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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक आम आदमी

     पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अब एक आम आदमी हैं फिर भी उन्होंने अपना पूर्व में आवंटित बंगला बदस्तूर अपने पास कायम रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। आम आदमियों में से कई ऐसे विपन्न भी हैं जिनके सिर पर छत नहीं है और वह अपनी रातें

मैंने उसके बदन पर हाथ रखा!

    रास्ता कुछ ज्यादा ही तंग था। मैं अपना दृष्टि सुधारक यंत्र (चश्मा) घर पर भूल गया था और ऊपर से रात का अँधेरा गहरा आया था। स्कूटर की हैडलाइट ने भी अभी पांच मिनट पहले ही नमस्ते कर दी थी। नगर निगम इस इलाके में ब्लेक-आउट जैसी स्थिति रखता है सो बिजली की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में राह में आगे क्या-कुछ है, जानना बहुत सहज नहीं था।....सो मंथर गति से चल रहा मेरा स्कूटर संभवतः किसी के शरीर से हलके से छू गया। घबराहट के मारे मेरे कान सतर्क हो गये कि अब कुछ न कुछ मेरे पुरखों का गुणगान होगा। लेकिन ऐसा कुछ न हुआ, शायद स्कूटर उसे न ही छुआ हो, मैंने सोचा।      अब भी स्कूटर को मैं धीरे-धीरे ही आगे बढ़ा रहा था क्योंकि वह बंदा, जो कोई भी था, जगह देने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब मैं थोड़ा और सतर्क हो गया। अवश्य ही यह सिरफिरा, मगरूर शख्स, सत्ता-पक्ष या विपक्ष के किसी दबंग नेता का मुँहलगा प्यादा होगा और इसीलिए 'हम चौड़े, सड़क पतली' वाले अहसास के चलते इस अंदाज़ में बेफिक्र चल रहा था। गुस्सा तो ऐसा आ रहा था कि चढ़ा दूँ स्कूटर उसके ऊपर, किन्तु ऐसा करने का कलेजा कहाँ से लाता!      "साहब मेह

यह तो जनता की विवशता है!

    कर्नाटक की चुनावी बढ़त न तो BJP की जीत है और न ही मोदी जी का जादू! यह तो जनता की वह विवशता है जिसने

मैं ढूंढ रहा हूँ मुकेश अम्बानी को...!

        अभी कुछ डेढ़-दो वर्ष पहले की ही तो बात है जब फोन पर बात करते समय कई लोग ध्यान रखते थे कि बात करते-करते कितनी देर हो गई है और यह भी ध्यान रखते थे कि उस सिम से बात की जाये जिसमें call rate कम हो। यदि सामने वाले व्यक्ति ने कॉल लगाया हो तो ज्यादा चिंता नहीं होती थी पर यदि हमने लगाया हो तो बात लम्बी हो जाने पर -'सॉरी यार, कोई गेस्ट आया है', कह कर फ़ोन काट दिया करते थे, बशर्ते कि सामने वाला कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति न हो और या कि कोई बहुत ही महत्वपूर्ण बात न हो रही हो।    अभी आज सुबह की ही तो बात है, मैं किसी ज़रूरी काम से घर से बाहर निकलने को ही था कि एक परिचित सज्जन का फोन आया। वैसे तो महीनों तक उन्हें कभी मिलने की फुर्सत नहीं होती, पर फोन पर उनका स्नेह-प्रदर्शन कृष्ण-सुदामा के स्नेह-मिलन की गहनता को भी लज्जित करता था। उनके स्नेहालाप का विषय विविधताओं से परिपूर्ण होता है, अडोस-पड़ोस से लेकर विश्व-स्तर तक के मुद्दों को खंगाल डालते हैं अपनी बातों के दौरान।     आज भी जब 10-12 मिनट हो गए उनसे बात करते-करते और मेरे बीच-बीच के विरोधात्मक नुक्तों को, यथा- 'ओके यार तो मिलो कभी जल

मैं परेशां हूँ मित्रों...!

     कुछ दिनों से मैं परेशां हूँ मित्रों! आपसे समाधान पाने की उम्मीद से यह सब बयां कर रहा हूँ। अभी कुछ ही समय पहले की बात है, हमारे मकान में एक किरायेदार आ गया, हम नहीं चाहते थे फिर भी। बाद में कुछ ही दिनों में उसने