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CAA के विरोध का औचित्य?

         भारत के बाहर विदेशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्ला देश) में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग (गैर मुस्लिम) वहां की सरकारों व मुस्लिम जनता के द्वारा लगातार प्रताड़ित किये जाते रहे हैं। अपने धर्म, अपनी अस्मिता, अपनी सम्पत्ति और यहाँ तक कि अपने आस्तित्व की रक्षा कर पाना उनके लिए दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में, जिनसे बन पड़ा, उन देशों से भाग कर भारत में आ गए और वर्षों से यहाँ शरणार्थी का जीवन जीते रहे हैं। उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी थी। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाई और ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक व निर्भीक जीवन जी सकने का मार्ग प्रशस्त किया एवं तदर्थ दिसम्बर सन् 2019 में 'नागरिकता (संशोधन) अधिनियम' (CAA) बनाया, जिसे दि. 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति ने भी मान्यता दे दी। विभिन्न विचारधाराओं एवं राजनैतिक विरोधियों की प्रतिरोधात्मक अभिवृत्ति से जूझने के बाद अन्ततः दि. 11 मार्च, 2024 को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया।  अभी भी कुछ लोग व राजनैतिक दल CAA लागू होने को अपनी पराजय मान कर छटपटा रहे हैं

मोहब्बत की दुकान (व्यंग्य लघुकथा)

                                                     मोहब्बत की दुकान                                                     बाज़ार में टहलकदमी करते हुए एक दुकान के पास पहुँचते ही मेरे पाँव रुक गए। अजीब-सा नाम था उस दुकान का- 'मोहब्बत की दुकान'।  मैं यह जानने को उत्सुक हुआ कि आखिर इस दुकानदार द्वारा क्या माल बेचा जाता है। नाम देख कर काम जानने की इच्छा होना स्वाभाविक भी था ही। दुकानदार के चेहरे पर मुस्कान थी। असली थी या नकली, यह भला मेरे जैसा सीधा-सादा आदमी कैसे जान सकता था? पास जा कर मैंने पूछा- "भैया जी, क्या बेचते हो?" दुकान से बाहर आ कर मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया- "दुकान के बोर्ड पर जो नाम लिखा है, तुमने पढ़ा नहीं क्या?" "पढ़ा है भाई।" "क्या लिखा है उस पर?" "मोहब्बत की दुकान।" "मिठाई की दुकान पर जाते हो तो वहाँ क्या मिलता है?" "मिठाई! और क्या मिलेगा?" "वही तो! तो भाई साहब, इसी तरह हमारे यहाँ मोहब्बत मिलती है।" "वो तो ठीक है, लेकिन यह मोहब्बत भी कोई बेचने की चीज़ है?" "नही

एक नन्ही-सी कहानी

बदलू राम, अकड़ू राम, गोलू मल, पेटू चन्द, नौटंकी लाल, हेठी बाई, तेजी ताई, वगैरह-वगैरह चचेरे-ममेरे भाई-बहन एक कमरे में बैठे मीटिंग कर रहे थे। मुद्दा था, मोहल्ले के वर्तमान अध्यक्ष को हटा कर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिए नक्शा तैयार करना। सब की अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग - हर कोई अध्यक्ष बनने का इच्छुक, पर अपने मुँह से कहे कौन? कुछ रिश्तेदारों ने गोलू मल का नाम सुझाया, तो उसे अयोग्य मान कर नौटंकी लाल बिफर गया, क्योंकि वह तो खुद को ही सबसे अधिक योग्य मानता था। बदलू राम सहित दो-तीन अन्य रिश्तेदार भी, जो स्वयं अध्यक्ष बनने को बेचैन थे, गोलू मल के चुनाव से सहमत नहीं थे। लेकिन बेचारे कुछ कह नहीं पा रहे थे। किसी एक ने बदलू राम का नाम भी चलाया। बदलू राम के मन में तो लड्डू फूट रहे थे, पर बेचारा ‘ना-ना, मैं नहीं’, कहते हुए इंतज़ार कर रहा था कि और कोई भी आग्रह करे, लेकिन बात बनी नहीं।  इस बात से तो सब एकमत थे कि नया अध्यक्ष बनना चाहिए जो इन्हीं लोगों में से एक हो, किन्तु कौन हो, इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी। सभी रिश्तेदार आपस में कहीं न कहीं एक दूसरे से कुढ़ते थे, लेकिन मौ

पापसंकट

                                                                                केजरीवाल पापसंकट में फंस गए हैं (अब 'धर्मसंकट' शब्द उनके मामले में तो रुचता नहीं 😊)। गुजरात में चुनाव के वक्त उनके द्वारा जनता को कहे गये शब्द 'कॉन्ग्रेस को वोट मत देना। वह पार्टी तो अब ख़त्म हो गई है। आपका वोट बेकार चला जाएगा। हमें वोट देना, गुजरात में हम बहुमत से आ रहे हैं', कॉन्ग्रेस अब तक भूली नहीं है।  सम्भवतः कॉन्ग्रेस ने हर अवसर पर अपना विरोध देख कर ही कर्नाटक-विजय के बाद किये गये शपथ-गृहण समारोह में केजरीवाल को नहीं बुलाया था।  टीवी समाचार के अनुसार आज वह महान दलबदलू नेता नीतीश कुमार से कह रहे थे कि वह भी हर राज्य में जा कर हरेक विपक्षी नेता से मिलेंगे व एकजुट रहने के लिए उन्हें तैयार करेंगे।  वैसे केजरीवाल एक अवसरवादी राजनेता हैं। वह क्या कहते हैं, क्या करते हैं, इस बात को संजीदगी से लेने की ज़रुरत नहीं है। अब देखना यह है कि कितना कीचड़ वह भी फैला पाते हैं। *******