सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मैं ढूंढ रहा हूँ मुकेश अम्बानी को...!

   

    अभी कुछ डेढ़-दो वर्ष पहले की ही तो बात है जब फोन पर बात करते समय कई लोग ध्यान रखते थे कि बात करते-करते कितनी देर हो गई है और यह भी ध्यान रखते थे कि उस सिम से बात की जाये जिसमें call rate कम हो। यदि सामने वाले व्यक्ति ने कॉल लगाया हो तो ज्यादा चिंता नहीं होती थी पर यदि हमने लगाया हो तो बात लम्बी हो जाने पर -'सॉरी यार, कोई गेस्ट आया है', कह कर फ़ोन काट दिया करते थे, बशर्ते कि सामने वाला कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति न हो और या कि कोई बहुत ही महत्वपूर्ण बात न हो रही हो।
   अभी आज सुबह की ही तो बात है, मैं किसी ज़रूरी काम से घर से बाहर निकलने को ही था कि एक परिचित सज्जन का फोन आया। वैसे तो महीनों तक उन्हें कभी मिलने की फुर्सत नहीं होती, पर फोन पर उनका स्नेह-प्रदर्शन कृष्ण-सुदामा के स्नेह-मिलन की गहनता को भी लज्जित करता था। उनके स्नेहालाप का विषय विविधताओं से परिपूर्ण होता है, अडोस-पड़ोस से लेकर विश्व-स्तर तक के मुद्दों को खंगाल डालते हैं अपनी बातों के दौरान।
    आज भी जब 10-12 मिनट हो गए उनसे बात करते-करते और मेरे बीच-बीच के विरोधात्मक नुक्तों को, यथा- 'ओके यार तो मिलो कभी जल्दी ही'; 'चलो यार, थैंक्स फॉर कालिंग', आदि को भी जब उन्होंने कोई महत्व नहीं दिया तो थक-हार कर मुझे कहना ही पड़ा- 'सॉरी, मुझे अभी कहीं निकलना है, फ़ोन बंद करना पड़ेगा, बाय' और मैंने फोन काट दिया।
    तो मित्रों, ऐसी दुर्घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि तब से हुई है जब से Jio  का पदार्पण हुआ है। यह उसकी लगभग 'मुफ्त की कॉल' का ही नतीजा है कि लोगों को कॉल के समय की कतई चिंता नहीं रही।
    मैं ढूंढ रहा हूँ मुकेश अम्बानी को, पूछूँगा उनसे कि लोगों से यह किस जन्म की दुश्मनी निकाली है उन्होंने!  



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे

पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह