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चिन्टू की चाची (कहानी)

                                                       "चिन्टू! .....ओ चिन्टू! कहाँ है रे?" दो मिनट ही हुए थे चिन्टू को विनीता के पास आये कि अनुराधा की तेज़ आवाज़ विनीता के कानों में पड़ी। सहम कर विनीता ने अपने पास बैठे चिन्टू को चूम कर कहा- "जा बेटा, तेरी मम्मी बुला रही है।" "नहीं चाची, मैं अभी यहीं रहूँगा आपके पास।"- मचल कर चिन्टू बोला। "ना बेटे, मम्मी बुला रही हैं न! अभी जा, बाद में फिर आ जाना।"- विनीता ने प्यार से समझाया। चिन्टू विनीता के द्वारा दी गई टॉफ़ी मुँह में घुमाते हुए अनिच्छापूर्वक कमरे से बाहर निकल कर अपनी मम्मी के पास चला गया। विनीता ने सुना, अनुराधा चिन्टू पर बरस रही थी- "फिर गया तू चाची के वहाँ? कितनी बार कहा है तुझसे मुँहजले कि वहाँ मत जाया कर।....और यह मुँह में क्या है ...निकाल, थूक इसे!" -और फिर दो-तीन थप्पड़ के बाद चिन्टू के जोरों से रोने की आवाज़ आई। विनीता का कलेजा मुँह को आ गया, चाहा, दौड़ कर जाये और चिन्टू को अपने ह्रदय से लगा ले, लेकिन अनुराधा के डर से ऐसा न कर सकी। विनीता के लिए अनुराधा का यह व्यवहार कोई नई बात नहीं

'मैं तुलसी मेरे आँगन की' (कहानी)

  (1) आज रुद्र फिर खाना खाये  बिना ही ऑफिस चला गया था। कभी भी, कोई बात अच्छी नहीं लगती थी, तो वह अपना गुस्सा खाने पर उतार दिया करता था। आज भी ‘सब्जी अच्छी नहीं बनी है’, कहते हुए भोजन की थाली परे खिसका कर वह खड़ा हो गया था। अनामिका परेशान थी, 'दिन भर भूखे रहेंगे वह! यदि ऑफिस की कैन्टीन में कुछ नाश्ता कर भी लिया तो क्या? क्या घर के खाने की बराबरी हो सकती है? मैं अकेली कैसे खा लूँ, मैं भी नहीं खाऊँगी।' अनामिका खाना बनाने में प्रयुक्त  छोटे बर्तन हाथों से ही मांज कर व अन्य काम निपटा कर बाहर आ गई। कल उसका व्रत था, सो वह कल शाम से ही भूखी थी, किन्तु अब तो उसकी भूख ही मर गई थी। मोबाइल में गाने लगा वह लिविंग रूम में आ कर खिड़की के पास बैठ गई और बाहर आसमान को निहारने लगी। अगस्त का महीना था। आसमान में छाये बादलों से छन-छन कर आती हल्की धूप धरती को प्रकाशमान किये हुए थी। मौसम बहुत लुभावना था, फिर भी अनामिका  का मन व्याकुल था। मोबाइल से आ रही लता जी की मधुर आवाज़ में गाये गाने की स्वर-लहरी वातावरण में रस घोल रही थी, किन्तु अनामिका के मन के उद्वेग को कम करने में सफल नहीं हो पा रही थी। कुछ ही दे