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कुछ मन की बात... (लेख)

    एक अन्तराल के बाद मित्र त्रिलोचन जी घर आये थे। हम दोनों बाहरी दालान में बैठे थे। कुछ बातचीत शुरू हो उसके पहले मैंने पूछा- "क्या लोगे मित्र, चाय या कॉफी?" "नहीं यार, कुछ भी नहीं। बस पानी पिला दो, बहुत प्यास लग रही है।" मैं गिलास में पानी ले कर आया, तो त्रिलोचन जी बोले- "यह क्या? तुम तो यह पानी गाय के तबेले से निकाल कर लाये हो। यह क्या बेहूदगी है?" "अरे, तुमने देखा नहीं, मैंने इसका संक्रमण मिटाने के लिए इसमें कुछ कण पोटेशियम परमेंगनेट के डाल दिए हैं। थोड़ी बदबू ज़रूर है, लेकिन नाक बन्द कर के पी सकते हो।" "बहुत हो गया। कौन-सी दुश्मनी निकाल रहे हो? मैं चलता हूँ।" -नाराज़ हो कर वह उठ खड़े हुए।  "बैठो, बैठो मित्र, नाराज़ मत होओ। पहले यह बताओ, इसे पीने से तुम्हारी प्यास तो बुझ जाती न?"  "तो क्या प्यास बुझाने के लिए कुछ भी पी लूँगा?" -अनमने ढंग से कुर्सी पर वापस बैठते हुए त्रिलोचन जी ने कहा। "यार, एक बात बताओ। तुम्हारे व्हॉट्सएप मैसेज में कल जब मैंने हिन्दी की दो अशुद्धियाँ बताई थीं, तो तुमने कहा था कि अशुद्धि होने

CAA के विरोध का औचित्य?

         भारत के बाहर विदेशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्ला देश) में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग (गैर मुस्लिम) वहां की सरकारों व मुस्लिम जनता के द्वारा लगातार प्रताड़ित किये जाते रहे हैं। अपने धर्म, अपनी अस्मिता, अपनी सम्पत्ति और यहाँ तक कि अपने आस्तित्व की रक्षा कर पाना उनके लिए दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में, जिनसे बन पड़ा, उन देशों से भाग कर भारत में आ गए और वर्षों से यहाँ शरणार्थी का जीवन जीते रहे हैं। उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी थी। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाई और ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक व निर्भीक जीवन जी सकने का मार्ग प्रशस्त किया एवं तदर्थ दिसम्बर सन् 2019 में 'नागरिकता (संशोधन) अधिनियम' (CAA) बनाया, जिसे दि. 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति ने भी मान्यता दे दी। विभिन्न विचारधाराओं एवं राजनैतिक विरोधियों की प्रतिरोधात्मक अभिवृत्ति से जूझने के बाद अन्ततः दि. 11 मार्च, 2024 को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया।  अभी भी कुछ लोग व राजनैतिक दल CAA लागू होने को अपनी पराजय मान कर छटपटा रहे हैं

बँटवारा (लघुकथा)

केशव अपने कार्यालय से थका-मांदा घर आया था। पत्नी अभी तक उसकी किटी पार्टी से नहीं लौटी थी। बच्चे भी घर पर नहीं थे। चाय पीने का बहुत मन था उसका, किन्तु हिम्मत नहीं हुई कि खुद चाय बना कर पी ले। मेज पर अपना मोबाइल रख कर वहाँ पड़ी एक पत्रिका उठा कर ड्रॉइंग रूम में ही आराम कुर्सी पर बैठ गया और बेमन से पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। एक छोटी-सी कहानी पर उसकी नज़र पड़ी, तो उसे पढ़ने लगा। एक परिवार के छोटे-छोटे भाई-बहनों की कहानी थी वह। कुछ पंक्तियाँ पढ़ कर ही उसका मन भीग-सा गया। बचपन की स्मृतियाँ मस्तिष्क में उभरने लगीं।   'मैं और छोटा भाई माधव एक-दूसरे से कितना प्यार करते थे? कितनी ही बार आपस में झगड़ भी लेते थे, किन्तु किसी तीसरे की इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि दोनों में से किसी के साथ चूँ भी कर जाए। दोनों भाई कभी आपस में एक-दूसरे के हिस्से की चीज़ में से कुछ भाग हथिया लेते तो कभी अपना हिस्सा भी ख़ुशी-ख़ुशी दे देते थे। ... और आज! आज हम एक-दूसरे को आँखों देखा नहीं सुहाते। दोनों की पत्नियों के आपसी झगड़ों से परिवार टूट गया। दो वर्ष हो गये, माधव पापा के साथ रहता है और मैं उनसे अलग। पापा के साथ काम करते रह

केन्द्र सरकार से गुज़ारिश

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार उन्हें इस दीपावली पर एक अनूठा विचार आया और उस विचार के आधार पर उन्होंने केन्द्र सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि भारतीय मुद्रा (नोट) के एक ओर गाँधी जी की तस्वीर यथावत रखते हुए दूसरी ओर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की तस्वीर छपवाई जाए, ताकि देवी देवताओं का आशीर्वाद देश को प्राप्त हो (देश के लिए आशीर्वाद चाहते हैं या स्वयं के लिए, यह तो सभी जानते हैं 😉 )। इसके बाद आरजेडी दल की तरफ से एक प्रस्ताव आया कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर और दूसरी तरफ लालू यादव व कर्पूरी ठाकुर की तस्वीरें छपवाई जाएँ, ताकि डॉलर के मुकाबले रुपया ऊँचा उठे और देश का विकास हो (यानी कि अधिकतम मुद्रा चारा खरीदने के काम आए 😉 )। अब जब इस तरह के प्रस्ताव आये हैं, तो मेरी भी केन्द्र सरकार से गुज़ारिश है कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर तो यथावत रहे, किन्तु दूसरी तरफ मेरी तस्वीर छपवाई जाए, क्योंकि मेरी सूरत भी खराब तो नहीं ही है। मेरी दावेदारी का एक मज़बूत पक्ष यह भी है कि कल रात मुझे जो सपना आया, उसके अनुसार मैं पिछले जन्म में एक समर्पित स्वतंत्रता सैनानी था

'मुझे दहेज चाहिए' (कहानी)

     (1) "सुनो जी, तुमने अच्छे से पता तो कर लिया है ना कि लड़का कैसा है। तुमने उन लोगों को यहाँ आने के लिए भी कह दिया है और मुझे उनके बारे में तनिक भी पता नहीं है।" "अरे भागवान, हम घर के लिए कोई चीज़ खरीदते हैं, तो भी पूरी जांच-पड़ताल करते हैं के नाहीं, फिर यह तो रिश्ता करने की बात है। क्या यूँ ही आँख मूँद कर यह काम कर रहा हूँ? मेरे दोस्त घनश्याम ने ही तो बताया है यह रिश्ता। मैं वाके साथ बड़ी सादड़ी जा के लक्ष्मी लाल जी के परिवार से मिल भी तो आया हूँ।... और फिर हम कौन तुरंत ही रिश्ता पक्का किये दे रहे हैं।" "फिर भी मुझे तो कुछ बताते। ऐसे मामलों में जल्दबाज़ी अच्छी नहीं होती जी! ये का बात हुई कि परसों ही उनके वां गये और अपने यां आने का  नौता भी दे आये।" -चंदा ने मुँह बिगाड़ते हुए कहा।  "बावली, ऐसे रिश्ते किस्मत से मिलते हैं। नायब तहसीलदार है लड़का, कोई छोटी-मोटी बात है का? दो-तीन साल में तहसीलदार बन जावेगा। तनखा से ज़ियादा तो ऊपरी कमाई होत है इन लोगन की। लड़का शकल से तो अच्छा है ही, परिवार भी रसूखदार है।" -राज नाथ इस रिश्ते से बहुत प्रभावित थे।  "लड़का