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जनवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दिमागी दिवालियापन …

       पिछले पांच-छः दिनो से यहाँ (शिकागो में) मौसम जबर्दस्त सर्द है, तापक्रम -9 से -25 डिग्री सेल्सियस के मध्य झूल रहा है और स्नोफॉल के कारण धरती, मकान, वाहन, पेड़-पौधे सभी बर्फ़ से आच्छादित हैं। बर्फ़ किसी-किसी के दिमाग को जमा दे यह भी सम्भव है और ऐसा ही कुछ हुआ भी है। लेकिन...यहाँ की बर्फ का दुष्प्रभाव दूर हमारे भारत के उत्तर प्रदेश में देखने में आया है। बसपा से निष्कासित नेता (?) हाजी याकूब कुरैशी के साथ यह हादसा हुआ है, बर्फ ने उनके दिमाग को जमा दिया है। बर्फ शायद जब दिमाग को जमाती है तो समस्त उर्वरता को तो समाप्त कर देती है, लेकिन आतंक के कीड़े को जन्म दे देती है। आतंक का कीड़ा याकूब कुरैशी के दिमाग से निकल कर जुबान के रास्ते बाहर निकला और उन्होंने पेरिस में आतंकी घटना को अंजाम देने वाले जानवरों को 51 करोड़ रूपये ईनाम की घोषणा कर डाली।     याकूब कुरैशी अपने नाम के साथ हाजी लगाते है लेकिन बिना हज किये वह हाजी कैसे हो गए ! हज करने का उद्देश्य तो ख़ुद को पाक-साफ करना होता है और सम्भवतः वह हज के लिए जाते वक्त बीच रास्ते से वापस लौटे हैं।     पेरिस के फ्रेंच सेटायरीकल न्यूज़ पेपर के कार्

आओ, कुछ अच्छा करें …

    नव वर्ष में सब-कुछ अच्छा-अच्छा हो, इस सुखद कामना के साथ ही एक पुराना दर्द जहन में उभर आया....गोधरा-काण्ड !     गोधरा हत्या-काण्ड का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमारे भाइयों ने जिस तरह की पीड़ा भोग कर अपने प्राण गंवाए होंगे, उस पीड़ा के जिम्मेदार बहशी राक्षसों को कैसे कोई क्षमा कर सकता है ? यह भी न्यायसंगत होता कि ऐसे पिशाचों को पहचान कर उन्हें भी ऐसी ही मौत दी जाती, भले ही सभ्य समाज का कानून इसकी इज़ाज़त नहीं देता। लेकिन उनके समाज के लोगों में से जिनको ऐसी ही यातनापूर्ण मौत बदले की परिणिति में मिली, उनमें से भी तो कई लोग निर्दोष रहे होंगे। क्या ऐसा बदला जिसमें एक के अपराध की सज़ा किसी दूसरे निर्दोष व्यक्ति को मिले, किसी भी दृष्टिकोण से न्यायोचित कहा जा सकता है ? अपराधी का कोई धर्म नहीं होता और किसी भी धर्म में सभी अपराधी नहीं होते। हमें प्रयास करना होगा कि नफरत के इन अंगारों को हमेशा-हमेशा के लिए दफ़न कर दिया जाये और हम मिल-जुल कर प्यार के साथ रहना सीखें। हमें और मुस्लिम समाज को इस देश में जब साथ-साथ ही रहना है तो वैमनस्य की आग को बनाये रखना क्या दोनों ही सम्प्रदायों के लिए आत्मघात