सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एक नन्ही-सी कहानी

बदलू राम, अकड़ू राम, गोलू मल, पेटू चन्द, नौटंकी लाल, हेठी बाई, तेजी ताई, वगैरह-वगैरह चचेरे-ममेरे भाई-बहन एक कमरे में बैठे मीटिंग कर रहे थे। मुद्दा था, मोहल्ले के वर्तमान अध्यक्ष को हटा कर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिए नक्शा तैयार करना। सब की अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग - हर कोई अध्यक्ष बनने का इच्छुक, पर अपने मुँह से कहे कौन? कुछ रिश्तेदारों ने गोलू मल का नाम सुझाया, तो उसे अयोग्य मान कर नौटंकी लाल बिफर गया, क्योंकि वह तो खुद को ही सबसे अधिक योग्य मानता था। बदलू राम सहित दो-तीन अन्य रिश्तेदार भी, जो स्वयं अध्यक्ष बनने को बेचैन थे, गोलू मल के चुनाव से सहमत नहीं थे। लेकिन बेचारे कुछ कह नहीं पा रहे थे। किसी एक ने बदलू राम का नाम भी चलाया। बदलू राम के मन में तो लड्डू फूट रहे थे, पर बेचारा ‘ना-ना, मैं नहीं’, कहते हुए इंतज़ार कर रहा था कि और कोई भी आग्रह करे, लेकिन बात बनी नहीं। 

इस बात से तो सब एकमत थे कि नया अध्यक्ष बनना चाहिए जो इन्हीं लोगों में से एक हो, किन्तु कौन हो, इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी। सभी रिश्तेदार आपस में कहीं न कहीं एक दूसरे से कुढ़ते थे, लेकिन मौज़ूदा अध्यक्ष को पद से हटाने के लिए एक होने की कोशिश कर रहे थे। कोई एक भी समझदारी की बात करने में कामयाब नहीं हो सका। सभी मन ही मन यह तो मान रहे थे कि वर्तमान अध्यक्ष उन सबसे बहुत अधिक काबिल और समझदार है, लेकिन स्वीकार करना नहीं चाहते थे, क्योंकि सब की अपनी पद-लिप्सा जो थी। दो घंटे की मशक्क़त और चाय-नाश्ते के बाद कुछ लोगों के द्वारा रायता फैलाये जाने से उखड़ कर सब लोग उठ खड़े हुए और अगली मीटिंग में कुछ और सोचेंगे, करेंगे, कहते हुए बिखर गए। 

पड़ोस में रहने वाले कुछ लोग उन्हें जाते देख कर हँस रहे थे और सोच रहे थे कि अध्यक्ष तो जो है सो ही रहेगा, लेकिन यह लोग धांधली करने के लिए फिर कब इकट्ठे होने वाले हैं।

*******

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-07-2023) को   "आया है चौमास" (चर्चा अंक 4671)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे

पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह