'गोदी मीडिया', 'गोदी मीडिया' कह कर शोर मचाने वाले यह 'रोती मीडिया' (मेरे द्वारा किया गया नामकरण) के नाकारा पत्रकार भारत सरकार के हर फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया करके निरन्तर जहर उगला करते रहते हैं। अभी हाल में एक नया मुद्दा इनकी खुराक बना है - 'वन नेशन, वन इलेक्शन'।
सामान्य बुद्धि रखने वाला कोई भी व्यक्ति इस मिशन की सार्थक उपयोगिता समझ सकता है, लेकिन रोती मीडिया के यह विघ्न-संतोषी तथाकथित पत्रकार इसमें भी दोष ही दोष बता कर तूफान खड़ा कर रहे हैं; इसमें बीजेपी का ही फायदा है, यह बताने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।
हमारे देश के ख्यात झूठ-सम्राट तो कहते हैं कि बीजेपी वाले यह मिशन लाना चाहते हैं, ताकि पांच साल तक उन्हें जनता के सामने नहीं आना पड़े। यानी वह यह तो मान ही रहे हैं कि बीजेपी ही अगली बार भी सता में आएगी। अरे भई, व्यर्थ की अविवेकतापूर्ण बातें करने और झूठी नौटंकी करने के बजाय वास्तविकता की धरती पर कुछ अच्छे काम कर दिखाने का प्रयास करो तो तुम लोग भी सत्ता में आ सकोगे। फिर बने रहना सत्ता में पाँच साल तक, कौन रोकता है? 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के मिशन को वह और उनके साथी गठबंधन के लोग क्या एकतंत्रीय शासन-व्यवस्था लाने का साधन मानते हैं? क्या पाँच साल बाद दुबारा चुनाव नहीं होंगे?
कॉन्ग्रेस की एक नेता एक डिबेट में कॉन्ग्रेस की प्रतिनिधि के रूप में कह रही थीं कि बीजेपी ने यह शगूफा जनता का ध्यान बंटाने और भ्रमित करने के लिए छोड़ा है। जनता द्वारा बार-बार नकारे जाने के बाद भी नकारात्मक राजनीति करना इन लोगों की फ़ितरत बन गया है।
इस योजना का विरोध करने वाले राजनैतिक दलों का यह कहना कहाँ तक युक्तिसंगत है कि बीजेपी एक बार चुनाव हो जाने के बाद पाँच साल तक जनता के पास नहीं आना चाहती, जबकि यह स्थिति तो हरेक दल के लिए प्रत्येक चुनाव में समान होती है? तो क्या वह लोग प्रति वर्ष नये सिरे से चुनाव कराना चाहते हैं?
हमारे देश के 17वें लोकसभा चुनाव में साठ हज़ार करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च हुई थी। लोकसभा चुनाव के अलावा किसी न किसी राज्य में हर वर्ष विधानसभा के चुनाव होते ही रहते हैं। समझा जा सकता है कि विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में कितनी विशाल राशि खर्च होती होगी।
ऐसा नहीं है कि अभी बीजेपी द्वारा प्रस्तावित लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ और उसके ठीक बाद विभिन्न निकायों के चुनाव भी एक साथ कराये जाने का मामला नितान्त नया विचार है ( विघ्न-संतोषियों के अनुसार यह एक शगूफा है), पहले भी (स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद) देश में ‘एक देश-एक चुनाव’ की परम्परा थी। सन् 1952, 1957, 1962 व 1967 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ हुए थे। तब किसी ने कोई बखेड़ा खड़ा नहीं किया था। सम्भवतः वर्तमान में लोगों में बुद्धि कुछ अधिक ही आ गई है। सन् 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ भंग कर दी गई थीं। इसके बाद सन् 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराये गए थे। तब से ‘एक देश-एक चुनाव’ की पद्धति अघोषित रूप से समाप्त हो गई। तत्पश्चात सन् 1990 में विधि आयोग की रिपोर्ट में ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए समर्थन व्यक्त किया गया था, लेकिन इसका क्रियान्वन नहीं हो सका।
‘एक देश-एक चुनाव’ पद्धति विश्व के कई और देशों में भी प्रचलन में है और वहाँ यह प्रणाली पूर्णतः सफल प्रमाणित हुई है।
विरोध की मानसिकता रखने वाले कुछ विपक्षी दलों के आधारहीन तर्कों से इतर हम इस मिशन की सार्थकता व गुणावगुण पर चर्चा करें।
लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाने के औचित्य का सबसे मज़बूत पक्ष यह है कि इस व्यवस्था से न केवल देश की अकूत धनराशि की बचत होती है, अपितु प्रत्याशियों को व्यक्तिगत खर्च भी बहूत कम करना पड़ता है। कर्मचारियों व विभिन्न स्तर के अधिकारियों से मात्र एक बार चुनाव सम्बन्धी कार्य करवाए जाने से उनके समय, श्रम व उन पर किये जाने वाले बेशुमार धन की बचत होती है। चुनाव के समय होने वाली विभिन्न दुर्घटनाओं में कमी आती है। राजनैतिक दलों के द्वारा चंदे के रूप में जो धन जनता से लूटा जाता है, उससे भी जनता को राहत मिलती है। चुनाव प्रचार, चुनावी सभाओं व मतदान-कार्य के दौरान जनता के सामान्य जीवन में जो व्यवधान आता है, उसमें भी कमी आती है। पेट्रोल, डीज़ल, आदि की बचत होने से आयात सम्बन्धी खर्चों में बचत होती है।
उपरोक्त सभी खूबियों के बावज़ूद इस पद्धति में आने वाली सम्भावित समस्याओं पर गहन चिंतन की आवश्यकता है।
यदि किसी कारणवश कभी लोकसभा या किसी विधानसभा के भंग हो जाने की स्थिति बन जाए, तो इस पद्धति का निर्वाह कैसे होगा?
पृथक-पृथक विचारधाराओं वाले दलों की इस प्रस्ताव के प्रति सहमति पाना कैसे सम्भव हो सकेगा?
एक साथ सभी चुनाव कराये जाने पर प्रचुर सुरक्षा-व्यवस्था पहली आवश्यकता होगी।
यदि इन कुछ समस्याओं का सहज समाधान मिल जाए, तो ‘एक देश-एक चुनाव’ पद्धति निर्विवाद रूप से सफल सिद्ध होगी, देश के लिए वरदान बन जाएगी।
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