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ओमिक्रॉन

             कितना सुन्दर नाम है 'ओमिक्रॉन'! पढ़-सुन कर लगता है, जैसे किसी अच्छे ब्रैण्ड का मोबाइल या कम्प्यूटर हो, लेकिन कम्बख़्त है यह एक दुखदायी वायरस!... बेड़ा गर्क हो इस मुँहजले बहरूपिये जीवाणु का😞😠! *****

पड़ोसी की बदहाली (व्यंग्य लेख)

           पता नहीं, आप क्रिकेट के मैदान में रन कैसे बना लेते थे इमरान साहब! सियासत के मैदान पर तो आप लगातार क्लीन बोल्ड हो रहे हो। वैसे तो आपके मुल्क के अभी तक के सभी हुक्मरान उल्टी खोपड़ी के ही देखने में आए हैं। आप लोगों की हालत ऐसे आदमी जैसी है जिसके पास एक बीवी को खिलाने की औकात नहीं है और दो-तीन निकाह के लिये उतावला रहता है। तो, बड़े मियां, मानोगे मेरी एक सलाह? मौके का फायदा उठा कर ज़बरदस्ती कब्जाया POK लौटा दो हमारे भारत को। वैसे भी कड़की भुगत रहा इन्सान अपने घर की चीजें बेच कर अपनी ज़रूरतें पूरी करने को मजबूर हो जाता है। ... और फिर POK तो आपका अपना माल भी नहीं है, देर-सवेर हम वापस ले ही लेंगे आपसे। एक बात और कहूँ आप बुरा न मानें तो! देखिये, अमेरिका ने आपको घास डालनी बन्द कर दी है और आपको भी अच्छे-से पता है कि आपका वो गोद लिया पापा है न, क्या नाम है उसका, हाँ याद आया, 'चीन', तो वह तो मतलब का यार है आपका।...अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा आपके लिए! भुखमरी के आपके इन हालात में मैं आपको बमुश्किल दो-तीन हज़ार रुपये की अदद मदद कर सकता हूँ। सौ-पाँचसौ की बढ़ोतरी और भी करता, मगर क्या करूँ पें

लैंडमार्क (लघुकथा)

मेरा पुराना मित्र विकास एक साल पहले इस शहर में आया था। मैं भी उससे तीन माह पहले ही यहाँ आया था। उसके आने की सूचना मिलने के कुछ ही दिन बाद उससे फोन पर बात कर उसके घर का पता पूछा, तो उसने चहकते हुए जवाब दिया था- "अरे वाह, तो आखिर तुम आ रहे हो! यार, मैं तो ज़बरदस्त व्यस्तता के कारण तुम से मिलने नहीं आ पाया, पर तुम तो मिलने आ सकते थे न!" "क्या बताऊँ दोस्त? कोरोना की आफत ने घर से बाहर निकलना ही दुश्वार कर दिया है, फिर भी आज हिम्मत कर रहा हूँ। तुम अपने घर का पता तो बताओ।" -मैंने कहा था।  "गली का नाम तो मुझे ठीक से याद नहीं है, लेकिन तुम ऐसा करना कि जनरल हॉस्पिटल तक आने वाली सड़क पर सीधे चले आना। हॉस्पिटल से आधा किलो मीटर पहले सड़क पर दो बड़े गड्ढे दिखाई देंगे। बड़ा वाला गड्ढा तो सड़क के एक किनारे पर है और दूसरा उससे छोटा वाला सड़क के बीचोंबीच दिखाई देगा। तो बस, बड़े गड्ढे के पास वाली गली में बायीं तरफ छः मकान छोड़ कर सातवें  मकान में रहता हूँ। मकान मालिक का नाम राजपाल सिंह है। समझ गये न?" मेरे लिए भी यह शहर नया ही था। मैं उसके बताये पते पर बिना कठिनाई के पहुँच गया था क्य

गिरा हुआ आदमी (लघुकथा)

सेठ गणपत दयाल के घर के दरवाजे के पास दीनू जाटव जैसे ही पहुँचा, उसने मकान के भीतर से आ रही रोने की आवाज़ सुनी। ठिठक कर वह वहीं रुक गया। कुछ रुपयों की मदद की उम्मीद लेकर वह यहाँ आया था। उसकी जानकारी में था कि सेठ जी आज घर पर अकेले हैं, क्योंकि सेठानी जी अपने बेटी को लेने उसके ससुराल गई हुई थीं। वह लौटने लगा यह सोच कर कि शायद सेठानी जी बेटी-नातिन को ले कर वापस आ गई होंगी, बाद में आना ही ठीक रहेगा। पाँच-सात कदम ही चला होगा कि दबी-दबी सी एक चीख उसे सुनाई दी। सड़क के दूसरी तरफ बैठा एक कुत्ता भी उसी समय रोने लगा था। किसी अनहोनी की आशंका से वह घबरा गया और वापस गणपत दयाल के घर की तरफ लौटा। 'किसकी चीख हो सकती है यह? सेठ जी की नातिन अगर आई हुई है तो भी वह चीखी क्यों होगी? क्या करूँ मैं?', पशोपेश में पड़ा दीनू दरवाजे के पास आकर रुक गया। तभी भीतर से फिर एक चीख के साथ किसी के रोने की आवाज़ आई। अब वह रुक नहीं सका। उसने निश्चय किया कि पता तो करना ही चाहिए, आखिर माज़रा क्या है! हल्का सा प्रहार करते ही दरवाजा खुल गया। दरवाजा भीतर से बन्द किया हुआ नहीं था। भीतर आया तो बायीं ओर के कमरे से आ रही किसी के

अतिक्रमण (कहानी)

  (1) इंटरवल के बाद रजनी अपने विद्यालय का राउन्ड लगा कर अपने कार्यालय-कक्ष में लौटी तो दसवीं कक्षा की छात्रा अरुणा के साथ कोई सज्जन वहाँ बैठे थे। वह समझ गई कि अरुणा उसके आदेशानुसार अपने पिता को लेकर आई है। जैसे ही वह अपनी कुर्सी पर बैठी , अरुणा ने अपने पिता का परिचय कराया - “ मैडम , यह मेरे पापा हैं। ” “ ठीक है , तुम जाओ अपनी क्लास में। ” - रजनी ने कहा।     अरुणा के उसकी कक्षा में जाने के उपरान्त रजनी ने परिचय की व्यावहारिकता पूरी होने पर अरुणा के पापा ओम प्रकाश जी के साथ लगभग तीस मिनट तक बातचीत की। वार्तालाप की समाप्ति के बाद ओम प्रकाश जी ने विदा लेते हुए कहा- “ आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मैडम कि आपने मुझे सारी बात बताई। अब से हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे। "  ओम प्रकाश जी के जाने के बाद रजनी कुर्सी पर सिर टिका कर बैठ गई। विचार-श्रंखला ने उसे अपने जीवन के बीस वर्ष पहले के समय में धकेल दिया , जब वह ब्याह कर इंजीनियर चंद्र कुमार के धनाढ्य व प्रतिष्ठित परिवार में आई थी।       विवाह के बाद की पहली रात्रि ...      " तुम आकाश के चंदा नहीं , मेरे माथे के चाँद हो प्रियतम! " &qu