नव वर्ष में सब-कुछ अच्छा-अच्छा हो, इस सुखद कामना के साथ ही एक पुराना दर्द जहन में उभर आया....गोधरा-काण्ड !
गोधरा हत्या-काण्ड का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमारे भाइयों ने जिस तरह की पीड़ा भोग कर अपने प्राण गंवाए होंगे, उस पीड़ा के जिम्मेदार बहशी राक्षसों को कैसे कोई क्षमा कर सकता है ? यह भी न्यायसंगत होता कि ऐसे पिशाचों को पहचान कर उन्हें भी ऐसी ही मौत दी जाती, भले ही सभ्य समाज का कानून इसकी इज़ाज़त नहीं देता। लेकिन उनके समाज के लोगों में से जिनको ऐसी ही यातनापूर्ण मौत बदले की परिणिति में मिली, उनमें से भी तो कई लोग निर्दोष रहे होंगे। क्या ऐसा बदला जिसमें एक के अपराध की सज़ा किसी दूसरे निर्दोष व्यक्ति को मिले, किसी भी दृष्टिकोण से न्यायोचित कहा जा सकता है ? अपराधी का कोई धर्म नहीं होता और किसी भी धर्म में सभी अपराधी नहीं होते। हमें प्रयास करना होगा कि नफरत के इन अंगारों को हमेशा-हमेशा के लिए दफ़न कर दिया जाये और हम मिल-जुल कर प्यार के साथ रहना सीखें। हमें और मुस्लिम समाज को इस देश में जब साथ-साथ ही रहना है तो वैमनस्य की आग को बनाये रखना क्या दोनों ही सम्प्रदायों के लिए आत्मघाती कदम नहीं होगा, देश और मानवता के लिये अनिष्टकर नहीं होगा ?
राजनीतिज्ञ तो शवों की चिताओं पर अपनी रोटी सेंकने को तैयार रहते हैं, अतः हमें ही अपना विवेक जागृत करना होगा आपसी विश्वास बढाने और सौहाद्र स्थापित करने के लिए। हमें सचेत भी रहना होगा कि छद्म धर्मनिरपेक्षता के पोषक हमारे साथ कोई अन्याय न कर पाएँ।
हिन्दू ही नहीं, मुस्लिम, ईसाई, आदि सभी समाजों को देश की मुख्य धारा से जुड़े रह कर एक अपृथक्कीय भारतीय समाज की अवधारणा को साकार करने के लिए आगे आना ही होगा।
आइये, नव वर्ष का स्वागत करते हुए यह प्रतिज्ञा करें कि हम किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखेंगे, हिंसा को जीवन में न तो स्थान देंगे न ही समर्थन देंगे और…और देश की ख़ुशहाली के लिए हमारा हर कदम पारस्परिक प्रेम और शांति की दिशा में ही आगे बढ़ेगा।
वन्दे-मातरम् !
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