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क्या ईश्वर है?

क्या ईश्वर की सत्ता और उसके अस्तित्व के प्रति मन में संदेह रखना बुद्धि का परिचायक है? ईश्वर की सत्ता को नकारने वाला, कुतर्क युक्त ज्ञानाधिक्यता से ग्रस्त व्यक्ति वस्तुतः कहीं निरा जड़मति तो नहीं होता? आइये, विचार करें इस बिंदु पर।  मैं कोई नयी बात बताने नहीं जा रहा, केवल उपरोक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। हम जीव की उत्पत्ति से विचार करना प्रारम्भ करेंगे। इसे समझने के लिए हम मनुष्य का ही दृष्टान्त लेते हैं।  एक डिम्बाणु व एक शुक्राणु के संयोग से मानव की उत्पत्ति होती है। बाहरी संसार से पृथक, माता के गर्भ में एक नया जीवन प्रारम्भ होता है। जीव विज्ञान उसके विकास को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित तो करता है, किन्तु जीवन प्रारम्भ होने के साथ भ्रूण का बनना और उससे शिशु के उद्भव की प्रक्रिया जितनी जटिल होती है, इसे पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं कर सकता। शिशु का रूप लेते समय विभिन्न अंगों की उत्पत्ति व उनका विकास प्रकृति का गूढ़ रहस्य है। शिशु के हाथ वाले स्थान पर हाथ निर्मित होते हैं व पाँव वाले स्थान पर पाँव। आँखें, कान व नाक भी चेहरे पर ही बनते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं। यदि प्राणी जगत

विकल्प (लघुकथा)

                                                                    अस्पताल के वॉर्ड में एक बैड पर लेटे वृद्ध राधे मोहन जी अपने पुत्र का इन्तज़ार कर रहे थे।  बारह पेशेंट्स के इस वॉर्ड में अभी केवल चार पेशेंट्स थे, जिनमें से एक की आज छुट्टी होने वाली थी। उन्हें संतोष था कि वॉर्ड में शांत वातावरण था और स्टाफ भी चाक-चौबंद किस्म का था। नर्स दो बार आ कर गई थी और कह रही थी कि अगर आधे घंटे में इंजेक्शन नहीं आया तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। 'पता नहीं कब आएगा मानव? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था', वह चिन्तित हो रहे थे। उसी समय नर्स वापस आई और राधे मोहन जी को एक इंजेक्शन लगा कर बोली- "इंजेक्शन आने में देर रही है तो डॉक्टर ने अभी यह लाइफ सेवर इंजेक्शन लगाने के लिए बोला है। अब वह आप वाला इंजेक्शन एक घंटे के बाद लगेगा।      पाँच-सात मिनट में मानव आ गया। उसने डॉक्टर के पास जा कर बताया कि इंजेक्शन आ गया है। डॉक्टर ने कहा- "ज़रूरी होने से मैंने एक और इंजेक्शन फ़िलहाल लगवा दिया है। अब यह इंजेक्शन एक घंटे बाद ही लग सकेगा। आप इसे अभी अपने पास ही रखिये।"    मानव ने इंजेक्शन अपने पापा

अपराजेय

 आज का मेरा सुविचार :-    'बाहुबली धन के आगे झुकता है तो धन-कुबेर को सत्ताधीश के सम्मुख नतमस्तक होना पड़ता है, लेकिन आत्म-सम्मान से परिपूर्ण व्यक्ति अपराजेय होता है।'

आज का मेरा सुविचार

    'घर के बाहर यार (दोस्त) और घर के भीतर प्यार (जीवन-साथी) हो तो ऐसा हो कि आपके हर लम्हे में उसका वज़ूद आपके जीने का सबब बन जाए।'   

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days-मेरा आज का विचार -- 31 मई, 2013

हम किसी का अभिवादन करते हैं इसका कारण मात्र यह नहीं कि वह इसके योग्य है, अपितु यह भी है कि  हमने ऐसे संस्कार पाए हैं । -गजेन्द्र भट्ट 

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days-मेरा आज का विचार -- 4 जून, 2013

सर्द रात में अपने कमरे में जब गर्म लिहाफ़ ओढ़ कर सो रहे हो तो सड़क के किनारे बिना चादर, पांव  सिकोड़ कर सो रहे गरीब व्यक्ति का स्मरण कर लो, शायद कभी एक लिहाफ़ उसको भी ओढाने की इच्छा  आपके मन में जाग जाए । -गजेन्द्र भट्ट 

सुविचार--Posted on Facebook by me...before a few days -मेरा आज का विचार -- 3 जुलाई, 2013

ईश्वर मुझे वह सब कुछ दे जिसकी मुझे आवश्यकता है, लेकिन इसके पहले उसका ध्यान रखे जिसके पास  आवश्यकता से बहुत कम है। -गजेन्द्र भट्ट