिल्ली-सरकार और अन्य हालिया चयनित सरकारें नहीं कर पाई हैं अब तक। शायद उनकी अकर्मण्यता का यही बोझ उनके अनुयायियों को अनर्गल प्रलाप के लिए प्रेरित कर रहा है। 'AAP' के कार्यालय पर कुछ अराजक तत्वों द्वारा आक्रमण तथा अमेठी में डॉ. कुमार विश्वास के साथ किया गया दुर्व्यवहार इसका ज्वलंत उदाररण हैं।   एक नये उत्साह और कुछ कर गुजरने की तमन्ना लेकर आये इन नौजवानों को कुछ करने का अवसर तो दो मित्रों ! यदि यह लोग भी निराश करते हैं तो जनता के पास शक्ति है न इन्हें भी उखाड़ फेंकने की। स्वस्थ

वह यादगार दृश्य ---

  कल TV पर एक मूवी देखी। दक्षिण भारतीय एक सुपर स्टार से सजी हुई यह मूवी यूँ तो एक साधारण फॉर्मूला मूवी थी, लेकिन इसके कथानक में जुड़ी दो आदर्शपरक बातें दिल की गहराइयों में बस गईं। 1)  फ़िल्म का नायक एक व्यक्ति की कुछ मदद करता है और जब वह व्यक्ति उसका शुक्रिया अदा करता है तो नायक उससे कहता है कि उसे धन्यवाद नहीं चाहिए बल्कि इस मदद के बदले में वह तीन आदमियों की मदद करे और उन्हें इसी तरह का सन्देश देकर अन्य तीन-तीन आदमियों की मदद करने के लिए कहे।  नायक से मदद प्राप्त करने वाला एक सुपात्र व्यक्ति था। उसने नायक के निर्देशानुसार कार्य किया और समयान्तर में इस सद्प्रेरणा के प्रचार-प्रसार से हज़ारों लोगों का मन-मस्तिष्क मदद की भावना से सुवासित होता चला गया। परिणामतः नायक के उस शहर में सत्कर्म लोगों की जीवनचर्या बन गया।  2)  पांवों से विकलांग कुछ बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए उनकी दौड़-प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। प्रतियोगी बच्चों में से चार-पांच बच्चे लक्ष्य के क़रीब ही थे कि कुछ पीछे रह गए बच्चों में से एक ट्रेक पर गिर पड़ा और चोट लगने से उसके मुख से चीख निकल पड़ी। जैसे ही लक्ष्य के समीप पहुँच

पथ-निर्माता के लिए दो शब्द...

     सड़ी-गली व्यवस्था में सुखद परिवर्तन की  बयार ( हवा ) भी कुछ लोगों के जुकाम का कारण बन जाती है और प्रारम्भ हो जाता है विरोध और मीन-मेख निकालने का नया सिलसिला। सही नेतृत्व का अनुसरण प्रारम्भ में बुद्धिमान लोग करते हैं, लेकिन यथास्थितिवादियों को भी कालान्तर में उनके पीछे चलना ही होता है। अतः हर अवरोध से अविचलित रह कर कर्म-पथ पर निरंतर चलते रहना ही श्रेयस्कर है, वांछनीय है। बढ़ते चलें, बढ़ते चलें, बढ़ते चलें.....

आज की यह सुहानी धूप -

   इतने दिनों की कड़कड़ाती ठण्ड के बाद आज उदयपुर ( राज.) में कुछ तेजी लिये हुए सुकून देती धूप क्या निकली मानो तन-मन को संजीवनी मिल गई। मौसम-विज्ञान के धुरन्धरों की सभी अटकलों को धत्ता बताते हुए गत दो दिनों से चल रही बयार जैसे समय पूर्व ही बसंत के आगमन का सन्देशा दे रही है। परिवर्तन के नियम को प्रतिपादित करने वाली महान प्रकृति के हर चरण को वंदन ! 

अरविन्द केजरीवाल जी के लिए एक सन्देश -

  प्रिय केजरीवाल जी, नव-वर्ष की शुभकामना ! आप की पार्टी 'आप' के उद्भव के साथ ही जागृति की जो चेतना झलकी थी वह क्रांति की लहर बन कर आज पूरे देश में छा गई है। बधाई !   एक विशेष बात आपसे शेयर करना चाहता हूँ।  जिस प्रकार नाव को डूबते देख उसमें सवार लोग कूद कर पास से निकल रहे मजबूत सहारे को थाम लेते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे-जैसे आपकी पार्टी का विस्तार होगा (और कोई इसे रोक नहीं पाएगा ), नेता लोग दूसरी पार्टियां छोड़कर 'आप' में समाहित होने के लिए भागे चले आयेंगे। यहीं पर आपको इतना सतर्क रहने की आवश्यकता होगी जितनी आपको पार्टी के गठन के समय भी नहीं रही होगी। आपकी बौद्धिक क्षमता का लोहा तो देश की सभी पार्टियों के नेताओं ने माना है (भले ही प्रकट में कोई नहीं स्वीकारे ), लेकिन कुछ लोग कुटिलता के सहारे आपको पीछे धकेलने की कोशिश कर सकते हैं।  अतः मुझे लगता है, आपको एक ऐसी सतर्कता समिति का गठन करना चाहिये जो पूरी ईमानदारी से जाँच-परख करके ईमानदार और समर्पित व्यक्ति को ही 'आप' में प्रवेश दे चाहे वह व्यक्ति आम लोगों में से हो या किसी पार्टी से आया हो। सदस्य-संख्या के विस्त