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नवंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र :

मैंने देखा है विश्व-पटल पर उभरते मेरे देश के समग्र विकास को -   सुदूर किसी गांव में कहीं एकाध जगह लगे हैंडपम्प से  निकलती पतली-सी धार और पास में घड़े थामे पानी के लिए आपस में झगड़ती ग्रामीण बालाओं की कतार में;  शहर में सर्द रात में सड़क के किनारे पड़े, हाड़ तोड़ती सर्दी से किसी असहाय भिखारी के कंपकपाते बदन में;  कहीं अन्य जगह ऐसी ही किसी विपन्न, असमय ही बुढ़ा गई युवती के सूखे वक्ष से मुंह रगड़ते, भूख से बिलबिलाते शिशु के रूदन में;  किसी शादी के पंडाल से बाहर फेंकी गई जूठन में से खाने योग्य वस्तु तलाशते अभावग्रस्त बच्चों की आँखों की चमक में;                                                                       और....…और इससे भी आगे, विकास की ऊंचाइयों को देखा है -  पड़ौसी मुल्कों की आतंकवादी एवं विस्तारवादी हरकतों के प्रति मेरे देश के नेताओं की बेचारगी भरी निर्लज्ज उदासीनता में;  चुनावों से पहले मीठी मुस्कराहट के साथ अपने क्षेत्र की जनता के साथ घुल-मिल कर उनके जैसा होने का ढोंग रचकर, किसी मजदूर के हाथ से फावड़ा लेकर मिट्टी खोदते हुए, तो किसी लुहार से हथौड़ी लेकर लोहा पीटते हु

सचिन को भारत-रत्न

    सचिन बहुत ही अच्छा खिलाड़ी होने के साथ ही एक अच्छे इंसान भी हैं इस बात से पूरा इत्तेफाक रखता हूँ मैं, लेकिन जदयू सांसद शिवानन्द तिवारी द्वारा सचिन के लिए किये गए कथन में निहित असहमति की भावना से भी कुछ सीमा तक सहमत हूँ कि उन्हें 'भारत-रत्न' का सम्मान दिये जाने का कोई औचित्य नहीं है। सचिन ने अपने करियर के लिए खेला और इसी कारण उनके प्रयास देश के लिए भी गौरव का कारण बने- यही सच है। सचिन के कुछ-एक बार असफल हो जाने की स्थिति में आज उनकी प्रशंसा की इबारतें लिखने वालों में से ही कइयों ने यह भी कहा था कि सचिन केवल अपने लिए ही खेलते हैं।    मैं यह कह कर क्रिकेट में उनके योगदान को कमतर करके नहीं आंक रहा क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया है शायद ही कोई कर पाये, लेकिन यह बात भी भुलाने योग्य नहीं है कि जितना उन्होंने क्रिकेट को दिया उससे कहीं अधिक क्रिकेट ने उन्हें लौटाया है। सचिन निस्सन्देह बहुत बड़े सम्मान के पात्र हैं, लेकिन 'भारत-रत्न' के बजाय खेलों से सम्बन्धित सर्वोच्च सम्मान दिया जाना समीचीन होता। इसके लिए 'खेल-रत्न' सम्मान दे कर उन्हें सम्मानित किया जा सकता था। संदर