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CAA के विरोध का औचित्य?

         भारत के बाहर विदेशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्ला देश) में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग (गैर मुस्लिम) वहां की सरकारों व मुस्लिम जनता के द्वारा लगातार प्रताड़ित किये जाते रहे हैं। अपने धर्म, अपनी अस्मिता, अपनी सम्पत्ति और यहाँ तक कि अपने आस्तित्व की रक्षा कर पाना उनके लिए दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में, जिनसे बन पड़ा, उन देशों से भाग कर भारत में आ गए और वर्षों से यहाँ शरणार्थी का जीवन जीते रहे हैं। उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी थी। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाई और ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक व निर्भीक जीवन जी सकने का मार्ग प्रशस्त किया एवं तदर्थ दिसम्बर सन् 2019 में 'नागरिकता (संशोधन) अधिनियम' (CAA) बनाया, जिसे दि. 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति ने भी मान्यता दे दी। विभिन्न विचारधाराओं एवं राजनैतिक विरोधियों की प्रतिरोधात्मक अभिवृत्ति से जूझने के बाद अन्ततः दि. 11 मार्च, 2024 को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया।  अभी भी कुछ लोग व राजनैतिक दल CAA लागू होने को अपनी पराजय मान कर छटपटा रहे हैं

चिन्टू की चाची (कहानी)

                                                       "चिन्टू! .....ओ चिन्टू! कहाँ है रे?" दो मिनट ही हुए थे चिन्टू को विनीता के पास आये कि अनुराधा की तेज़ आवाज़ विनीता के कानों में पड़ी। सहम कर विनीता ने अपने पास बैठे चिन्टू को चूम कर कहा- "जा बेटा, तेरी मम्मी बुला रही है।" "नहीं चाची, मैं अभी यहीं रहूँगा आपके पास।"- मचल कर चिन्टू बोला। "ना बेटे, मम्मी बुला रही हैं न! अभी जा, बाद में फिर आ जाना।"- विनीता ने प्यार से समझाया। चिन्टू विनीता के द्वारा दी गई टॉफ़ी मुँह में घुमाते हुए अनिच्छापूर्वक कमरे से बाहर निकल कर अपनी मम्मी के पास चला गया। विनीता ने सुना, अनुराधा चिन्टू पर बरस रही थी- "फिर गया तू चाची के वहाँ? कितनी बार कहा है तुझसे मुँहजले कि वहाँ मत जाया कर।....और यह मुँह में क्या है ...निकाल, थूक इसे!" -और फिर दो-तीन थप्पड़ के बाद चिन्टू के जोरों से रोने की आवाज़ आई। विनीता का कलेजा मुँह को आ गया, चाहा, दौड़ कर जाये और चिन्टू को अपने ह्रदय से लगा ले, लेकिन अनुराधा के डर से ऐसा न कर सकी। विनीता के लिए अनुराधा का यह व्यवहार कोई नई बात नहीं

साध और साधना (कहानी)

                                           (1) “ऑफिस से आये हो तब से देख रही हूँ, यूँ ही गुमसुम बैठे हो। दो बार पूछ चुकी हूँ, बताते क्यों नहीं, आखिर बात क्या है?” -तोशल ने अपने पति शशांक से पूछा।  “क्या होगा बता कर, जब मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास मेरी चिंता का कोई समाधान नहीं है।” “मुझे नहीं बताने से तुम्हें तुम्हारा समाधान मिल जाता है तो ठीक है, मुझे क्या पड़ी है?”  तोशल मुँह फुला कर जाने लगी तो शशांक ने उसका हाथ पकड़ कर चेहरे पर मुस्कराहट लाने की कोशिश करते हुए कहा- “यार नाराज़ क्यों होती हो? फिलहाल सोच रहा हूँ। अगर किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो बता दूंगा। फ़िज़ूल तुम्हें परशान करने से क्या होगा?” “अब बातें न बनाओ। तुम्हारी परेशानी क्या मेरी परेशानी नहीं है?” “ठीक है बाबा, बताता हूँ। दरअसल अपनी कार की बकाया चार किश्तें इस सप्ताह बैंक में एक मुश्त जमा करानी हैं। अभी तक तो बैंक ने सब्र कर लिया है। अब अगर जमा नहीं हुईं तो बैंक कार जब्त कर नीलाम कर देगा।” सुन कर तोशल के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभरीं। दो मिनट कुछ सोच कर बोली- “इसीलिए तो कहती हूँ, अपनी प्रॉब्लम शेयर किया करो। मैं भी सोचती हूँ