भारत के बाहर विदेशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्ला देश) में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग (गैर मुस्लिम) वहां की सरकारों व मुस्लिम जनता के द्वारा लगातार प्रताड़ित किये जाते रहे हैं। अपने धर्म, अपनी अस्मिता, अपनी सम्पत्ति और यहाँ तक कि अपने आस्तित्व की रक्षा कर पाना उनके लिए दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में, जिनसे बन पड़ा, उन देशों से भाग कर भारत में आ गए और वर्षों से यहाँ शरणार्थी का जीवन जीते रहे हैं। उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी थी। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाई और ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक व निर्भीक जीवन जी सकने का मार्ग प्रशस्त किया एवं तदर्थ दिसम्बर सन् 2019 में 'नागरिकता (संशोधन) अधिनियम' (CAA) बनाया, जिसे दि. 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति ने भी मान्यता दे दी। विभिन्न विचारधाराओं एवं राजनैतिक विरोधियों की प्रतिरोधात्मक अभिवृत्ति से जूझने के बाद अन्ततः दि. 11 मार्च, 2024 को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया।
अभी भी कुछ लोग व राजनैतिक दल CAA लागू होने को अपनी पराजय मान कर छटपटा रहे हैं, चिल्ला रहे हैं, लेकिन गृहमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि यह अधिनियम किसी भी स्थिति में वापस नहीं लिया जायगा। सत्ता-पक्ष के नेता बारम्बार कह रहे हैं कि यह अधिनियम किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं, नागरिकता देने के लिए है, लेकिन विपक्षी विचारधारा के लोगों के लिए यह आश्वासन 'काला अक्षर भैंस बराबर' जैसा है। जो समझने का इच्छुक हो, उसे समझाया जा सकता है, लेकिन जो समझ कर भी नहीं समझने का अभिनय करे, उसे समझा पाना टेढ़ी खीर है।
CAA की सार्थकता से अनिभिज्ञ होने का ढोंग करने वाले लोगों का तर्क है कि इस अधिनियम द्वारा एक धर्मविशेष (मुस्लिम धर्म) की उपेक्षा की गई है, उक्त तीनों देशों से पलायन कर आये मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं देने का प्रावधान रखा जा कर उनके साथ सौतेला व्यवहार किया गया है। अपनी इस बात के समर्थन में वह लोग कहते हैं कि यह अधिनियम भारतीय संविधान की भावना के विपरीत है।
विरोधियों के इस कुतर्क का विरोध करते हुए सरकार ने स्पष्ट किया है कि अधिनियम में सरकार ने भारत में आये उन तीनों देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान रखा है और चूँकि मुस्लिमधर्मी उन देशों में अल्पसंख्यक नहीं हैं, अतः उन्हें यहाँ की नागरिकता देने का औचित्य नहीं है।
उपरोक्त पक्ष-विपक्ष के वादविवाद के परिदृश्य में मैं अपनी बात कहना चाहूँगा कि CAA का विरोध करने वाले राजनैतिक विद्वान किस संविधान की बात कर रहे हैं? क्या हमारा संविधान वैश्विक संविधान है कि इसके कथ्य पूरे विश्व के लोगों पर लागू होने योग्य हैं? संविधान की आचार-संहिता व नियम मात्र हमारे देश के नागरिकों पर लागू होते हैं। अन्य देशों के मुसलमान नागरिक भारत के नागरिक नहीं हैं, अतः उनके साथ हमारे संविधान की बातों को जोड़ कर भारतीय मुसलमानों को बरगलाने के लिए किया जा रहा यह प्रयास कुटिल राजनीतिबाजों का दुष्प्रचार मात्र है।
आवश्यक है कि राष्ट्र-हित में सभी लोगों के द्वारा इस अधिनियम 'CAA' का खुले मन से समर्थन किया जाय, अन्यथा तो वैसे भी, नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कोई नहीं सुन पाता है।
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