सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

यह तो जनता की विवशता है!

 

  कर्नाटक की चुनावी बढ़त न तो BJP की जीत है और न ही मोदी जी का जादू! यह तो जनता की वह विवशता है जिसने
'कुछ' बेहतर को चुना क्योंकि वह अधिक निकम्मों को सत्ता में नहीं लाना चाहती थी! सब जगह जनता त्रस्त है, परिवर्तन भी चाहती है, लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं है। वह 'वह' द्रोपदी बना दी गई है जिसका चीर-हरण कई सत्ता-पिपासु दुशासनों द्वारा निरन्तर किया जा रहा है। कुछ राष्ट्रप्रेमी बुद्धिजीवी यह सब देख कर व्यथित हैं पर भीष्म पितामह बने रहना उनकी विवशता है। 
      राजनीतिबाजों ने अपनी कलुषित मानसिकता पर से मर्यादा के सभी आवरणों को उतार फेंका है। राजनीति में गिरावट का स्तर पाताल तक न जा पंहुचा होता तो क्या सोशल मीडिया में प्रधान मंत्री के गरिमामय पद पर आसीन मोदी जी के लिए 'फेंकू' जैसे अभद्र शब्द का प्रयोग करने का दुस्साहस कोई भी ऐरा-गैरा व्यक्ति कर सकता था, अंगेजों द्वारा कंगाल हालत में छोड़े गये इस देश को उन्नति के कई आयाम देने वाली कांग्रेस पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गाँधी को 'पप्पू-पप्पू' कह कर कोई अपमानित कर सकता था? कहावत भी है न कि हम काटते वही है जो बोते हैं। जब हम अपने नैतिक स्तर को गिरा लेते हैं तो किसी का विरोध-प्रतिरोध करने की समुचित शक्ति हमारे पास नहीं रह जाती।
     मोदी जी एक विशाल जनमत लेकर सत्तासीन हुए थे पर क्या अपनी लोकप्रियता के ग्राफ को अब तक उसी स्तर पर रख पाए हैं? मैंने उनके प्रचण्ड समर्थकों को भी इन दिनों उनकी कटु आलोचना करते देखा है। मोदी जी के पिछले चार वर्षों के शासन में काम तो हुआ है, लेकिन अपेक्षा के अनुकूल तो कतई नहीं। इसके अतिरिक्त मोदी जी अपने शब्दों में, अपने भाषणों में अपने पद की गरिमा बनाए रखने के प्रति भी कभी गम्भीर नहीं रहे। आज के समाचार पत्र के अनुसार अभी हाल मोदी जी द्वारा कहे गए कुछ शब्द इसी की बानगी देते हैं।

                                
     मेरे द्वारा यह पंक्तियाँ लिखे जाने तक TV में चल रहे ताज़ा समाचारों के अनुसार कांग्रेस ने JDS पार्टी को समर्थन दे दिया है और तीसरे स्थान पर रहने वाली JDS पार्टी (BJP-104, कांग्रेस-77, JDS-39 व अन्य-2) संभवतः सरकार बनाने जा रही है, यद्यपि स्थिति अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। BJP ने सत्ता की मदान्धता के चलते अपनी बुनियाद को स्वयं ने हिला दिया है, अन्यथा कर्नाटक में स्थिति भिन्न होती। यह प्रजातांत्रिक विभीषिका ही है कि दो अल्पमत वाले दल हाथ मिला कर सरकार बनाने जा रहे हैं।
     BJP सन् 2014 में मिली विजय को तथा विपक्षी अपनी पराजय को पचा नहीं पाए और इनके नेताओं-अनुयायियों में एक-दूसरे को नीचा दिखाने व लांछित करने की प्रतियोगिता चलती रही।
     राजनीति कोई अनछुआ पहलू होता तो कोई और बात थी, यह कोई नवजात शिशु नहीं है। इसके दामन तले सैकड़ों+ पीढ़ियां निकल चुकी हैं। वर्तमान दशक के पूर्व तक राजनीति का स्तर काफी साफ-सुथरा था। अपने कथन के समर्थन में एक प्रबुद्ध लेखक के अभी कुछ दिन पहले के एक आलेख से लिया गया उद्धरण यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ जो उस समय की राजनैतिक शुचिता का दिग्दर्शन कराता है .....

              

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे

पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह