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एक आम आदमी

     पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अब एक आम आदमी हैं फिर भी उन्होंने अपना पूर्व में आवंटित बंगला बदस्तूर अपने पास कायम रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। आम आदमियों में से कई ऐसे विपन्न भी हैं जिनके सिर पर छत नहीं है और वह अपनी रातें
सड़क के फुटपाथ पर गुजारने को विवश हैं। यदि मुलायम सिंह ने अपना पैसा विदेशों में जमा नहीं कराया है तो एक अदद घर तो वह खरीद ही सकते हैं। क्यों उनसे सरकारी बंगले का मोह नहीं छूट रहा? अगर वह hand to mouth हैं तो किसी बैंक से ऋण लेकर एक छोटा-मोटा दो कमरों का मकान खरीद लें और किश्तों में चुकाने का करार कर लें। एक-दो किश्तें पड़ोसियों से उधार लेकर बैंक में जमा करा दें और फिर दरवाजे पर कुंडी लगा कर खटिया पर चैन से सो जाएँ। बैंक ने नीरव मोदी से कौन सी वसूली कर ली जो मुलायम जी से कर लेंगे! हाँ, बैंक से ऋण लेने के लिए जमानत देनी पड़ती है सो अगर जमानत का इंतजाम नहीं कर सकते तो ऋण तो मिलेगा नहीं। ऐसी हालत में कहीं किराये का मकान ही ढूंढ लें। और वह भी नहीं, तो एक साधनविहीन आम आदमी की ज़िन्दगी ही जी लें। यह कौन-सी बात हुई कि सरकारी बंगले पर कुंडली मार कर जमे रहें!
     उधर इनके साहबजादे अखिलेश ने भी अपना बंगला खाली नहीं करने के पक्ष में अपनी सुरक्षा व अपने बच्चों की पढाई की दलील दी है, जैसे कि उन लोगों के बच्चे तो परीक्षा में पास होते ही नहीं जो सरकारी बंगलों में नहीं रहते। जहाँ तक सुरक्षा का प्रश्न है तो क्या सरकारी बंगले पुराने राजाओं के किलों के वास्तुकारों और शिल्पकारों की संतानों के दिशा-निर्देश में बने हैं?
     सरकारी कर्मचारी तीस-चालीस साल तक की सेवा के बाद जब सेवानिवृत होता है तो आनन-फानन में उससे सरकारी क्वार्टर (यदि किसी को कई चप्पलें घिसने के बाद भाग्यवश मिला है तो) खाली करवा लिया जाता है, क्योंकि वह आम आदमी है और उसी आम आदमी के वोट से 'खास' बना नेता/मंत्री अपना आलीशान बंगला छोड़ना ही नहीं चाहता। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी वह अपनी तिकड़मों से नज़रन्दाज़ करने की भरपूर कोशिश करता है।
    लेकिन...लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हथोड़ा इनकी नामुराद ख्वाहिशों पर चल कर रहेगा और इनको सड़क पर आना ही होगा।
 
 

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