'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।
मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।
दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से धिक्कारा जाने व कठोर दण्ड पाने के योग्य है। हमें मिल कर प्रयास करना होगा कि देश में समाज-सुधार के क्षेत्र में महामना मदन मोहन मालवीय तथा स्वामी दयानन्द सरस्वती, जैसे समाज-सुधारकों के योगदान को हम व्यर्थ न जाने दें।
दलित वर्ग भी अपनी हीनभावना की मानसिकता से यदि पीछे नहीं हटा तो शायद वर्णभेद को समाप्त करना कभी सम्भव नहीं हो सकेगा और फलतः हमारा यह हिन्दू समाज बिखरा-बिखरा ही रहेगा। हम इस समस्या को निम्नाङ्कित छोटे से दृष्टान्त से समझें।
एक लड़की और एक लड़के के मध्य वार्तालाप :-
लड़की लड़के पर आरोप लगाती है- "तुम मुझे क्यों घूर रहे हो?'
"मैं तुम्हें नहीं घूर रहा, तुम्हारे पीछे होल्डिंग पर लगे विज्ञापन को देख रहा हूँ।"
"अभी नहीं, तो बाद में देखोगे।"
"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है।"
"इरादा बनते क्या देर लगती है? तुम लड़के होते ही ऐसे हो।"
"मैं वैसा लड़का नहीं हूँ।"
"यहाँ भीड़ है। कभी अकेली मिल जाऊँगी, तब तो घूरोगे भी और छेड़ोगे भी।"
"अरे बाबा, बस करो मेरी माँ! बख़्शो मुझे।"... और लड़का वहाँ से भाग छूटता है, समझ लेता है कि कुछ लड़कियों की मानसिकता ही ऐसी होती है।
वार्तालाप समाप्त।
यह दृष्टान्त दलित वर्ग के उन लोगों पर लागू होता है, जो वृथा ही यह भ्रम पाले रहते हैं कि सवर्ण उन को हेय दृष्टि से देखते हैं।
मेरे दलित भाइयों, राजनीति के कुचक्र को पहचानने का प्रयास करो और अपनी कुण्ठा से बाहर निकलो। आप लोग दलित नहीं हो, हममें से ही हो। अच्छी तरह से समझ लो, ईश्वर ने हम सब को समान रूप से इस संसार में भेजा है।
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